चोलापुर विकास खंड के बबियांव से निकला प्रगतिशील किसान शैलेंद्र रघुवंशी ने किन्नू की खेती में एक नई मिसाल कायम की है। पिछले तीन सालों में उनके प्रयोग ने दिखा दिया कि काशी की मिट्टी में यह हाइब्रिड फल सफल हो सकता है। शैलेंद्र ने पंजाब के एक विश्वविद्यालय से 10 पौधे मंगवाकर शुरुआत की थी, और अब उनकी मेहनत रंग ला रही है। यह कहानी न सिर्फ उनकी लगन को दर्शाती है, बल्कि काशी के किसानों के लिए एक नई उम्मीद भी जगाती है। आइए जानते हैं कि शैलेंद्र ने यह कमाल कैसे किया, किन्नू के पौधे कैसे प्राप्त करें, और इस खेती से कैसे मुनाफा कमाया जा सकता है।
प्रयोग की शुरुआत और सफलता
शैलेंद्र रघुवंशी ने तीन साल पहले किन्नू बागवानी का प्रयोग शुरू किया। पंजाब से लाए गए 10 पौधों को उन्होंने सावधानी से लगाया और देखभाल की। पहले साल पौधों ने जड़ें जमाईं, लेकिन दूसरे साल से फल आने शुरू हो गए। हर पेड़ से 15 से 30 किलो किन्नू मिले, जो उनकी मेहनत का पहला इनाम था। तीसरे साल यह उत्पादन 80 से 100 किलो प्रति पेड़ तक पहुंच गया, जो किसी चमत्कार से कम नहीं है। इस सफलता ने शैलेंद्र को भरोसा दिलाया कि काशी की मिट्टी और मौसम किन्नू के लिए उपयुक्त है। अब वे एक एकड़ में 1000 पौधे लगाने की तैयारी में हैं, जो इलाके में एक नई क्रांति ला सकता है।
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काशी में नई शुरुआत
काशी में किन्नू की बागवानी की शुरुआत शैलेंद्र के प्रयोग से हुई है, और यह इलाके के लिए खुशखबरी है। इस फल की खासियत यह है कि छुट्टा पशु और जंगली जानवर इसे नुकसान नहीं पहुंचाते, जो किसानों के लिए बड़ी राहत है। इससे लोग इसकी खेती की ओर आकर्षित हो रहे हैं। किन्नू एक हाइब्रिड फल है, जो नींबू और संतरे के मेल से बना है, और इसका स्वाद व रंग इसे बाजार में खास बनाता है। शैलेंद्र का कहना है कि यह फल जनवरी में पककर तैयार होता है और फरवरी में बिक्री के लिए उपयुक्त होता है, जो सही समय पर आमदनी देता है।
किन्नू की खेती मुख्य रूप से उत्तर भारत में फलती-फूलती है, और शैलेंद्र ने इसकी खूबियों को काशी में आजमाया। पंजाब इस फल का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है, जहां इसे “पंजाब का राजा” कहा जाता है। हरियाणा भी इसकी खेती में आगे है, जबकि राजस्थान के श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ जिले बड़े उत्पादक केंद्र हैं। हिमाचल प्रदेश की पहाड़ियों में भी किन्नू की खुशबू फैली है। इसके अलावा, कर्नाटक, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, और मणिपुर जैसे राज्य भी इसकी खेती कर रहे हैं। इन इलाकों में मिट्टी और मौसम की खासियत किन्नू को स्वादिष्ट बनाती है।
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अंतरराष्ट्रीय बाजार और निर्यात
किन्नू की मांग सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी बढ़ रही है। शैलेंद्र का मानना है कि इसका अंतरराष्ट्रीय बाजार इसे और मुनाफेमंद बनाता है। इसका निर्यात बांग्लादेश, नेपाल, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), रूस, मलेशिया, सिंगापुर, अफगानिस्तान, ईरान, बहरीन, कुवैत, ओमान, कतर, सऊदी अरब, और वियतनाम जैसे देशों में हो रहा है। इन देशों में इसका स्वाद और पोषण लोग पसंद करते हैं, जो किसानों के लिए नया अवसर खोलता है। अच्छी पैकिंग और समय पर भेजाई से इसकी कीमत और बढ़ सकती है।
खेती की तैयारी और लागत
शैलेंद्र अब एक एकड़ में किन्नू की बागवानी का विस्तार करने जा रहे हैं। इसके लिए उन्होंने 1000 पौधे तैयार किए हैं, जो दो से तीन मीटर की दूरी पर लगाए जाएंगे। किन्नू की खेती में ज्यादा लागत नहीं लगती, क्योंकि इसके पौधे आसानी से उगते हैं और तीन साल में फल देने लगते हैं। प्रति एकड़ 400-500 पौधे लगाकर तीसरे साल 32,000-50,000 किलो फल मिल सकते हैं। अगर बाजार में दाम 20-30 रुपये प्रति किलो हो, तो आय 6,40,000-15,00,000 रुपये तक हो सकती है। लागत (पौधे, पानी, मेहनत) 1,00,000-1,50,000 रुपये प्रति एकड़ आने पर शुद्ध लाभ 4,90,000-13,50,000 रुपये तक पहुंच सकता है।
शैलेंद्र का प्रयोग काशी में किन्नू बागवानी को नई दिशा दे रहा है। अगली फसल के लिए मिट्टी में जैविक खाद डालें और पौधों की नियमित देखभाल करें। आसपास के किसानों को प्रेरित करके इसकी खेती को फैलाया जा सकता है। सरकार और कृषि विशेषज्ञों से मदद लेकर तकनीक में सुधार लाया जा सकता है। सही देखभाल से यह खेती न सिर्फ मुनाफा देगी, बल्कि इलाके की अर्थव्यवस्था को भी मजबूत करेगी। शैलेंद्र का सपना है कि काशी का किन्नू देश-विदेश में मशहूर हो।
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