खेती में उन्नत किस्में हमेशा किसानों के लिए वरदान साबित होती हैं। हाल ही में करनाल स्थित भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान (IIWBR) ने एक नई गेहूं किस्म DBW-371, जिसे “करण वृंदा” भी कहा जाता है, किसानों के लिए जारी की है। यह किस्म खासतौर पर उत्तर भारत के उन इलाकों के लिए विकसित की गई है, जहाँ अक्टूबर-नवंबर में गेहूं बोई जाती है और खेतों में सिंचाई की बेहतर सुविधा मौजूद होती है।
DBW-371 किस्म की प्रमुख विशेषताएँ
DBW-371 किस्म को इसकी ज्यादा पैदावार और पौष्टिक दानों के लिए जाना जाता है। औसतन यह किस्म 75 से 76 क्विंटल प्रति हेक्टेयर (30-31 क्विंटल प्रति एकड़) उपज देती है। अगर खेती की सही तकनीक अपनाई जाए तो किसान भाई इसकी पैदावार 87 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त कर सकते हैं।
इस किस्म को तैयार होने में लगभग 147 से 153 दिन (करीब 5 महीने) लगते हैं। पौधे की ऊंचाई लगभग 1 मीटर होती है और यह हवा या पानी के दबाव से गिरता नहीं है। एक पौधे से कई टिलर निकलते हैं, जिससे दानों की संख्या बढ़ जाती है और उपज अच्छी मिलती है।
इसके दाने बड़े और चमकदार होते हैं। 1000 दानों का औसत वजन 46 ग्राम है। इस किस्म से बनी रोटी मुलायम और स्वादिष्ट होती है। इसमें आयरन (44.9 ppm) और जिंक (40 ppm) की मात्रा भी अधिक पाई जाती है, जो पोषण के लिहाज से इसे खास बनाती है।
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DBW-371 को कहाँ और कब बोना चाहिए?
यह किस्म मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान, जम्मू-कश्मीर (जम्मू और कठुआ), हिमाचल प्रदेश (उना) और उत्तराखंड (तराई क्षेत्र) में बोने के लिए उपयुक्त है।
इसे बोने का सबसे सही समय अक्टूबर के अंतिम सप्ताह से लेकर नवंबर के पहले सप्ताह तक है। अगर बुवाई देर से (दिसंबर-जनवरी में) की जाए तो पैदावार पर असर पड़ सकता है।
बीज की मात्रा और उपलब्धता
DBW-371 गेहूं की बुवाई के लिए प्रति एकड़ लगभग 40 किलो बीज (100 किलो प्रति हेक्टेयर) की आवश्यकता होती है। किसान भाई इस किस्म का बीज IIWBR करनाल के पोर्टल से आवेदन कर प्राप्त कर सकते हैं।
DBW-371 (करण वृंदा) गेहूं किस्म किसानों के लिए एक बेहतरीन विकल्प है। इसकी उपज ज्यादा है, दाने पोषक तत्वों से भरपूर हैं और इससे बनी रोटी का स्वाद भी बेहतर है। अगर किसान भाई समय पर बुवाई करें और उचित खेती तकनीक अपनाएँ तो इस किस्म से उन्हें पारंपरिक गेहूं किस्मों की तुलना में कहीं ज्यादा फायदा होगा।
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