किसान भाइयों, राष्ट्रीय आम दिवस पर हम बात करेंगे एक ऐसे शख्स की, जिसने आम की दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाई है। ‘मैंगो मैन’ के नाम से मशहूर पद्मश्री कलीमउल्ला खान जी की प्रेरणादायक यात्रा और उत्तर प्रदेश के मलिहाबाद के बागानों की कहानी हर किसान और आम प्रेमी के लिए प्रेरणा का स्रोत है। इन बागानों में हर पेड़ पर स्वाद, विरासत और नवाचार की महक खिलती है, जो न केवल भारत की समृद्धि को दर्शाती है, बल्कि दुनिया भर में इसका लोहा मनवाती है। आइए, इस अनोखी यात्रा को करीब से जानते हैं।
‘मैंगो मैन’ की शुरुआती राह
(Malihabad Mango Story) कलीमउल्ला खान का सफर एक साधारण किसान के बेटे के रूप में शुरू हुआ, लेकिन उनका जुनून उन्हें बागवानी के क्षेत्र में एक मास्टर बनाया। मलिहाबाद, लखनऊ से लगभग 25 किलोमीटर दूर स्थित यह क्षेत्र आमों की खेती के लिए प्रसिद्ध है, और कलीमउल्ला ने इसे नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। उन्होंने ग्राफ्टिंग तकनीक को अपनाकर एक ही पेड़ पर 300 से अधिक आम की किस्में विकसित कीं, जो उनकी मेहनत और नवाचार का जीवंत प्रमाण है। 1987 में शुरू किए गए इस प्रयोग ने उन्हें देश-विदेश में पहचान दिलाई, और 2012 में उन्हें पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया।
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मलिहाबाद, आमों का स्वर्ग
मलिहाबाद को आमों का गांव कहा जाता है, और इसके पीछे की कहानी कई दशकों पुरानी है। 1919 में यहां 1,300 से अधिक आम की किस्में थीं, लेकिन समय और शहरीकरण के कारण कई लुप्त हो गईं। कलीमउल्ला खान ने इन विरासतों को संरक्षित करने का बीड़ा उठाया। दशहरी जैसे विश्वविख्यात आम की उत्पत्ति भी इसी क्षेत्र से हुई, जो अपनी मिठास और खुशबू के लिए जाना जाता है। आज भी मलिहाबाद के बागानों में हर पेड़ पर अलग-अलग किस्मों के फल लटकते हैं, जो स्वाद और सुंदरता का अनोखा मेल पेश करते हैं।
नवाचार की मिसाल
कलीमउल्ला खान ने सिर्फ परंपरा को जिंदा नहीं रखा, बल्कि नवाचार को नई दिशा दी। उन्होंने ग्राफ्टिंग के जरिए ऐश्वर्या, सचिन, नमो जैसे नामों पर आधारित नई किस्में विकसित कीं, जो मशहूर हस्तियों को सम्मान देने का उनका अनोखा तरीका है। हाल ही में उन्होंने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के नाम पर ‘राजनाथ आम’ जैसी नई किस्म पेश की, जो उनके जुनून और देशप्रेम को दर्शाती है। यह तकनीक न केवल पैदावार बढ़ाती है, बल्कि आम की गुणवत्ता को भी बेहतर करती है, जिससे किसानों को आर्थिक लाभ मिलता है।
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स्वाद और गुणवत्ता का जादू
मलिहाबाद के आमों की खासियत उनकी अनूठी मिठास और खुशबू है। दशहरी, चौंसा, और अब्दुल्ला ग्रेट जैसी किस्में न केवल स्थानीय बाजार में लोकप्रिय हैं, बल्कि विदेशों जैसे अमेरिका, यूरोप, और गल्फ देशों में भी निर्यात हो रही हैं। कलीमउल्ला का मानना है कि प्राकृतिक खेती और कीटनाशकों से परहेज फलों की असली स्वाद को बरकरार रखता है। उनके बागों में उगने वाले आमों में प्राकृतिक गुणों का पुट होता है, जो स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद है।
चुनौतियों से लड़ाई
हालांकि, इस सफर में चुनौतियां भी कम नहीं रहीं। बदलते मौसम, पानी की कमी, और शहरी फैलाव ने मलिहाबाद के बागानों को प्रभावित किया है। कलीमउल्ला खान ने इन समस्याओं से निपटने के लिए ड्रिप सिंचाई और जैविक खाद का इस्तेमाल शुरू किया। उनकी मेहनत से कई बाग बच गए, और वे युवा किसानों को भी प्रेरित कर रहे हैं कि वे पारंपरिक खेती को आधुनिक तकनीकों से जोड़ें।
विरासत को आगे बढ़ाना
कलीमउल्ला खान की कोशिश है कि मलिहाबाद की आम की विरासत अगली पीढ़ियों तक पहुंचे। वे स्थानीय किसानों को प्रशिक्षण देते हैं और नई तकनीकों से अवगत कराते हैं। उनकी नर्सरी अब एक शोध केंद्र बन गई है, जहां हर साल नई किस्मों का विकास होता है। यह बागान न केवल फसल का स्रोत हैं, बल्कि पर्यटन का आकर्षण भी बन रहे हैं, जहां लोग स्वाद और इतिहास का लुत्फ उठाते हैं।
किसानों के आदर्श
साथियों, कलीमउल्ला खान का जीवन सिखाता है कि मेहनत और जुनून से कुछ भी संभव है। मलिहाबाद के बागानों में हर पेड़ एक कहानी कहता है स्वाद की, विरासत की, और नवाचार की। अगर आप भी खेती में कुछ नया करना चाहते हैं, तो उनके तरीकों से सीखें और अपने खेत को समृद्ध करें।
किसान भाईयों, राष्ट्रीय आम दिवस पर कलीमउल्ला खान और मलिहाबाद के बागानों को सलाम करें। उनकी मेहनत ने भारत को आम के मामले में गर्व से भर दिया है। सही देखभाल और तकनीक से आप भी अपनी फसल को नई ऊंचाइयों पर ले जा सकते हैं।
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