American Bhutta: अमेरिकन भुट्टे, जिसे मक्का या कॉर्न के नाम से भी जाना जाता है, एक महत्वपूर्ण फसल है जो भारत में व्यापक रूप से उगाई जाती है। यह न केवल मानव आहार के लिए उपयोगी है, बल्कि पशु आहार और औद्योगिक उत्पादों के लिए भी इसकी मांग है। मार्च का महीना अमेरिकन भुट्टे की खेती के लिए एक उपयुक्त समय हो सकता है, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ मौसम समशीतोष्ण और नमी युक्त हो। इस लेख में हम मार्च में अमेरिकन भुट्टे की खेती के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।
मिट्टी और जलवायु
अमेरिकन भुट्टे की खेती के लिए उपजाऊ, अच्छी जल निकासी वाली दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। मिट्टी का pH मान 5.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए। मार्च के महीने में तापमान धीरे-धीरे बढ़ने लगता है, जो मक्का के अंकुरण और विकास के लिए अनुकूल होता है। मक्का के लिए 21°C से 30°C का तापमान आदर्श माना जाता है।
खेत की तैयारी
मक्का की खेती के लिए खेत की अच्छी तरह से तैयारी करना आवश्यक है। खेत को 2-3 बार जोतकर मिट्टी को भुरभुरा बना लेना चाहिए। खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था करें ताकि पानी का जमाव न हो। खेत में जैविक खाद या गोबर की खाद डालकर मिट्टी की उर्वरता बढ़ाई जा सकती है।
बीज की बुआई
मार्च में बीज की बुआई करते समय यह सुनिश्चित करें कि बीज उच्च गुणवत्ता वाले और रोगमुक्त हों। बीज की बुआई के लिए कतार से कतार की दूरी 60-75 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 20-25 सेमी रखी जाती है। बीज को 3-5 सेमी की गहराई पर बोना चाहिए। बुआई के बाद हल्की सिंचाई करें ताकि बीज को अंकुरित होने के लिए पर्याप्त नमी मिल सके।
सिंचाई और उर्वरक प्रबंधन
मक्का की फसल को नियमित सिंचाई की आवश्यकता होती है। मार्च के महीने में तापमान बढ़ने लगता है, इसलिए सिंचाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए। बुआई के बाद पहली सिंचाई 5-7 दिनों के अंतराल पर करें। फसल के विकास के दौरान, विशेषकर फूल आने और दाने बनने के समय, सिंचाई की आवश्यकता अधिक होती है। हालांकि, खेत में पानी का जमाव न होने दें, क्योंकि इससे फसल को नुकसान हो सकता है।
मक्का की अच्छी पैदावार के लिए उर्वरकों का सही प्रबंधन आवश्यक है। खेत की तैयारी के समय 10-15 टन गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर की दर से डालें। रासायनिक उर्वरकों में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश का उपयोग किया जाता है। सामान्यतः 120-150 किग्रा नाइट्रोजन, 60-80 किग्रा फॉस्फोरस और 40-60 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से डाला जाता है। नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुआई के समय और शेष आधी मात्रा फसल के विकास के दौरान दें।
खरपतवार नियंत्रण
खरपतवार फसल की पैदावार को प्रभावित कर सकते हैं, इसलिए इनका नियंत्रण आवश्यक है। बुआई के 20-25 दिनों बाद पहली निराई-गुड़ाई करें। दूसरी निराई-गुड़ाई 40-45 दिनों बाद करें। खरपतवार नियंत्रण के लिए रासायनिक खरपतवारनाशकों का भी उपयोग किया जा सकता है, लेकिन इनका उपयोग सावधानीपूर्वक और विशेषज्ञों की सलाह पर ही करें।
रोग और कीट प्रबंधन
मक्का की फसल को कई तरह के रोग और कीट प्रभावित कर सकते हैं। मक्का का तना छेदक, फुदका, और गोधूम जैसे कीट फसल को नुकसान पहुँचा सकते हैं। रोगों में पत्ती धब्बा, तना सड़न और कंडवा रोग प्रमुख हैं। कीट और रोगों के नियंत्रण के लिए समय-समय पर फसल का निरीक्षण करें और आवश्यकता पड़ने पर कीटनाशक या फफूंदनाशक का उपयोग करें। जैविक नियंत्रण विधियों को प्राथमिकता देना बेहतर होता है।
कब करें कटाई
मक्का की फसल लगभग 90-120 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। जब भुट्टे के बाल पीले पड़ जाएँ और दाने सख्त हो जाएँ, तो फसल कटाई के लिए तैयार होती है। कटाई के बाद भुट्टों को सुखाकर दाने निकाल लें। दानों को साफ करके सूखे और हवादार स्थान पर भंडारित करें। भंडारण के दौरान नमी और कीटों से बचाव के लिए उचित प्रबंधन करें।
मार्च में अमेरिकन भुट्टे की खेती करना एक लाभदायक विकल्प हो सकता है, बशर्ते कि सही तकनीक और प्रबंधन का उपयोग किया जाए। मिट्टी की तैयारी, बीज की गुणवत्ता, सिंचाई, उर्वरक प्रबंधन, और रोग-कीट नियंत्रण जैसे पहलुओं पर ध्यान देकर किसान अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकते हैं। मक्का की खेती न केवल किसानों के लिए आर्थिक लाभ प्रदान करती है, बल्कि यह देश की खाद्य सुरक्षा में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
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