हरित क्रांति 2.0: ड्रोन तकनीक से खेती में स्मार्ट बदलाव, पैदावार बढ़ेगी और कम होगा खर्च

भारत की कृषि अब एक नई तकनीकी क्रांति की ओर बढ़ रही है, जिसे हरित क्रांति 2.0 कहा जा रहा है। यह क्रांति ट्रैक्टर या सिंचाई पंपों पर नहीं, बल्कि ड्रोन, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और क्लाउड एनालिटिक्स पर टिकी हुई है। मल्टीस्पेक्ट्रल, थर्मल और हाइपरस्पेक्ट्रल सेंसर वाले आधुनिक ड्रोन किसानों के स्मार्ट सहायक बन चुके हैं। ये खेत की हर एक इंच की सेहत, नमी, पोषण और उत्पादन को सटीकता से मापते हैं।

IMARC ग्रुप की 2025 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत का कृषि ड्रोन बाजार 2024 के 243.60 मिलियन डॉलर से बढ़कर 2033 तक 2,110.60 मिलियन डॉलर पहुँचेगा, जो 24.10 फीसदी की चक्रवृद्धि वार्षिक दर से आगे बढ़ेगा। सरकारी नीतियों और स्टार्टअप्स की बदौलत यह तकनीक छोटे किसानों तक पहुँच रही है, जिससे पैदावार बढ़ रही है और संसाधनों की बचत हो रही है।

ड्रोन अब कुछ ही मिनटों में पूरे खेत का उच्च रेजोल्यूशन मानचित्र तैयार कर देते हैं। इनसे फसल की स्थिति, मिट्टी की नमी, पोषक तत्वों की कमी और कीट संक्रमण का डेटा तुरंत मिल जाता है। जब यह जानकारी क्लाउड प्लेटफॉर्म जैसे Flyght Cloud पर संसाधित होती है, तो यह और उपयोगी हो जाती है। किसान सिंचाई, खाद और कीटनाशक का सटीक प्रयोग कर पाते हैं, जिससे पानी और रसायनों की बर्बादी रुकती है। हिंदू बिजनेसलाइन की 7 नवंबर 2025 की रिपोर्ट में बताया गया कि ड्रोन डेटा से उपज पूर्वानुमान 65 फीसदी सटीक हो गया है, जो फसल बीमा और योजना बनाने में मदद करता है।

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ड्रोन अब डेटा प्लेटफॉर्म

आज के ड्रोन सिर्फ कैमरा नहीं, बल्कि उड़ते हुए डेटा केंद्र हैं। ये AI और एनालिटिक्स से फसलों की बारीक स्थिति का विश्लेषण करते हैं। उपग्रह और जमीनी सेंसरों के बीच पुल का काम करते हुए सेंटीमीटर स्तर की सटीकता देते हैं। फसल के विभिन्न चरणों में उड़ान भरकर लगातार निगरानी रखते हैं। पहले यह सटीकता सिर्फ लैब तक सीमित थी, लेकिन अब खेतों में उपलब्ध है। टेकजेनेज की 20 अक्टूबर 2025 की रिपोर्ट के मुताबिक, “मेक इन इंडिया” पहल से स्वदेशी ड्रोन विकसित हो रहे हैं, जो कृषि और रक्षा दोनों में उपयोगी हैं।

चीकू के एक बड़े बागान में ड्रोन की मल्टीस्पेक्ट्रल इमेजरी ने जल-तनाव वाले क्षेत्र, कीट प्रभावित भाग और पत्तियों की घनत्व भिन्नता को उजागर किया। इससे किसानों ने सिंचाई चक्र बदले, पोषण प्रबंधन सुधारा और उपचार के फैसले सटीक लिए। नतीजा उत्पादन में वृद्धि और संसाधन बचत।

इसी तरह प्याज और लहसुन की खेती के पायलट प्रोजेक्ट में ड्रोन ने NDVI, NDRE, CHL और OSAVI जैसे वनस्पति सूचकांकों का विश्लेषण किया। इससे मिट्टी की नमी, पोषण स्तर और पौध तनाव की पहचान हुई, जिससे माइक्रो स्तर पर सिंचाई और खाद का प्रयोग संभव हुआ। मोंगाबे इंडिया की 22 सितंबर 2025 की रिपोर्ट में कहा गया कि ड्रोन स्प्रेइंग से उर्वरक का सटीक छिड़काव हो रहा है, जो श्रम की कमी को पूरा कर रहा है।

AI और मशीन लर्निंग से उपज पूर्वानुमान

ड्रोन आधारित शोध अब मिट्टी के जैविक कार्बन, नाइट्रोजन स्तर और उपज पूर्वानुमान तक पहुँच चुके हैं। मशीन लर्निंग मॉडल जैसे रैंडम फॉरेस्ट और SVM से ड्रोन डेटा और लैब परीक्षणों में 65 फीसदी सटीकता हासिल हुई है। इससे फसल बीमा, मिट्टी स्वास्थ्य रिपोर्ट और कृषि योजना डेटा आधारित हो गई है। PMC की 7 अगस्त 2025 की समीक्षा में उल्लेख है कि भारत का ड्रोन बाजार 2020-2025 में 80 फीसदी CAGR से बढ़ा, और AgriTech फिनटेक 2025 तक 84 बिलियन डॉलर का होगा।

भविष्य में ड्रोन सिर्फ निगरानी तक सीमित नहीं रहेंगे। ये खुद पोषक तत्वों का छिड़काव करेंगे। LiDAR, हाइपरस्पेक्ट्रल और मौसम सेंसर के एकीकरण से डेटा गहरा होगा। क्लाउड AI मिट्टी निगरानी, रोग पहचान और उपचार सिफारिशें स्वचालित करेगा। IBEF की 18 जुलाई 2024 की रिपोर्ट (2025 अपडेट के साथ) बताती है कि ड्रोन दक्षता बढ़ा रहे हैं और सतत खेती को बढ़ावा दे रहे हैं।

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चुनौतियाँ बरकरार, लेकिन सरकारी सहायता से समाधान

उच्च गुणवत्ता वाले सेंसर अभी महँगे हैं, और भारत जैसे विविध कृषि क्षेत्र में AI मॉडल के लिए ज्यादा डेटा चाहिए। ICAR-NRRI और SKUAST के शोधकर्ताओं ने भौगोलिक जटिलता और ऊँचाई बनाए रखने को चुनौती बताया। फिर भी, सरकारी प्रोत्साहन, हार्डवेयर लागत में कमी और Flyght Cloud जैसे प्लेटफॉर्म से छोटे किसानों तक पहुँच बढ़ रही है। KGKM इंडिया 2025 इवेंट में ड्रोन को गौ-आधारित जैविक खेती से जोड़ने पर चर्चा होगी। इनसाइडएफपीवी की 23 जून 2025 की रिपोर्ट के अनुसार, ड्रोन से श्रम कमी का समाधान हो रहा है समय पर स्प्रेइंग से फसल स्वास्थ्य सुधरता है, लागत घटती है और पैदावार बढ़ती है।

जलवायु परिवर्तन और इनपुट लागत बढ़ने के दौर में ड्रोन आधारित सटीक कृषि एक मजबूत विकल्प है। समय पर समस्या पहचान से मौसम झटकों और कीटों से बचाव होता है। सटीक छिड़काव से खाद, पानी और कीटनाशक सिर्फ जरूरी जगह लगते हैं, जिससे खर्च कम होता है और पर्यावरण प्रदूषण घटता है। प्लूटूसियास की 10 जून 2025 की रिपोर्ट में कहा गया कि डिजिटल एग्रीकल्चर मिशन और AgriSURE जैसी योजनाएँ ड्रोन, AI और सटीक खेती को बढ़ावा दे रही हैं।

कुल मिलाकर, भारत की अगली हरित क्रांति ड्रोन डेटा, AI और क्लाउड पर निर्भर करेगी। खेती अब “ज्यादा मेहनत” नहीं, बल्कि “ज्यादा समझदारी” का क्षेत्र बन चुकी है। ड्रोन खेतों की आँखें बनकर डेटा जुटाते, विश्लेषण करते और किसानों को सही निर्णय लेने में मदद करते हैं। हर एकड़ अब सूचना का स्रोत है, जो भारतीय कृषि को अधिक उत्पादक, संसाधन-कुशल और जलवायु-संवेदनशील बना रहा है।

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  • Shashikant

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