302 आलू की किस्म: कम समय में 300-400 क्विंटल/हेक्टेयर उपज, उत्तर भारत में किसानों की फेवरेट

302 आलू की किस्म: भारत में आलू की कई किस्में किसानों के बीच मशहूर हैं, लेकिन हाल के सालों में 302 आलू वैरायटी का नाम जोरों पर है। इसे किसान कम समय में ज्यादा उपज देने वाली फसल मानते हैं। यह वैरायटी अभी सरकारी या वैज्ञानिक संस्था जैसे CPRI (सेंट्रल पोटेटो रिसर्च इंस्टीट्यूट) में आधिकारिक तौर पर पंजीकृत नहीं है, लेकिन फिर भी उत्तर भारत में यह तेजी से चल निकली है।

आगरा मंडी में व्यापारी इसे पहली पसंद मानते हैं। इसके कंद गोल से अंडाकार, छिलका हल्का पीला और स्वाद अच्छा होता है। बाजार में चमकदार दाने की वजह से अच्छा भाव मिलता है। रबी 2025 के लिए यह किस्म उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार और हरियाणा के किसानों के लिए गेम-चेंजर हो सकती है। आइए, इसकी उत्पत्ति, बुवाई, पानी, खाद, रोग नियंत्रण, उपज और बाजार की पूरी डिटेल जानें।

302 आलू की किस्म: कम समय में 300-400 क्विंटल/हेक्टेयर उपज, उत्तर भारत में किसानों की फेवरेट

किस्म की उत्पत्ति और पहचान

302 आलू का वैज्ञानिक पंजीकरण अभी CPRI या राज्य कृषि विश्वविद्यालयों के रिकॉर्ड में नहीं है। यह किसान स्तर पर विकसित या अनौपचारिक बाजार स्रोत से आई वैरायटी लगती है। उत्तर भारत के किसान इसे कम समय में ज्यादा फसल देने के लिए पसंद करते हैं। इसके कंद का आकार गोल से अंडाकार होता है, छिलका हल्का पीला और चमकदार।

कई किसानों ने बताया कि इसका स्वाद मीठा और बाजार में चमकीले दाने की वजह से अच्छी कीमत मिलती है। आगरा जैसे मंडियों में यह व्यापारियों की फेवरेट है। अगर आप उत्तर भारत के किसान हैं, तो स्थानीय व्यापारी या भरोसेमंद किसान से बीज लें। यह वैरायटी रबी सीजन में कम तापमान और हल्की नमी में अच्छी फसल देती है।

बुवाई का समय

302 आलू की बुवाई का बेस्ट समय अक्टूबर से दिसंबर तक है। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार और हरियाणा के किसान इसे रबी में लगा रहे हैं। इस समय ठंड शुरू होती है, जो कंद बनने के लिए अच्छा है। कम तापमान और हल्की नमी में यह वैरायटी तेजी से बढ़ती है। अगर बुवाई देर हो गई, तो उपज थोड़ी कम हो सकती है। स्थानीय मौसम के हिसाब से समय चुनें। कृषि केंद्र से सलाह लें ताकि सही समय पर बीज लगे और फसल मजबूत हो।

बीज की मात्रा और खेत की तैयारी

एक हेक्टेयर के लिए 25-28 क्विंटल बीज आलू की जरूरत पड़ती है। खेत की जुताई अच्छे से करें, ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए। इससे कंद बिना रुकावट बढ़ेंगे। बीज को 2% डायथेन एम-45 या मैंकोजेब के घोल से उपचारित करें, ताकि फफूंद रोगों से बचाव हो। कतारों के बीच 55-60 सेंटीमीटर और पौधों के बीच 20 सेंटीमीटर दूरी रखें। प्रमाणित बीज भरोसेमंद स्रोत से लें। खेत तैयार करने से फसल की जड़ें मजबूत होंगी और उपज बढ़ेगी।

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सिंचाई प्रबंधन

पहली सिंचाई रोपाई के 15 दिन बाद करें। उसके बाद हर 8-10 दिन पर हल्की सिंचाई दें। ज्यादा पानी देने से कंद फट सकते हैं, जो 302 वैरायटी की बड़ी समस्या है। मिट्टी की नमी और तापमान पर नजर रखें। अगर बारिश हो रही हो, तो सिंचाई कम करें। कम पानी वाले खेतों में भी यह वैरायटी अच्छी फसल देती है, लेकिन सही समय पर पानी दें। इससे कंद बड़े और चमकदार बनेंगे।

खाद प्रबंधन

खाद की सिफारिश प्रति हेक्टेयर: 20 टन सड़ी हुई गोबर की खाद डालें। नाइट्रोजन 150 किलो (यूरिया 325 किलो), फॉस्फोरस 75 किलो (डीएपी 160 किलो) और पोटाश 100 किलो (म्यूरिएट ऑफ पोटाश 170 किलो) दें। नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुवाई के समय और बाकी दो हिस्सों में दें – पहली गुड़ाई पर और फूल आने से पहले। मिट्टी का टेस्ट करवाकर खाद की मात्रा तय करें। जैविक खाद मिलाने से कंद की गुणवत्ता बढ़ती है। सही खाद से फसल हरी-भरी रहेगी और उपज बढ़ेगी।

रोग और कीट नियंत्रण

302 आलू में रोग-प्रतिरोध की वैज्ञानिक जानकारी अभी पूरी नहीं है, लेकिन किसानों ने फटना, छिलना और पत्ती झुलसा जैसी समस्याएँ बताई हैं। फटना ज्यादा नमी या तापमान बदलाव से होता है, इसलिए पानी का ध्यान रखें। पत्ती झुलसा (लेट ब्लाइट) ठंडी और नम हवा में फैलता है, इसके लिए 0.2% मैंकोजेब या 0.25% मेटालेक्सिल + मैंकोजेब का छिड़काव करें। तना गलन या सड़न जलजमाव से आती है, इसलिए खेत में पानी न रुके। दीमक या अन्य कीटों के लिए स्थानीय दवाइयाँ इस्तेमाल करें। फसल चक्र अपनाएँ, ताकि रोग न फैलें। नियमित जाँच से फसल बच जाएगी।

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उत्पादन और पकने की अवधि

302 आलू औसतन 135-145 दिन में तैयार हो जाता है। किसानों के मुताबिक, सही देखभाल से 300-400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज मिल सकती है। कंद मध्यम-बड़े आकार के और चमकदार होते हैं, जो बाजार में अच्छा भाव लाते हैं। कम समय में तैयार होने से किसान जल्दी बेच पाते हैं। उत्तर भारत के ठंडे मौसम में यह वैरायटी शानदार प्रदर्शन करती है।

बाजार भाव और मांग

उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान की मंडियों में 302 आलू का भाव 12-18 रुपये प्रति किलो तक रहता है। व्यापारी इसे चमकदार और लंबे भंडारण योग्य मानते हैं। थोक बाजार और कोल्ड स्टोरेज में इसकी डिमांड बढ़ रही है। कुछ किसानों ने बताया कि भंडारण में हल्का सिकुड़न आ सकता है, इसलिए सही तरीके से स्टोर करें। ब्रांडिंग से और ज्यादा भाव मिल सकता है।

सावधानियाँ और सीमाएँ

यह वैरायटी गैर-पंजीकृत है, इसलिए बीज भरोसेमंद किसान या व्यापारी से ही लें। एक ही खेत में सालों तक न लगाएँ, वरना रोग बढ़ सकते हैं। बीज आलू को ठंडे-सूखे स्थान पर रखें और अंकुरण के समय धूप से बचाएँ। छोटे स्तर पर ट्रायल करें। स्थानीय कृषि केंद्र से सलाह लें।

302 आलू वैरायटी किसानों के लिए कम समय और कम पानी में बंपर फसल का राज है। भले ही पंजीकृत न हो, लेकिन अनुभव से साबित है कि यह उत्तर भारत में चल पड़ी है। सही बुवाई, पानी और देखभाल से अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। रबी 2025 में इसे आजमाएँ और बाजार में अपनी जगह बनाएँ।

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  • Shashikant

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