सीकर पशु मेले में दिखा 3 करोड़ का ‘सिंघम भैंसा’, बनावट और वजन देख दंग रह जाएंगे

राजस्थान के सीकर जिले में बेरी गांव का राज्य स्तरीय पशु मेला इस बार खूब धूमधाम के साथ चल रहा है। 8 सितंबर से शुरू हुआ यह छह दिवसीय मेला 13 सितंबर तक चलेगा और इसमें प्रदेश भर से पशुपालक, किसान, और पशु प्रेमी उमड़ रहे हैं। यह मेला न सिर्फ ऊंट, घोड़े, और भैंसों की खरीद-फरोख्त का केंद्र है, बल्कि राजस्थान की लोक संस्कृति और ग्रामीण परंपराओं का भी शानदार प्रदर्शन कर रहा है। मेले का सबसे बड़ा आकर्षण है भदवासी गांव के सुल्तान फगड़िया का मुर्रा नस्ल का भैंसा ‘सिंघम’, जिसकी कीमत 3 करोड़ रुपये तक आंकी गई है।

सिंघम मेले का शो-स्टॉपर

बेरी पशु मेले में इस बार सुल्तान फगड़िया का मुर्रा नस्ल का भैंसा ‘सिंघम’ हर किसी का ध्यान खींच रहा है। इस भैंसे की चमकदार काली काया, सुगठित शरीर, और छोटे गोल सींग इसे खास बनाते हैं। सिंघम की लंबाई 10.5 फीट और ऊँचाई 5 फीट 4 इंच है, जबकि इसका वजन करीब 11 क्विंटल है। सुल्तान बताते हैं कि यह शुद्ध मुर्रा नस्ल का भैंसा है, जिसकी माँ रोजाना 24 लीटर से ज्यादा दूध देती थी। खास बात यह है कि सिंघम के वीर्य की कीमत 2400 रुपये प्रति बूंद है, जिसका इस्तेमाल भैंसों के प्रजनन के लिए किया जाता है।

पशु विशेषज्ञों के अनुसार, सिंघम के पिता ‘भीम’ की कीमत अजमेर पशु मेले में 25 करोड़ रुपये आंकी गई थी, जिसके कारण इसकी कीमत भी करोड़ों में मानी जा रही है। सुल्तान का कहना है कि सिंघम उनके लिए अमूल्य है और वे इसे बेचना नहीं चाहते, लेकिन कई खरीददारों ने इसकी कीमत 3 करोड़ रुपये तक लगाई है।

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पशु मेले में खरीद-फरोख्त और व्यावसायिक अवसर

बेरी पशु मेला पशुपालकों के लिए एक बड़ा व्यावसायिक मंच है। यहाँ जयपुर, अलवर, जोधपुर, झुंझुनू, बीकानेर, चूरू, और जैसलमेर जैसे शहरों से पशुपालक अपने पशु लेकर आते हैं। मेले में ऊंट, घोड़े, भैंसे, और अन्य पशुओं की खरीद-फरोख्त होती है। मुर्रा नस्ल के भैंसों के अलावा, मेले में नागौरी बैल और बीकानेरी ऊंट भी खास आकर्षण हैं। मेले में करीब 60-70 स्टॉल लगाए गए हैं, जहाँ पशुओं की सजावट का सामान, चारा, और कृषि उपकरण जैसे रस्सी, जेवड़ा, कुदाल, और कुल्हाड़ी बिक रहे हैं।

इसके अलावा, घरेलू सामान जैसे बाल्टी और मग की दुकानें भी हैं। मेले के मीडिया प्रभारी विजेंद्र काजला बताते हैं कि पिछले साल व्यापारियों ने अच्छा मुनाफा कमाया था, और इस बार भीड़ को देखते हुए व्यापारियों को भारी कमाई की उम्मीद है। यह मेला पशुपालकों को न सिर्फ अपने पशु बेचने का मौका देता है, बल्कि नए ग्राहकों और खरीददारों से जोड़ने का भी अवसर देता है।

ऊंट-घोड़े का नृत्य और लोक प्रदर्शन

बेरी पशु मेला सिर्फ पशुओं की खरीद-फरोख्त तक सीमित नहीं है। यह राजस्थान की समृद्ध लोक संस्कृति का भी उत्सव है। हर शाम मेले में ऊंट और घोड़ों के नृत्य का आयोजन होता है, जो दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देता है। इस बार ‘बादल’ नाम के ऊंट और ‘काजल’ नाम की घोड़ी ने डीजे की धुन पर नृत्य कर सबका दिल जीत लिया। काजल घोड़ी ने पूरे राजस्थान में अपने नृत्य के लिए खास पहचान बनाई है।

इसके अलावा, पारंपरिक वेशभूषा में लोक कलाकारों के गीत और नृत्य राजस्थानी संस्कृति की झलक दिखाते हैं। मेले में बच्चों के लिए झूले और मनोरंजन के कार्यक्रम भी हैं, जो इसे परिवारों के लिए आकर्षक बनाते हैं। यह सांस्कृतिक प्रदर्शन न सिर्फ स्थानीय लोगों को जोड़ता है, बल्कि दूर-दूर से आए पर्यटकों को भी राजस्थान की परंपराओं से रूबरू कराता है।

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पशुपालकों और किसानों के लिए क्यों खास है यह मेला

बेरी पशु मेला पशुपालकों और किसानों के लिए कई मायनों में खास है। यहाँ वे अपने पशुओं को बेचकर अच्छी कमाई कर सकते हैं। मुर्रा नस्ल जैसे उन्नत पशुओं की बिक्री और प्रजनन के लिए वीर्य की माँग मेले में खूब रहती है। साथ ही, मेले में कृषि उपकरण और चारे की दुकानें किसानों को उनकी जरूरत का सामान सस्ते दामों पर उपलब्ध कराती हैं।

मेले में पशुओं की देखभाल और प्रजनन की नई तकनीकों की जानकारी भी मिलती है, जो पशुपालकों के लिए फायदेमंद है। उदाहरण के लिए, मुर्रा भैंसों के प्रजनन से न सिर्फ दूध उत्पादन बढ़ता है, बल्कि उनकी अगली पीढ़ी भी उच्च गुणवत्ता वाली होती है। यह मेला पशुपालकों को एक-दूसरे से जुड़ने और अपने व्यवसाय को बढ़ाने का मौका देता है।

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  • Shashikant

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