पंजाब लैंड पूलिंग पॉलिसी पर हाई कोर्ट की रोक: किसानों की जीत, AAP पर दबाव

पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने गुरुवार, 7 अगस्त 2025 को पंजाब सरकार की लैंड पूलिंग पॉलिसी 2025 पर अंतरिम रोक लगा दी। लुधियाना के फागला गांव के किसान गुरदीप सिंह गिल और अन्य की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए, जस्टिस अनुपिंदर सिंह ग्रेवाल और जस्टिस दीपक मनचंदा की बेंच ने सरकार से कड़े सवाल पूछे। कोर्ट ने पूछा कि क्या नीति लागू करने से पहले सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (SIA और EIA) किया गया।

साथ ही, भूमिहीन मजदूरों और जमीन पर निर्भर अन्य लोगों के पुनर्वास के लिए क्या प्रावधान हैं। पंजाब के एडवोकेट जनरल मनिंदरजीत सिंह ने कोर्ट को आश्वासन दिया कि अगली सुनवाई तक नीति पर कोई कदम नहीं उठाया जाएगा। कोर्ट ने 8 अगस्त को अगली सुनवाई तय की है, जब तक नीति पर रोक जारी रहेगी। यह फैसला किसानों और विपक्ष के लिए बड़ी राहत लेकर आया है।

किसानों का विरोध और नीति की खामियां

पंजाब सरकार ने जून 2025 में लैंड पूलिंग पॉलिसी को मंजूरी दी थी, जिसके तहत लुधियाना और मोहाली में करीब 65,000 एकड़ जमीन को आवासीय और औद्योगिक परियोजनाओं के लिए अधिग्रहित करने की योजना है। सरकार का दावा है कि यह नीति स्वैच्छिक है, जिसमें एक एकड़ जमीन के बदले 1,000 वर्ग गज आवासीय और 200 वर्ग गज व्यावसायिक प्लॉट दिए जाएंगे। हालांकि, किसानों और विपक्षी दलों ने इसे “जमीन हड़पने की साजिश” करार दिया।

लुधियाना के 26,000 एकड़ और मोहाली के 21,550 एकड़ जमीन को अधिसूचित करने के खिलाफ 1,600 से अधिक किसानों ने ग्रेटर लुधियाना एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी (GLADA) को हलफनामे सौंपे। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि नीति राइट टू फेयर कंपनसेशन एंड ट्रांसपेरेंसी इन लैंड एक्विजिशन, रिहैबिलिटेशन एंड रीसेटलमेंट एक्ट, 2013 (LARR एक्ट) का उल्लंघन करती है, क्योंकि इसमें ग्राम पंचायतों या ग्राम सभाओं से सलाह नहीं ली गई।

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कोर्ट के सवाल और कानूनी दांवपेंच

हाई कोर्ट ने सरकार से पूछा कि क्या नीति को लागू करने से पहले किसानों और भूमिहीन मजदूरों की सहमति ली गई। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के 2023 के फैसले का हवाला दिया, जिसमें पर्यावरणीय प्रभाव आकलन को अनिवार्य बताया गया था। याचिकाकर्ता गुरदीप सिंह गिल, जो 6 एकड़ जमीन के मालिक हैं, ने तर्क दिया कि नीति छोटे किसानों के लिए भेदभावपूर्ण है।

नीति के तहत 9 एकड़ जमीन देने वालों को 3 एकड़ ग्रुप हाउसिंग के लिए मिलता है, जबकि 50 एकड़ देने वालों को 30 एकड़ प्लॉटेड डेवलपमेंट के लिए मिलता है। गिल को उनकी 6 एकड़ जमीन के बदले केवल 1 एकड़ मिलेगा, जो संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है। कोर्ट ने नीति को “कलरेबल लेजिसलेशन” मानते हुए इसकी वैधता पर सवाल उठाए।

किसान नेता सरवन सिंह पंधेर ने कोर्ट के फैसले का स्वागत किया, लेकिन कहा कि जब तक सरकार नीति वापस नहीं लेती, विरोध जारी रहेगा। पंजाब कांग्रेस विधायक परगट सिंह ने इसे किसानों की जीत बताया और सरकार पर जमीन हड़पने का आरोप लगाया। शिरोमणि अकाली दल के नेता दलजीत सिंह चीमा ने कहा कि यह नीति कभी सफल नहीं होगी। सुखबीर बादल ने 1 सितंबर से पक्का मोर्चा शुरू करने की चेतावनी दी है। AAP ने इन आरोपों को खारिज करते हुए नीति को “किसान-हितैषी” बताया, लेकिन कोर्ट के फैसले ने सरकार पर दबाव बढ़ा दिया है।

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  • Shashikant

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