बाढ़ में भी बंपर पैदावार, जानिए धान की वो 3 किस्में जो डूबे रहने पर भी नहीं सड़तीं

खरीफ का सीजन शुरू हो चुका है और बिहार व असम के किसान भाई धान की खेती की तैयारी में जुट गए हैं। लेकिन इन राज्यों में बाढ़ की समस्या हर साल फसल को नुकसान पहुंचाती है। अच्छी खबर ये है कि वैज्ञानिकों ने ऐसी धान की किस्में विकसित की हैं, जो बाढ़ के पानी में भी डटकर मुकाबला करती हैं और बंपर पैदावार देती हैं। सह्याद्रि पंचमुखी, स्वर्णा सब-1, हीरा, रंजीत सब-1 और बहादुर सब-1 जैसी किस्में बिहार और असम के किसानों के लिए वरदान हैं। आइए, जानते हैं इन किस्मों की खासियत और इन्हें उगाने के देसी नुस्खे।

सह्याद्रि पंचमुखी

सह्याद्रि पंचमुखी धान की एक ऐसी किस्म है, जो बाढ़ग्रस्त इलाकों में कमाल करती है। इसे 2019 में आंचलिक कृषि और बागवानी अनुसंधान स्टेशन ने विकसित किया था। ये किस्म 8 से 10 दिन तक बाढ़ का पानी सहन कर सकती है, फिर भी इसके पौधे गलते नहीं। इसके चावल की क्वालिटी शानदार रहती है और स्वाद में भी लाजवाब है। बिहार के निचले इलाकों और असम के बराक वैली जैसे बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में ये किस्म खूब जमती है।

रोपाई के बाद ये 130-135 दिन में पककर तैयार हो जाती है और सामान्य किस्मों से 26% ज्यादा पैदावार देती है। इसके लिए खेत में ज्यादा पानी की जरूरत होती है, इसलिए बिहार के रोहतास या असम के तटीय इलाकों में इसे लगाएं।

स्वर्णा सब-1

स्वर्णा सब-1 बिहार और असम के उन किसानों के लिए बेस्ट है, जहां बाढ़ का पानी लंबे समय तक रुकता है। ये किस्म आंध्र प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय ने बनाई है और इसमें खास सब-1 जीन है, जो इसे 14-17 दिन तक पानी में डूबे रहने की ताकत देता है। 10 दिन बाद इसकी पत्तियां थोड़ी मुरझाई दिख सकती हैं, लेकिन फसल खराब नहीं होती। सीधी बुवाई में ये 140 दिन में तैयार होती है, जबकि रोपाई में 145 दिन लगते हैं। इसका दाना मध्यम और पतला होता है, जिससे 66.5% अच्छी क्वालिटी का चावल मिलता है। बिहार के पटना, नालंदा और असम के धुबरी जैसे इलाकों में ये किस्म 1-2 टन प्रति हेक्टेयर ज्यादा पैदावार देती है।

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हीरा: बिहार का बाढ़ रोधी रत्न

हीरा किस्म को बिहार कृषि विश्वविद्यालय, भागलपुर ने खासतौर पर बाढ़ प्रभावित इलाकों के लिए बनाया है। ये किस्म 15 दिन तक बाढ़ के पानी में डूबी रह सकती है और फिर भी खराब नहीं होती। ये 120 दिन में पककर तैयार हो जाती है, जो इसे तेजी से तैयार होने वाली किस्म बनाती है। बिहार के गया, मुंगेर और दरभंगा जैसे जिलों में ये किस्म किसानों की पहली पसंद है। इसकी पैदावार सामान्य किस्मों से ज्यादा होती है और चावल की क्वालिटी भी बाजार में अच्छा दाम दिलाती है। अगर आप बिहार में बाढ़ वाले इलाके में खेती करते हैं, तो हीरा आपके लिए सही विकल्प है।

रंजीत सब-1 और बहादुर सब-1

रंजीत सब-1 और बहादुर सब-1 को असम कृषि अनुसंधान विश्वविद्यालय ने बराक वैली जैसे बाढ़ग्रस्त इलाकों के लिए विकसित किया है। ये दोनों किस्में असम की बाढ़ की मार झेलने में माहिर हैं। रंजीत सब-1 140-145 दिन में तैयार होती है और 5 टन प्रति हेक्टेयर तक पैदावार दे सकती है। बहादुर सब-1 भी इतने ही समय में पकती है और बाढ़ में 12-14 दिन तक डूबी रहने की क्षमता रखती है। असम के कामरूप, नगांव और बरपेटा जैसे जिलों में ये किस्में किसानों की कमाई बढ़ा रही हैं। इनके दाने मध्यम आकार के होते हैं और बाजार में अच्छी मांग रखते हैं।

खेती के लिए देसी टिप्स

इन बाढ़ रोधी किस्मों को उगाने के लिए खेत की सही तैयारी जरूरी है। मई के मध्य से जून के पहले हफ्ते तक नर्सरी तैयार करें। 15-20 मई को नर्सरी डालने का सबसे अच्छा समय है। बीज को 24 घंटे पानी में भिगोएं और ढाई ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति किलो बीज मिलाकर बीजोपचार करें। खेत में 200-250 क्विंटल गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट डालें, ताकि मिट्टी में पोषक तत्व बढ़ें।

खेत को दो बार जुताई करके समतल करें और पानी का स्तर एक समान रखें। रोपाई के लिए 25-30 किलो बीज प्रति हेक्टेयर और सीधी बुवाई के लिए 60-70 किलो बीज लें। बाढ़ वाले इलाकों में खेत की मेड़ को मजबूत करें, ताकि पानी का बहाव फसल को नुकसान न पहुंचाए।

ये बाढ़ रोधी किस्में न सिर्फ फसल को बाढ़ से बचाती हैं, बल्कि अच्छी पैदावार और क्वालिटी से मुनाफा भी बढ़ाती हैं। बिहार में रोहतास और मुंगेर जैसे जिले, जहां धान का उत्पादन ज्यादा होता है, वहां स्वर्णा सब-1 और हीरा जैसी किस्में खूब पसंद की जाती हैं। असम में बराक वैली और ब्रह्मपुत्र के किनारे बसे इलाकों में रंजीत सब-1 और बहादुर सब-1 से किसानों की कमाई दोगुनी हो रही है। इन किस्मों के चावल की मांग स्थानीय और राष्ट्रीय बाजारों में है। बाढ़ से नुकसान का डर खत्म करके ये किस्में किसानों को आत्मविश्वास देती हैं।

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  • Shashikant

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