किसान साथियों, हमारे खेतों की ताकत सिर्फ़ अनाज उगाने तक सीमित नहीं है। पेड़ आधारित खेती, यानी एग्रोफॉरेस्ट्री, न सिर्फ़ भोजन और पोषण देती है, बल्कि मिट्टी को उपजाऊ बनाती है, पर्यावरण को बचाती है, और किसानों की जेब को मज़बूत करती है। ये खेती का वो तरीका है, जो एक साथ भोजन, आय, और धरती की हिफाज़त का वादा करता है। उत्तर प्रदेश, बिहार, और पंजाब जैसे राज्यों में किसान खेत की मेड़ों पर आम, नीम, और शीशम लगाकर अपनी कमाई दोगुनी कर रहे हैं। आइए, जानें कि पेड़ आधारित खेती कैसे हमारे खेतों को समृद्ध बना रही है और इसे कैसे शुरू करें।
भोजन और पोषण का खज़ाना
पेड़ आधारित खेती हमारे खेतों को भोजन का भंडार बनाती है। फलदार पेड़ जैसे आम, अमरूद, कटहल, और नींबू सीधे तौर पर पोषक फल देते हैं, जो परिवार की सेहत और बाज़ार में बिक्री दोनों के लिए फायदेमंद हैं। दालदार पेड़ जैसे सुबबूल और अरहर मिट्टी में नाइट्रोजन जोड़ते हैं, जिससे गेहूँ, चावल, और मक्का जैसी फसलों की पैदावार बढ़ती है। चारा पेड़ जैसे बरसीम, ग्लिरिसिडिया, और शीशम पशुओं को पौष्टिक चारा देते हैं, जिससे दूध और मांस का उत्पादन बढ़ता है। मिश्रित खेती, यानी अनाज, सब्ज़ी, और पेड़ों का मेल, साल भर भोजन और आय का ज़रिया बनता है। ये तरीका सुनिश्चित करता है कि किसान भाई हर मौसम में कुछ न कुछ कमा सकें।
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पर्यावरण का सच्चा दोस्त
इस तरीके से खेती पर्यावरण की रक्षा में एक शक्तिशाली हथियार है। पेड़ कार्बन डाइऑक्साइड सोखकर हवा को साफ़ करते हैं और जलवायु परिवर्तन से लड़ने में मदद करते हैं। इनकी गहरी जड़ें मिट्टी को कटाव से बचाती हैं, खासकर बरसात के मौसम में। पेड़ भूजल स्तर को बनाए रखते हैं, जिससे कुएँ और तालाब सूखने से बचते हैं। खेतों में जैव विविधता बढ़ती है, जैसे पक्षी, मधुमक्खियाँ, और केंचुए, जो प्राकृतिक संतुलन को मज़बूत करते हैं। उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में किसान नीम और शीशम लगाकर मिट्टी की उर्वरता बढ़ा रहे हैं, जिससे उनकी फसलें ज़्यादा स्वस्थ हो रही हैं।
मुनाफे का सुनहरा अवसर
पेड़ आधारित खेती किसानों के लिए मुनाफे का सौदा है। फल और लकड़ी बेचकर अतिरिक्त आय मिलती है। आम और अमरूद के पेड़ 5-7 साल में फल देने लगते हैं, जिन्हें 100-150 रुपये प्रति किलो तक बेचा जा सकता है। शीशम और सागौन जैसी लकड़ी 15-20 साल में लाखों रुपये की कमाई देती है। पेड़ मिट्टी को उपजाऊ बनाते हैं, जिससे रासायनिक खाद और कीटनाशकों का खर्च कम होता है। सूखा या बाढ़ जैसी आपदाओं में पेड़ खेतों को सुरक्षा कवच देते हैं, क्योंकि इनकी जड़ें मिट्टी को मज़बूत रखती हैं। लंबे समय में ये खेती लागत घटाती है और शुद्ध मुनाफा बढ़ाती है।
भारत और दुनिया में बढ़ता चलन
भारत में पेड़ आधारित खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने राष्ट्रीय एग्रोफॉरेस्ट्री नीति 2014 शुरू की है। उत्तर प्रदेश, बिहार, और पंजाब में किसान खेत की मेड़ों पर नीम, शीशम, और आम जैसे पेड़ लगा रहे हैं। X पर @UPGovt ने 10 अगस्त 2025 को बताया कि यूपी में 2.5 लाख हेक्टेयर में एग्रोफॉरेस्ट्री अपनाई गई है, जिससे किसानों की आय 20-30% बढ़ी है। अफ्रीका में “एवरग्रीन एग्रीकल्चर” मॉडल से मक्का और फलदार पेड़ों की मिश्रित खेती ने लाखों किसानों की कमाई दोगुनी की है। लैटिन अमेरिका में कॉफी और केले के साथ पेड़ों की खेती से पर्यावरण और आय दोनों को लाभ हुआ है। ये मॉडल्स हमारे किसानों के लिए प्रेरणा हैं।
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शुरू करने का आसान तरीका
पेड़ आधारित खेती (Tree-Based Farming) शुरू करना आसान है। खेत की मेड़ों पर नीम, शीशम, या आम जैसे पेड़ लगाएँ। प्रति हेक्टेयर 100-150 पेड़ काफी हैं। बुवाई से पहले मिट्टी की जाँच करवाएँ और 5-7 टन गोबर खाद डालें। पेड़ों को शुरुआती 2-3 साल में हल्की सिंचाई और खरपतवार नियंत्रण की ज़रूरत होती है। सरकार की सब्सिडी योजनाओं, जैसे राष्ट्रीय बागवानी मिशन या PMKSY, का लाभ उठाएँ। नज़दीकी वन विभाग या कृषि विज्ञान केंद्र से मुफ्त पौधे और सलाह लें। फल और लकड़ी बेचने के लिए e-NAM या PM-AASHA पोर्टल पर रजिस्टर करें। अगर कोई दिक्कत हो, तो टोल-फ्री नंबर 1800-180-1551 पर संपर्क करें।
पेड़ आधारित खेती भोजन, मुनाफा, और पर्यावरण की सेहत का एक साथ समाधान है। ये न सिर्फ़ किसानों की आय बढ़ाती है, बल्कि धरती को हरा-भरा रखती है। उत्तर प्रदेश के किसान भाई इस क्रांति का हिस्सा बन रहे हैं, और आप भी बन सकते हैं। अपने खेतों में नीम, आम, या शीशम लगाएँ और भविष्य की पीढ़ियों के लिए समृद्ध धरती छोड़ें।
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