उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले की एक महिला किसान माधुरी देवी इन दिनों हर किसी की चर्चा का केंद्र बनी हुई हैं। वजह है उनका धान की खेती करने का नया और अनोखा तरीका, जिसे सिस्टम ऑफ राइस इंटेंसिफिकेशन यानी SRI विधि कहते हैं। इस विधि ने न सिर्फ उनकी फसल की पैदावार बढ़ाई है, बल्कि पानी और लागत भी बचाई है। माधुरी की इस सफलता ने गाँव के दूसरे किसानों को भी इस तकनीक को अपनाने के लिए प्रेरित किया है।
कम बीज, कम पानी, ज्यादा फायदा
माधुरी देवी ने बताया कि SRI विधि पारंपरिक खेती से बिल्कुल अलग है। इस तरीके में बहुत कम बीज और पानी की जरूरत पड़ती है, लेकिन फसल की पैदावार कहीं ज्यादा होती है। उनके मुताबिक, पारंपरिक खेती में एक बीघा जमीन से 4 से 5 कुंटल धान मिलता था, लेकिन SRI विधि से अब वे एक बीघा में पाँच से छह कुंटल धान काट रही हैं। इस विधि में धान की नर्सरी सिर्फ 8 से 12 दिन में तैयार हो जाती है। फिर एक-एक पौधे को खेत में लगाया जाता है, जिससे हर पौधे को बढ़ने के लिए काफी जगह मिलती है।
SRI विधि का जादू
इस तकनीक की खासियत यह है कि पौधों के बीच अच्छी-खासी दूरी रखी जाती है। इससे धान के पौधों को हवा और धूप भरपूर मिलती है, जिससे वे स्वस्थ रहते हैं और ज्यादा फसल देते हैं। माधुरी ने बताया कि पानी संस्थान की मदद से उन्हें इस विधि की जानकारी मिली। वे अपने पाँच एकड़ खेत में इस तकनीक का इस्तेमाल कर रही हैं। इस विधि में खेत को बार-बार पानी से भिगोने की जरूरत नहीं होती, बल्कि मिट्टी को हल्का गीला रखा जाता है। इससे पानी की खपत 25 से 50 प्रतिशत तक कम हो जाती है, जो पानी की कमी वाले इलाकों के लिए वरदान है।
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मेहनत कम, मुनाफा ज्यादा
SRI विधि में खरपतवार की समस्या भी कम रहती है। शुरुआती दिनों में थोड़ी देखभाल करने से खेत साफ रहता है, और बाद में खरपतवार नियंत्रण के लिए ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती। माधुरी के अनुसार, इस विधि में कम बीज और कम पानी के साथ-साथ रासायनिक खाद की जरूरत भी कम होती है। वे जैविक खाद का ज्यादा इस्तेमाल करती हैं, जिससे मिट्टी की सेहत भी बनी रहती है। इससे न सिर्फ लागत कम होती है, बल्कि फसल की गुणवत्ता भी बढ़ती है, जिससे बाजार में अच्छा दाम मिलता है।
किसानों के लिए प्रेरणा
जब माधुरी ने पहली बार SRI विधि अपनाई, तो गाँव वालों और परिवार ने उनके इस फैसले पर सवाल उठाए थे। लेकिन आज उनकी बंपर फसल देखकर कई किसान इस तकनीक को सीखने के लिए उनके पास आ रहे हैं। माधुरी का कहना है कि यह विधि छोटे और मझोले किसानों के लिए खास तौर पर फायदेमंद है, क्योंकि इसमें खर्चा कम और मुनाफा ज्यादा होता है। उनके इस प्रयास ने न सिर्फ उनकी आमदनी बढ़ाई है, बल्कि गोंडा के किसानों के लिए एक नया रास्ता भी दिखाया है।
माधुरी सलाह देती हैं कि अगर किसान भाई इस विधि को अपनाना चाहते हैं, तो पहले अपने नजदीकी कृषि केंद्र या पानी संस्थान से संपर्क करें। यह तकनीक न सिर्फ फसल बढ़ाती है, बल्कि पानी और पैसे की बचत भी करती है। गोंडा की इस महिला किसान की कहानी बताती है कि मेहनत और नई तकनीक के साथ खेती में बड़ा बदलाव लाया जा सकता है।
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