अमरूद की खेती में सबसे खतरनाक रोग! जुलाई-अगस्त में ऐसे करें एन्थ्रक्नोज का इलाज

जुलाई और अगस्त के महीने में अमरूद के बागों में एक मुसीबत सिर उठाने लगती है, जिसे एन्थ्रक्नोज रोग कहते हैं। यह रोग अमरूद के पौधों को कमजोर कर देता है और फसल को नुकसान पहुंचाता है। इस समय पेड़ की नई कोमल पत्तियों पर काले या चॉकलेट जैसे अनियमित धब्बे दिखाई देते हैं, जो धीरे-धीरे पत्तियों को पीला कर देते हैं।

ये पत्तियां कमजोर होकर गिर जाती हैं, और आसपास की पत्तियां भी काली-भूरी हो जाती हैं। ऊपरी टहनियां भी काली पड़ने लगती हैं, जबकि नई कलियां फूल बनने से पहले ही सूखकर गिर जाती हैं। अगर समय रहते इस रोग का इलाज न किया जाए, तो यह पूरी डाली को सुखा देता है। आज हम इस रोग के कारण, इसके असर, और इसे रोकने के घरेलू-नवीन तरीकों के बारे में जानेंगे, ताकि आपकी मेहनत बर्बाद न हो।

एन्थ्रक्नोज रोग का असर

इस रोग का असर सिर्फ पत्तियों और टहनियों पर ही नहीं, फलों पर भी पड़ता है। फलों की सतह पर छोटे-छोटे काले धब्बे उभरते हैं, जो अंदर तक सड़न पैदा करते हैं। इससे फल खराब हो जाते हैं और बाजार में बिक्री के लायक नहीं रहते। छोटी कलियां और फूल भी समय से पहले सूखकर गिर जाते हैं, जो पैदावार को कम कर देता है। यह फफूंदजनित रोग कोलेटोट्राईकम नामक फफूंद की वजह से होता है, जो वसंत ऋतु में ठंडे और नम मौसम में पौधों पर हमला करता है। जुलाई-अगस्त में बारिश और नमी इस रोग को और बढ़ावा देती है, इसलिए सावधानी बरतना जरूरी है।

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रोग के कारण और पहचान

एन्थ्रक्नोज रोग मुख्य रूप से नमी और खराब हवा संचार के कारण फैलता है। जब पेड़ों के बीच दूरी कम होती है या खेत में पानी जमा रहता है, तो फफूंद तेजी से बढ़ती है। बीज या पुराने पौधों से भी यह रोग फैल सकता है, खासकर अगर मिट्टी साफ न हो। इसे पहचानना आसान है, नई पत्तियों पर काले धब्बे, पत्तियों का पीला पड़ना, और टहनियों का काला होना इसके संकेत हैं। फलों पर धंसे हुए काले निशान भी इसकी पुष्टि करते हैं। अगर इन लक्षणों को समय पर नजरअंदाज किया जाए, तो पूरा पेड़ सूख सकता है, जो किसानों के लिए बड़ा नुकसान है।

बचाव के आसान उपाय

(Amrud Anthracnose Rog) इस रोग से बचने के लिए शुरुआती कदम उठाना जरूरी है। खेत में पेड़ों के बीच अच्छी दूरी बनाएं ताकि हवा और धूप पहुंचे। बारिश के दिनों में पानी जमा न होने दें और मिट्टी की नमी चेक करें। बीज को बोने से पहले गर्म पानी में डुबोकर साफ करें, जिससे फफूंद खत्म हो जाए। एक प्रभावी तरीका है—कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना। इसे बीमारी के शुरू होने पर करें और 10-15 दिन बाद दोहराएं। देसी नुस्खे में नीम की पत्तियों को उबालकर छिड़काव करने से भी फफूंद पर काबू पाया जा सकता है। ये उपाय मिट्टी और फसल दोनों के लिए सुरक्षित हैं।

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फसल की सेहत और मुनाफा

एन्थ्रक्नोज से बचाव से अमरूद की फसल स्वस्थ रहती है और पैदावार बढ़ती है। एक एकड़ में 100-150 पेड़ लगाकर तीसरे साल 50-60 क्विंटल फल मिल सकते हैं। अगर बाजार में दाम 20-30 रुपये प्रति किलो हो, तो आय 1,00,000-1,80,000 रुपये तक हो सकती है। लागत (पौधे, पानी, मेहनत) लगभग 30,000-50,000 रुपये प्रति एकड़ आने पर शुद्ध लाभ 50,000-1,30,000 रुपये तक पहुंच सकता है। स्वस्थ फल बाजार में अच्छा दाम दिलाते हैं, और निर्यात की संभावना भी बढ़ती है। सही देखभाल से आप इस रोग से निजात पा सकते हैं और मुनाफा कमा सकते हैं।

खेत में जैविक खाद जैसे गोबर की खाद डालने से मिट्टी की ताकत बढ़ती है, जो रोगों से लड़ने में मदद करती है। पेड़ों की नियमित छंटाई करें और सूखी टहनियां हटाएं ताकि फफूंद का फैलाव रुके। अगर रोग गहरा हो, तो कृषि विशेषज्ञों से सलाह लें, जो नई दवाओं का सुझाव दे सकते हैं। पुराने किसानों का कहना है कि सुबह के समय छिड़काव करने से दवा का असर ज्यादा होता है। ये छोटे-छोटे कदम फसल को लंबे समय तक सुरक्षित रखते हैं।

एन्थ्रक्नोज से निपटने के बाद अगली फसल के लिए मिट्टी को तैयार रखें। पुराने पौधों के अवशेष हटाएं और जैविक खाद डालें ताकि मिट्टी की उर्वरता बनी रहे। अपने अनुभव को नोट करें और आसपास के किसानों से सीखें, क्योंकि उनका ज्ञान नई तकनीकों से भी बढ़िया हो सकता है।

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  • Dharmendra

    मै धर्मेन्द्र एक कृषि विशेषज्ञ हूं जिसे खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी साझा करना और नई-नई तकनीकों को समझना बेहद पसंद है। कृषि से संबंधित लेख पढ़ना और लिखना मेरा जुनून है। मेरा उद्देश्य है कि किसानों तक सही और उपयोगी जानकारी पहुंचे ताकि वे अधिक उत्पादन कर सकें और खेती को एक लाभकारी व्यवसाय बना सकें।

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