5000 रुपये प्रति किलो के भाव पर बिकता है यह जीरा, इसके गुणों के कायल हो जाएंगे आप

किसान भाइयों, हमारे खेतों में कुछ ऐसी फसलें हैं, जो न सिर्फ़ मुनाफा देती हैं, बल्कि हमारी संस्कृति और सेहत को भी समृद्ध बनाती हैं। ऐसा ही एक रत्न है काला जीरा, जिसे बूनियम पर्सिकम बायोस के नाम से भी जाना जाता है। हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में उगने वाला ये मसाला अपने औषधीय गुणों और तीखी खुशबू के लिए दुनिया भर में मशहूर है। चाहे खाने का ज़ायका बढ़ाना हो या आयुर्वेदिक दवाएँ बनाना, काला जीरा हर जगह छा जाता है। आइए, जानें कि काला जीरा क्या है, इसकी खेती कैसे करें, और ये हमारे खेतों के लिए क्यों खास है।

काला जीरा, स्वाद और सेहत का खज़ाना

काला जीरा, जिसे माको जीरा भी कहते हैं, एक बारहमासी पौधा है, जो हल्की कड़वाहट और तेज़ सुगंध के लिए जाना जाता है। आम जीरे के मुकाबले इसके दाने छोटे, पतले, और गहरे काले होते हैं। इसकी महक इतनी तेज़ है कि 30 मीटर दूर से भी महसूस की जा सकती है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के वैज्ञानिकों की मानें, तो काला जीरा न सिर्फ़ खाने में ज़ायका बढ़ाता है, बल्कि पेट दर्द, गैस, और त्वचा रोगों में भी दवा का काम करता है। सर्दियों में इसकी गर्म तासीर शरीर को गर्म रखती है।

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हिमाचल के खेतों में काला जीरा

यह जीरा हिमाचल के किन्नौर, कुल्लू, चंबा, शिमला, सिरमौर, लाहौल-स्पीति, पांगी, और भरमौर जैसे ऊँचे पहाड़ी इलाकों में 1850 से 3100 मीटर की ऊँचाई पर उगता है। पहले ये जंगलों में प्राकृतिक रूप से मिलता था, लेकिन अब किसान इसे खेतों में उगा रहे हैं। खासकर किन्नौर के शौंग और बुरुआ जैसे ग्रामीण इलाकों में, इसे सेब के बागों के नीचे उगाया जा रहा है। ये फसल दो साल में तैयार होती है, और इसकी देखभाल से प्रति हेक्टेयर 150-200 क्विंटल उत्पादन हो सकता है। किन्नौर के किसानों ने इसकी खेती को अपनी आर्थिक मज़बूती का आधार बना लिया है।

खेती का आसान तरीका

काला जीरा की खेती के लिए ठंडा और नम जलवायु सबसे अच्छा है। किन्नौर और लाहौल-स्पीति जैसे इलाकों में मई-जून में बीज बोया जाता है। दोमट मिट्टी, जिसमें अच्छी जल निकासी हो, इसके लिए उपयुक्त है। खेत में प्रति हेक्टेयर 5-7 टन सड़ी गोबर खाद डालें। बीज को बोने से पहले 2-3 घंटे गोमूत्र में भिगोएँ, ताकि फफूंद से बचाव हो। 2-3 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर काफी हैं। बीज को 1-2 सेंटीमीटर गहराई पर बोएँ और हल्की सिंचाई करें। पहले साल में पौधे बढ़ते हैं, और दूसरे साल में बीज तैयार होते हैं।

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काला जीरा की बाज़ार माँग

इसकी माँग भारत और विदेशों में बहुत ज़्यादा है। दिल्ली के बाज़ारों में ये 3000 से 5000 रुपये प्रति किलोग्राम बिकता है, जबकि किन्नौर में इसकी कीमत 1500 रुपये प्रति किलोग्राम तक है। इसका कारण इसकी कम उपलब्धता और उच्च औषधीय मूल्य है। कटाई के एक महीने बाद भी ये बाज़ार में मिलना मुश्किल हो जाता है। किन्नौरी काला जीरा को 4 मार्च 2019 को भौगोलिक संकेत (GI) टैग मिला, जिसने इसकी वैश्विक पहचान को और बढ़ाया।

काला जीरा, किसानों की उम्मीद

काला जीरा हिमाचल के किसानों के लिए सोने की खान है। इसकी खेती न सिर्फ़ आर्थिक मज़बूती देती है, बल्कि पहाड़ी इलाकों की मिट्टी और संस्कृति को भी सहेजती है। किन्नौर के शौंग जैसे ग्रामीण इलाकों में 51 हेक्टेयर में इसकी खेती हो रही है, और ये संख्या बढ़ रही है। GI टैग और बढ़ती माँग के साथ ये फसल किसानों की कमाई को नई ऊँचाइयों तक ले जा सकती है। हिमाचल, उत्तराखंड, या जम्मू-कश्मीर के किसान भाई इस फसल को अपनाएँ और अपने खेतों को समृद्ध बनाएँ।

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  • Dharmendra

    मै धर्मेन्द्र एक कृषि विशेषज्ञ हूं जिसे खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी साझा करना और नई-नई तकनीकों को समझना बेहद पसंद है। कृषि से संबंधित लेख पढ़ना और लिखना मेरा जुनून है। मेरा उद्देश्य है कि किसानों तक सही और उपयोगी जानकारी पहुंचे ताकि वे अधिक उत्पादन कर सकें और खेती को एक लाभकारी व्यवसाय बना सकें।

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