धान की फसल में दिखे ये लक्षण तो समझो लग गया है खैरा रोग, तुरंत करें ये उपाय

खरीफ सीजन में धान की रोपाई का काम लगभग पूरा हो चुका है। अब किसान खरपतवार नियंत्रण और फसल की बढ़त के लिए कीटनाशकों और उर्वरकों का छिड़काव कर रहे हैं। लेकिन इस मौसम में धान की फसल में कई रोगों का खतरा मंडराता रहता है, जिनमें खैरा रोग सबसे खतरनाक है। यह रोग फसल को पूरी तरह बर्बाद कर सकता है, जिससे पैदावार घटती है और किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है। रायबरेली के राजकीय कृषि केंद्र शिवगढ़ के प्रभारी अधिकारी शिव शंकर वर्मा, जो 10 साल से कृषि क्षेत्र में काम कर रहे हैं, ने बताया कि सही समय पर उपाय करने से इस रोग से बचा जा सकता है।

खैरा रोग के लक्षण

खैरा रोग का असर धान की फसल पर जल्दी दिखने लगता है। इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियों पर हल्के पीले धब्बे बनते हैं, जो बाद में कत्थई रंग के हो जाते हैं। पौधे बौने रह जाते हैं और उनकी जड़ें भी कत्थई दिखने लगती हैं। यह रोग फसल की बढ़त को रोक देता है और पैदावार को भारी नुकसान पहुंचाता है। अगर समय रहते इसका इलाज न किया जाए, तो पूरी फसल बर्बाद हो सकती है। किसानों को पौधों की पत्तियों और जड़ों पर नजर रखनी चाहिए, ताकि शुरुआती लक्षण दिखते ही उपाय शुरू किए जा सकें।

रोग का कारण मिट्टी में जिंक की कमी

शिव शंकर वर्मा के मुताबिक, खैरा रोग का मुख्य कारण मिट्टी में जिंक की कमी है। जब खेत में कैल्शियम और क्षारीय तत्वों (अल्कलाइन) की मात्रा बढ़ जाती है, तो जिंक की उपलब्धता कम हो जाती है। इससे खैरा रोग का खतरा बढ़ता है। इसके अलावा, एक ही खेत में लगातार धान, मक्का या गन्ना जैसी भारी फसलों की खेती करने से भी मिट्टी में जिंक की कमी हो जाती है। इसलिए, किसानों को समय-समय पर मिट्टी की जांच करवानी चाहिए। यह जांच खेत में पोषक तत्वों की कमी का पता लगाने में मदद करती है, जिससे सही समय पर सही उपाय किए जा सकें।

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खैरा रोग से बचाव के आसान उपाय

खैरा रोग से फसल को बचाने के लिए कुछ आसान और देसी उपाय अपनाए जा सकते हैं। शिव शंकर वर्मा बताते हैं कि धान की रोपाई से पहले खेत की गहरी जुताई कर 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में मिला देना चाहिए। यह रोग की शुरुआत को रोकता है। अगर फसल में रोग के लक्षण दिखें, तो 0.5 प्रतिशत जिंक सल्फेट और 0.2 प्रतिशत बुझा हुआ चूना पानी में घोलकर हर 10 दिन में तीन बार छिड़काव करें। अगर चूना उपलब्ध न हो, तो 2 प्रतिशत यूरिया का घोल भी इस्तेमाल किया जा सकता है। ये उपाय सरल हैं और किसान इन्हें आसानी से अपनाकर अपनी फसल को खैरा रोग से बचा सकते हैं।

मिट्टी की जांच है जरूरी

खैरा रोग से बचने का सबसे अच्छा तरीका है कि किसान अपनी मिट्टी की सेहत पर नजर रखें। नियमित मिट्टी परीक्षण से जिंक और अन्य पोषक तत्वों की कमी का पता चलता है। अगर खेत में लगातार एक ही फसल उगाई जा रही है, तो फसल चक्र अपनाने से मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है। यह न केवल खैरा रोग को रोकता है, बल्कि फसल की पैदावार भी बढ़ाता है। किसान अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र या राजकीय कृषि केंद्र से संपर्क कर मिट्टी की जांच और सही उर्वरक की सलाह ले सकते हैं। इससे नुकसान कम होगा और मुनाफा ज्यादा।

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  • Rahul

    मेरा नाम राहुल है। मैं उत्तर प्रदेश से हूं और संभावना इंस्टीट्यूट से पत्रकारिता में शिक्षा प्राप्त की है। मैं krishitak.com पर लेखक हूं, जहां मैं खेती-किसानी, कृषि योजनाओं पर केंद्रित आर्टिकल लिखता हूं। अपनी रुचि और विशेषज्ञता के साथ, मैं पाठकों को लेटेस्ट और उपयोगी जानकारी प्रदान करने का प्रयास करता हूं।

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