बिना जुताई की खेती, जिसे नो-टिलेज या जीरो-टिलेज के नाम से जाना जाता है, मिट्टी को हल या ट्रैक्टर से न जोतकर सीधे बीज बोने की तकनीक है। पूसा के इस खेत में पिछले 20 साल से यह तरीका अपनाया जा रहा है, और इसका असर मिट्टी की सेहत पर साफ दिखता है। केंचुए और सूक्ष्मजीवों की संख्या बढ़ गई है, जो प्राकृतिक उर्वरता को बनाए रखते हैं। पारंपरिक जुताई से मिट्टी की ऊपरी परत नष्ट हो जाती थी, लेकिन यह तरीका उसे जिंदा रखता है। फसल की जड़ें गहरे तक फैलती हैं, जो मिट्टी को मजबूत बनाती है और पानी को बेहतर सोखने में मदद करती है।
तकनीक, सीधे मशीन से बुआई का तरीका
इस विधि में विशेष मशीनों का इस्तेमाल होता है, जो बीज और खाद को एक साथ मिट्टी में डालती हैं। पूसा के खेत में ड्रिल सीडर मशीन का प्रयोग किया जाता है, जो 2-3 सेंटीमीटर गहराई पर बीज बोती है। यह मशीन मिट्टी की संरचना को बरकरार रखती है और केंचुओं व सूक्ष्मजीवों को नुकसान नहीं होने देती। बुआई के लिए हल चलाने की जरूरत नहीं पड़ती, जिससे समय, मेहनत और ईंधन की बचत होती है।
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बारिश की नमी का फायदा उठाकर बुआई की जाती है, और मिट्टी को ढकने के लिए पुरानी फसल की भूसी या घास का इस्तेमाल होता है। यह भूसी खरपतवार को नियंत्रित करती है और मिट्टी में नमी बनाए रखती है। शुरुआत में मशीन की कीमत थोड़ी चिंता का विषय हो सकती है, लेकिन किराए पर लेकर या सहकारी समितियों से मदद लेकर इसे आसानी से शुरू किया जा सकता है।
मिट्टी की सेहत और केंचुओं का चमत्कार
बिना जुताई (Zero Tillage Farming) से मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ जमा होते हैं, जो केंचुओं के लिए प्राकृतिक खुराक बनते हैं। ये केंचुए मिट्टी को हल्का और उपजाऊ बनाते हैं, साथ ही नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और अन्य पोषक तत्वों को बढ़ाते हैं। पूसा के खेत में केंचुओं की मौजूदगी ने मिट्टी को इतना जिंदा कर दिया कि औसत 60-62 क्विंटल की उपज यहाँ 120 क्विंटल तक पहुंच गई। मिट्टी में हवा और पानी का संचार बेहतर होता है, जो फसलों की जड़ों को मजबूती देता है। पारंपरिक जुताई में मिट्टी की उर्वरता धीरे-धीरे कम होती जाती है, लेकिन यह तरीका उसे साल-दर-साल समृद्ध करता है।
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लागत में कमी और उत्पादन में उछाल
हल या ट्रैक्टर से जुताई में डीजल, श्रम और समय की भारी लागत आती थी, लेकिन बिना जुताई से ये सारी बचत हो जाती है। पूसा के किसानों ने बताया कि प्रति एकड़ 3-4 हजार रुपये की बचत हुई है, और साथ में पैदावार दोगुनी हो गई। 18 जुलाई 2025, सुबह 8:35 AM IST के इस बारिश के मौसम में मिट्टी में प्राकृतिक नमी होने से सिंचाई का खर्च भी कम पड़ता है। पुरानी फसल की भूसी का इस्तेमाल करके रासायनिक खाद की जरूरत भी घटती है, जो मिट्टी और पर्यावरण दोनों के लिए फायदेमंद है। यह तकनीक न सिर्फ आर्थिक बोझ को हल्का करती है, बल्कि मुनाफे को बढ़ाकर किसानों की जिंदगी में खुशहाली लाती है।
फायदे, पर्यावरण और उत्पादन का संतुलन
रीजनरेटिव एग्रीकल्चर से मिट्टी की सेहत बेहतर होती है, जो लंबे समय तक फसलों को लाभ पहुंचाती है। पानी की बचत होती है, क्योंकि मिट्टी में नमी लंबे समय तक टिकती है। खरपतवार नियंत्रण में भी यह तरीका कारगर है, क्योंकि भूसी की परत उन्हें उगने से रोकती है। पूसा के खेत में धान, गेहूं, मक्का और दाल जैसी फसलों के लिए यह प्रयोग सफल रहा है। उत्पादन बढ़ने से बाजार में बिक्री का मौका भी ज्यादा मिलता है। हालांकि, शुरुआत में मशीन और ट्रेनिंग की जरूरत पड़ती है, जो छोटे किसानों के लिए थोड़ी चुनौती हो सकती है। लेकिन स्थानीय कृषि केंद्रों से मशीन किराए पर लेकर या प्रशिक्षण लेकर इसे आसानी से शुरू किया जा सकता है।
भविष्य की राह और प्रेरणा
बिना जुताई की खेती खेती का भविष्य है, जो प्रकृति और उत्पादन के बीच संतुलन बनाती है।पुरानी फसल की भूसी छोड़ दें, केंचुओं को बढ़ावा दें, और कम लागत में ज्यादा उपज पाएं। सरकार और कृषि विश्वविद्यालयों से ट्रेनिंग, सब्सिडी और मशीन की सुविधा की मांग करें। यह तरीका न सिर्फ आपकी आज की जरूरतें पूरी करेगा, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए मिट्टी को हरा-भरा और उत्पादक बनाए रखेगा। यह एक ऐसी क्रांति है, जो खेतों को नई जिंदगी दे रही है।
पूसा का यह खेत बिना जुताई की खेती की मिसाल है, जहाँ 120 क्विंटल उपज ने साबित कर दिया कि प्रकृति के साथ चलकर सफलता हासिल की जा सकती है।अपने खेत की मिट्टी को जिंदा करें और इस तकनीक को अपनाएं। कम लागत और ज्यादा उत्पादन के इस रास्ते पर चलें, ताकि आपकी मेहनत का पूरा फल मिले।
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