धान की फसल पर फिजी वायरस का हमला! किसान अभी से हो जाएं सतर्क, वरना होगा भारी नुकसान

धान की फसल में एक बार फिर बौनेपन की समस्या ने किसानों की चिंता बढ़ा दी है। तीन साल पहले पंजाब के खेतों में यह मुसीबत देखी गई थी, जब धान की सभी प्रजातियों में 5-15% फिजी वायरस का प्रकोप मिला था। इस वायरस ने फसल की पैदावार को भारी नुकसान पहुँचाया। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) के पूर्व निदेशक डॉ. ए.के. सिंह के अनुसार, फिजी वायरस धान के पौधों को बौना कर देता है, जिससे उनकी बढ़त रुक जाती है और उत्पादन घट जाता है। आइए, जानते हैं कि यह वायरस क्या है और इससे फसल को कैसे बचाया जा सकता है।

फिजी वायरस क्या है

फिजी वायरस, जिसे वैज्ञानिक रूप से सदर्न राइस ब्लैक-स्ट्रीक्ड ड्वार्फ वायरस (SRBSDV) कहते हैं, धान की फसल को नुकसान पहुँचाने वाला एक खतरनाक वायरस है। यह व्हाइट बैकड प्लांट हॉपर (WBPH), यानी सफेद फुदका या चेपा नामक कीट के जरिए फैलता है। यह कीट संक्रमित पौधों का रस चूसकर स्वस्थ पौधों में वायरस पहुँचाता है।

नतीजतन, पौधे छोटे रह जाते हैं, उनकी पत्तियाँ पीली पड़ती हैं, और पैदावार कम हो जाती है। IARI के वैज्ञानिकों ने इस वायरस की हर स्तर पर जाँच की और पाया कि यह बीज जनित नहीं है। यानी, संक्रमित पौधों के दानों में वायरस नहीं मिला, जो राहत की बात है। इसका मतलब है कि इन दानों को अगले सीजन के लिए बीज के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

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धान में फिजी वायरस का प्रभाव

पंजाब, हरियाणा, और उत्तर भारत के कई हिस्सों में फिजी वायरस ने धान की फसल को प्रभावित किया है। यह वायरस पौधों की दूधिया अवस्था में सबसे ज्यादा नुकसान करता है, जब पौधे तेजी से बढ़ रहे होते हैं। इससे पौधों की ऊँचाई 30-50% तक कम हो जाती है, और अनाज की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है। डॉ. ए.के. सिंह के अनुसार, यह वायरस सभी धान की प्रजातियों को नुकसान पहुँचा सकता है, खासकर खरीफ सीजन में। अगर समय पर कदम न उठाए गए, तो पैदावार में 20-30% तक की कमी आ सकती है।

फिजी वायरस से बचाव के उपाय

फिजी वायरस का कोई सीधा इलाज नहीं है, इसलिए इसका बचाव सफेद फुदका कीट को नियंत्रित करके ही किया जा सकता है। डॉ. सिंह सलाह देते हैं कि किसान खेत की नियमित निगरानी करें और बुआई के 12-15 दिन बाद से कीटनाशकों का छिड़काव शुरू करें। ये कीटनाशक व्हाइट बैकड प्लांट हॉपर को मारने में प्रभावी हैं और फसल को 20-25 दिन तक सुरक्षित रख सकते हैं।

अनुशंसित कीटनाशक हैं: एसिफेट 75% (2 मिली/लीटर पानी), ब्यूप्रोफेज़िन 70% (0.5 मिली/लीटर पानी), डाइनोटेफ्यूरान 20% (0.5 मिली/लीटर पानी), फ्लोनिकामिड 50% (1 मिली/3 लीटर पानी), पाइमेट्रोज़िन 50% (0.5 मिली/लीटर पानी), और सल्फोक्साफ्लोर 21.8% (0.5 मिली/लीटर पानी)। इनका छिड़काव संतुलित मात्रा में करें, ताकि पर्यावरण को नुकसान न हो।

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किसानों के लिए जरूरी सलाह

किसानों को खेत में सफेद फुदका कीट की निगरानी करनी चाहिए, जो पौधों की निचली सतह पर बैठकर रस चूसता है। सुबह या शाम के समय छिड़काव करें, जब कीट ज्यादा सक्रिय होते हैं। कीटनाशकों का उपयोग IARI या नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) की सलाह से करें। साथ ही, खेत में जलभराव से बचें, क्योंकि यह कीट नम जगहों पर तेजी से फैलता है। अगर खेत में बौनेपन के लक्षण दिखें, तो तुरंत विशेषज्ञों से संपर्क करें। IARI की वेबसाइट (iari.res.in) पर भी फिजी वायरस की जानकारी उपलब्ध है।

फिजी वायरस से धान की फसल को बचाना चुनौतीपूर्ण है, लेकिन सही समय पर सही कदम उठाकर नुकसान कम किया जा सकता है। नियमित निगरानी और कीटनाशकों का संतुलित उपयोग फसल की पैदावार को बचा सकता है। यह भी राहत की बात है कि यह वायरस बीज जनित नहीं है, इसलिए अगले सीजन के लिए बीज सुरक्षित हैं। किसान भाइयों, अपने नजदीकी KVK या IARI केंद्र से संपर्क करें और इस वायरस से अपनी मेहनत को बचाएँ।

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  • Shashikant

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