देशभर में इस समय आलू की फसल की सिंचाई का दौर चल रहा है। खासकर वे किसान जिन्होंने अक्टूबर-नवंबर में आलू की बुवाई की थी, वे अब दूसरे या तीसरे पानी की प्रक्रिया में जुटे हुए हैं। लेकिन ठंड के इस मौसम में आलू की फसल को सही पोषण देना बेहद जरूरी हो जाता है, ताकि कंद का आकार बड़ा हो और उत्पादन अधिक मिले। इसके लिए किसान एक बेहद सस्ती और कारगर तकनीक अपनाकर शानदार परिणाम पा सकते हैं।
क्या है मटका खाद और क्यों जरूरी है?
मटका खाद एक देसी तकनीक है, जो न सिर्फ फसल की ग्रोथ को तेज करती है, बल्कि बीमारियों से भी बचाती है। खेत की मिट्टी में जैविक तत्व (कार्बनिक मैटर) जितना अधिक होगा, आलू का कंद उतना बड़ा और अच्छा बनेगा।इसके लये आलू की बुवाई के समय 10 टन प्रति एकड़ कंपोस्ट खाद डालनी चाहिए और बाद में मिट्टी चढ़ाते समय भी थोड़ा-सा खाद देना जरूरी होता है। लेकिन असली जादू सिंचाई से पहले मटका खाद के उपयोग में छुपा है।
कैसे बनाएं मटका खाद
मटका खाद तैयार करने के लिए निम्न सामग्री की जरूरत होती है
- 20 किलो देसी गाय का गोबर
- 20 लीटर देसी गाय का गोमूत्र (ताजा या पुराना)
- 2 किलो उड़द दाल का आटा
- 2 किलो सरसों की खली
- 2 किलो गुड़
इन सभी चीजों को अच्छे से मिलाकर 5 दिन तक छोड़ दें। फिर इसे ज्यादा मात्रा में पानी में मिलाकर फसल में सिंचाई से पहले छिड़काव करें।
मटका खाद का फायदा
मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ जितना अधिक होगा, आलू के कंद उतने ही बड़े होंगे। जब किसान आलू की रोपाई करते हैं, तो 10 टन प्रति एकड़ कंपोस्ट खाद डालते हैं। इसके बाद मिट्टी चढ़ाने के दौरान भी थोड़ा सा कंपोस्ट खाद देना चाहिए। लेकिन असली फायदा तब मिलेगा जब सिंचाई से पहले मटका खाद का प्रयोग किया जाएगा।
किसानों के लिए फायदेमंद देसी तकनीक
यह देसी तकनीक कम लागत में अधिक उत्पादन देने वाली है और मिट्टी की उर्वरता भी बनाए रखती है। किसानों को इस विधि को अपनाकर आलू की खेती में बेहतर लाभ उठाना चाहिए। अगर आप भी अपने आलू की फसल में सुधार चाहते हैं, तो आज ही मटका खाद बनाकर इसे आजमाएं और अपनी उपज को बढ़ाएं।
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