बंगाल में आलू किसानों को भारी नुकसान, कीमतों में तेज गिरावट से लागत निकालना भी मुश्किल

पश्चिम बंगाल के देहाती किसानों के लिए जुलाई का महीना सिर्फ धान की बुवाई का नहीं बल्कि चिंताओं का भी होता जा रहा है। इस बार आलू की कीमतों में जबरदस्त गिरावट ने किसानों की मेहनत पर पानी फेर दिया है। अभी 18 जुलाई 2025 की सुबह है और खेतों में बारिश की नमी भरी हुई है, लेकिन किसानों के चेहरे पर मायूसी है। बाजार में आलू की कीमत मात्र 300 से 320 रुपये प्रति बोरी रह गई है, जबकि खुदाई के समय यह 400 से 450 रुपये तक बिक रहा था। यानी कोल्ड स्टोरेज में स्टोर किए गए आलू अब सिर्फ 6 से 7 रुपये प्रति किलो के भाव में बिक रहे हैं।

क्यों गिर रही हैं आलू की कीमतें?

आलू की खुदाई के बाद किसानों को उम्मीद थी कि स्टोरेज करने से दाम बढ़ेंगे, लेकिन हकीकत इसके बिल्कुल उलट रही। स्टोरेज का खर्च उठाकर भी अब उन्हें लागत तक वसूल नहीं हो रही। जानकार बताते हैं कि इस बार फसल बंपर रही और ज्यादातर किसान एक ही समय में कोल्ड स्टोरेज से आलू निकाल रहे हैं, जिससे बाजार में सप्लाई बढ़ गई और भाव गिर गए।

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धान की बुवाई और आर्थिक दबा

इस समय पश्चिम बंगाल में धान की रोपाई शुरू हो चुकी है। ज्यादातर किसान आलू बेचकर ही धान की खेती का खर्च निकालते हैं। ऐसे में जब आलू के दाम कम हो जाते हैं, तो किसानों को बीज, खाद और मजदूरी के लिए उधार लेना पड़ता है। कोल्ड स्टोरेज का किराया और परिवहन का खर्च अलग से सिर पर चढ़ जाता है। यह समस्या छोटे किसानों के लिए और भी गंभीर हो जाती है।

मंडी में और बाजार में अलग-अलग रेट

यह चिंता की बात है कि जब किसानों से आलू 6-7 रुपये प्रति किलो में खरीदा जा रहा है, वहीं कोलकाता जैसे शहरों में यही आलू 18 से 25 रुपये प्रति किलो तक बिक रहा है। इसका साफ मतलब है कि बीच के बिचौलिए मोटा मुनाफा कमा रहे हैं, और किसान को उसका हक नहीं मिल रहा। व्यापारी बताते हैं कि स्टोरेज में अभी भी 75 प्रतिशत आलू बचा हुआ है, और जब तक बाहर की मंडियों में इसे भेजा नहीं जाएगा, तब तक दाम में सुधार संभव नहीं।

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सरकारी टास्क फोर्स और किसानों की उम्मीदें

पश्चिम बंगाल सरकार ने आलू की कीमतों की निगरानी के लिए एक टास्क फोर्स बनाई है। इसके सदस्य रवींद्रनाथ कोले मानते हैं कि किसानों को भारी नुकसान हो रहा है और सरकार जल्द कोई कदम उठा सकती है। वे मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से इस विषय में चर्चा करने वाले हैं। किसान संगठनों ने भी मांग की है कि आलू को बिहार, झारखंड और अन्य राज्यों में भेजने की अनुमति दी जाए ताकि सप्लाई का दबाव कम हो और भाव सुधरें।

समस्याओं के समाधान

कई अनुभवी किसान सुझाव दे रहे हैं कि सरकार को न सिर्फ कोल्ड स्टोरेज शुल्क में राहत देनी चाहिए, बल्कि जिन किसानों ने आलू स्टोर किया है, उन्हें प्रति बोरी सब्सिडी भी दी जानी चाहिए। इसके साथ-साथ मंडियों में सीधी बिक्री की व्यवस्था होनी चाहिए, जिससे किसान और ग्राहक के बीच बिचौलियों की भूमिका कम हो। किसानों को स्थानीय सहकारी समितियों और पंचायतों के माध्यम से आवाज उठानी चाहिए और जरूरत पड़ने पर जिला प्रशासन से मदद मांगनी चाहिए। फसल बीमा और मूल्य समर्थन जैसी योजनाओं का लाभ भी उठाना जरूरी है।

यह संकट स्थायी नहीं है। सरकार और किसान मिलकर अगर समय पर निर्णय लें तो आलू जैसी फसल को घाटे से मुनाफे में बदला जा सकता है। किसानों को चाहिए कि वे संगठित होकर मंडियों में पारदर्शिता की मांग करें और फसल भंडारण की आधुनिक व्यवस्था पर जोर दें।

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  • Dharmendra

    मै धर्मेन्द्र एक कृषि विशेषज्ञ हूं जिसे खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी साझा करना और नई-नई तकनीकों को समझना बेहद पसंद है। कृषि से संबंधित लेख पढ़ना और लिखना मेरा जुनून है। मेरा उद्देश्य है कि किसानों तक सही और उपयोगी जानकारी पहुंचे ताकि वे अधिक उत्पादन कर सकें और खेती को एक लाभकारी व्यवसाय बना सकें।

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