भारत और अमेरिका के बीच मिनी ट्रेड डील को लेकर बातचीत जोरों पर है, जिसकी अंतिम समय सीमा 1 अगस्त 2025 है। यह समझौता दोनों देशों के व्यापारिक रिश्तों को मजबूत करने का मौका है, लेकिन कृषि और डेयरी क्षेत्र में भारत का सख्त रुख इसे जटिल बना रहा है। भारत ने अपने लाखों किसानों और ग्रामीण परिवारों की आजीविका को प्राथमिकता दी है, खासकर जीएम (जेनेटिकली मॉडिफाइड) फसलों और डेयरी आयात के मुद्दे पर। दूसरी ओर, भारत अमेरिका से अपने कृषि उत्पादों के लिए बेहतर बाजार चाहता है। आइए, जानते हैं कि यह डील किसानों के लिए क्या मायने रखती है और इसमें क्या चुनौतियाँ हैं।
डेयरी क्षेत्र: किसानों की आजीविका का आधार
बिजनेसलाइन की रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने साफ कर दिया है कि डेयरी सेक्टर इस ट्रेड डील का हिस्सा नहीं होगा। डेयरी क्षेत्र भारत में लाखों ग्रामीण परिवारों की आय का प्रमुख स्रोत है, और इसे खोलने से स्थानीय किसानों को भारी नुकसान हो सकता है। SBI की एक रिपोर्ट के मुताबिक, डेयरी आयात की अनुमति देने से हर साल 1.03 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हो सकता है। अमेरिकी डेयरी उत्पादों में पशु अवशेषों का उपयोग होता है, जो भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक भावनाओं के खिलाफ है।
ये भी पढ़ें – सरकार ने e-NAM पोर्टल पर जोड़े 7 नए उत्पाद! जानिए कौन-कौन सी फसलें होंगी अब ऑनलाइन
अमेरिका ने इस मुद्दे पर सहमति जताई है, जो किसानों के लिए बड़ी राहत है। उदाहरण के लिए, गुजरात के एक डेयरी किसान श्याम भाई ने बताया कि उनकी सहकारी समिति से हर महीने अच्छी कमाई होती है। अगर विदेशी डेयरी उत्पाद आए, तो उनकी आय पर असर पड़ेगा। भारत का यह रुख डेयरी किसानों की आजीविका को सुरक्षित रखेगा।
जीएम फसलों पर तनाव, सोयाबीन और मक्का
अमेरिका भारत में अपने जीएम सोयाबीन और मक्का के लिए नया बाजार चाहता है। यूएस डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर के अनुसार, चीन ने अमेरिका से 55% सोयाबीन और 26% मक्का का आयात कम कर दिया है, जिसके बाद अमेरिका भारत को अपने उत्पादों का बड़ा बाजार मान रहा है। लेकिन भारत के मौजूदा कानून जीएम फसलों के आयात की अनुमति नहीं देते, क्योंकि इनसे जैव-सुरक्षा और स्थानीय फसलों को खतरा है।
भारत ने कुछ फल, सब्जियाँ, और ड्राई फ्रूट्स के आयात पर रियायत देने की बात मानी है, लेकिन जीएम फसलों पर सावधानी बरत रहा है। अगर सस्ती जीएम फसलें भारत में आईं, तो स्थानीय सोयाबीन और मक्का किसानों को नुकसान होगा। कृषि मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार, 2024 में सोयाबीन का MSP 4,600 रुपये प्रति क्विंटल था, लेकिन मंडियों में किसानों को 4,000 रुपये से भी कम मिला। मक्का किसानों की स्थिति थोड़ी बेहतर है, लेकिन आयात से उनकी आय भी प्रभावित हो सकती है।
पंजाब में जीएम मक्का का विरोध
जीएम फसलों को लेकर भारत में बड़ा विवाद है। हाल ही में पंजाब कृषि विश्वविद्यालय ने Bayer कंपनी को दो जीएम मक्का किस्मों के फील्ड ट्रायल की अनुमति दी, जिसका भारतीय किसान संघ (BKS) ने कड़ा विरोध किया। BKS के महासचिव मोहिनी मोहन मिश्रा ने कहा कि 2002 में बीटी कॉटन को कीट-प्रतिरोधी बताकर लाया गया, लेकिन कुछ सालों में कीटों ने इसे भी नुकसान पहुँचाना शुरू कर दिया। पहले BG-I, फिर BG-II किस्में लाई गईं, लेकिन समस्या हल नहीं हुई। अगर मक्का के साथ भी ऐसा हुआ, तो किसानों को बड़ा नुकसान होगा। BKS ने इस ट्रायल को रद्द करने की मांग की है।
ये भी पढ़ें – CM योगी ने किया पशु नस्ल विकास वर्कशॉप का उद्घाटन, FMD और प्राकृतिक खेती पर दिए जोर
पहले नीति आयोग ने जीएम फसलों की वकालत की थी, लेकिन किसान संगठनों और उपभोक्ता समूहों के विरोध के बाद उसने अपना दस्तावेज वेबसाइट से हटा लिया। भारत में केवल बीटी कॉटन को जीएम फसल के रूप में अनुमति है, और जीएम मस्टर्ड पर कानूनी लड़ाई चल रही है। यह दिखाता है कि जीएम फसलों पर कितना बड़ा विवाद है।
जीएम फसलों से खतरे
जीएम फसलों के आयात से कई समस्याएँ हो सकती हैं:
आर्थिक नुकसान: सस्ती जीएम फसलों से सोयाबीन और मक्का के दाम गिर सकते हैं, जिससे किसानों की आय कम होगी।
जैव-सुरक्षा: क्रॉस-पॉलिनेशन से स्थानीय फसलों की प्रजातियाँ नष्ट हो सकती हैं।
उपभोक्ता भरोसा: जीएम फसलों पर लोगों का भरोसा कम है, जिससे मांग प्रभावित हो सकती है।
इन जोखिमों को देखते हुए भारत का सख्त रुख किसानों के हित में है। मध्य प्रदेश के एक सोयाबीन किसान रमेश पाटीदार ने बताया कि अगर सस्ती विदेशी फसलें आईं, तो उनकी फसल का दाम और गिरेगा, जिससे खेती करना मुश्किल हो जाएगा।
भारत की रणनीति: संतुलित व्यापार
भारत इस डील में संतुलन चाहता है। वह कुछ फल, जैसे आम, अंगूर, और अनार, के निर्यात के लिए अमेरिका से बेहतर बाजार पहुँच माँग रहा है। यह भारतीय किसानों की आय बढ़ाएगा। साथ ही, डेयरी और जीएम फसलों को समझौते से बाहर रखकर भारत अपने किसानों की रक्षा कर रहा है। यह रणनीति दोनों देशों के लिए फायदेमंद होगी, क्योंकि इससे व्यापारिक रिश्ते मजबूत होंगे और किसानों को नुकसान नहीं होगा।
किसानों के लिए सुझाव
बाजार की जाँच: फसल बेचने से पहले मंडी में दाम चेक करें।
जैविक खेती: जैविक सोयाबीन और मक्का की मांग बढ़ रही है, इससे ज्यादा दाम मिल सकता है।
सहकारी समितियाँ: डेयरी किसान सहकारी समितियों से जुड़कर आय बढ़ा सकते हैं।
भारत-अमेरिका मिनी ट्रेड डील में भारत का सख्त रुख किसानों की आजीविका को सुरक्षित रख रहा है। डेयरी और जीएम फसलों को समझौते से बाहर रखने से छोटे किसानों को बड़ी राहत मिलेगी। साथ ही, भारत अपने कृषि उत्पादों के लिए बेहतर बाजार की मांग कर रहा है, जो किसानों की आय बढ़ाएगा। कोई सवाल हो, तो हमें बताएँ, हम हैं आपके साथ!
ये भी पढ़ें – खरीफ बुवाई में इस साल 7% की बढ़त, लेकिन बारिश बनी चुनौती