मटर भारत की प्रमुख रबी सब्ज़ी है, जो किसानों की आय और पोषण दोनों के लिहाज़ से महत्वपूर्ण मानी जाती है। मटर में प्रोटीन, विटामिन और खनिज तत्व अच्छी मात्रा में पाए जाते हैं, जिससे यह घरेलू खपत और बाजार दोनों के लिए अहम है। मटर की कई उन्नत किस्में विकसित की गई हैं, जिनमें अर्ली बैजर (Early Badger) एक ऐसी विदेशी किस्म है जो जल्दी तैयार होती है और कम समय में किसानों को अच्छा मुनाफा दिला सकती है। यह किस्म मूल रूप से अमेरिका और यूरोप जैसे देशों से आई हुई मानी जाती है और अब भारत के कई राज्यों में इसकी खेती की जा रही है।
पकने का समय और उपज क्षमता
अर्ली बैजर मटर की सबसे बड़ी खासियत है कि यह केवल 50 से 60 दिनों में तैयार हो जाती है। इसकी फलियाँ गहरे हरे रंग की और लगभग 6 से 7 सेंटीमीटर लंबी होती हैं। उचित प्रबंधन और अनुकूल मौसम में इससे प्रति हेक्टेयर 100 से 150 क्विंटल तक हरी फलियों की उपज ली जा सकती है। जल्दी तैयार होने के कारण यह किस्म बाजार में सबसे पहले पहुँचती है और किसानों को ऊँचे दाम दिला सकती है।
खेती का मौसम और बुवाई का समय
अर्ली बैजर मटर की खेती के लिए रबी मौसम सबसे उपयुक्त है। इसकी बुवाई सितंबर के अंतिम सप्ताह से लेकर अक्टूबर के पहले सप्ताह तक करनी चाहिए। यदि बुवाई में देरी हो जाए तो उपज घट सकती है और फलियों की गुणवत्ता पर भी असर पड़ता है। उत्तर भारत जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, हरियाणा और उत्तराखंड में इसकी बुवाई इसी समय होती है, जबकि दक्षिण भारत और पहाड़ी इलाकों में इसे सितंबर-अक्टूबर और मार्च-अप्रैल दोनों मौसम में बोया जा सकता है।
मिट्टी की आवश्यकताएँ
मटर की खेती के लिए दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। अर्ली बैजर मटर को ऐसी मिट्टी चाहिए जिसमें जल निकासी अच्छी हो और pH 6 से 7.5 के बीच हो। खेत की तैयारी करते समय 20-25 टन गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर मिलाना लाभकारी होता है। इससे मिट्टी की उर्वरता और जलधारण क्षमता बढ़ती है।
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बीज और बुवाई की विधि
अर्ली बैजर मटर के बीज स्वस्थ और रोग-मुक्त होने चाहिए। बीज को बोने से पहले ट्राइकोडर्मा या थायरम जैसे जैविक उपचार से सँवारना चाहिए ताकि रोगों का खतरा कम हो सके। कतारों की दूरी लगभग 30-40 सेंटीमीटर और पौधों के बीच 10-15 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। इससे पौधों को पर्याप्त जगह मिलती है और फलियों का विकास अच्छा होता है।
खाद और पोषण प्रबंधन
मटर एक लेग्युम फसल है, जो वायुमंडल से नाइट्रोजन को स्वयं जोड़ लेती है। फिर भी शुरुआती विकास के लिए फॉस्फोरस और पोटाश की पर्याप्त मात्रा देना जरूरी है।
फॉस्फोरस: 60-70 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर
पोटाश: 40-50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर
नाइट्रोजन: 15-20 किलोग्राम शुरुआती अवस्था में
इसके साथ ही बोरॉन और मोलिब्डेनम जैसे सूक्ष्म पोषक तत्व फलियों की गुणवत्ता और उपज दोनों को बेहतर बनाते हैं।
सिंचाई प्रबंधन
अर्ली बैजर मटर कम पानी में भी उपज देने वाली किस्म है। फिर भी बुवाई के बाद हल्की सिंचाई करना जरूरी है। पौधों की वृद्धि और फूल आने के समय नियमित हल्की सिंचाई करनी चाहिए। जलभराव से बचना अनिवार्य है, क्योंकि इससे जड़ों में सड़न और रोग बढ़ने का खतरा रहता है।
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रोग और कीट प्रबंधन
इस किस्म पर एफिड, शूट फ्लाई और पत्तियों को नुकसान पहुँचाने वाले कीट हमला कर सकते हैं। रोगों में पाउडरी मिल्ड्यू और रस्ट सबसे आम हैं।
जैविक नियंत्रण: नीम तेल का छिड़काव और Bt स्प्रे कारगर होते हैं।
वैज्ञानिक सलाह अनुसार दवा: आवश्यकता पड़ने पर ICAR या KVK द्वारा अनुशंसित कीटनाशक/फफूंदनाशक का प्रयोग किया जा सकता है।
फसल चक्र अपनाना और लगातार एक ही खेत में मटर न बोना रोग दबाव को कम करता है।
कटाई और उत्पादन
फसल लगभग दो महीने में तैयार हो जाती है। हरी फलियों को सही समय पर तोड़ना जरूरी है, क्योंकि देर करने पर उनका स्वाद और रस घट जाता है। समय-समय पर फलियाँ तोड़ते रहने से नए फूल और फलियों का विकास होता है। बाजार में ताजा और आकर्षक फलियों को हमेशा ऊँचे दाम मिलते हैं।
अर्ली बैजर मटर की फलियाँ जल्दी तैयार होने के कारण बाजार में समय से पहले पहुँचती हैं। इस वजह से किसानों को ऊँचे दाम मिलते हैं। पैकेजिंग, सफाई और स्थानीय मंडियों में ताजा फलियाँ बेचने से मुनाफा और बढ़ जाता है।
अर्ली बैजर मटर किसानों के लिए एक बेहतरीन विकल्प है। यह जल्दी तैयार होती है, कम पानी और कम लागत में ज्यादा उपज देती है और बाजार में जल्दी पहुँचने के कारण अच्छी कीमत दिलाती है। सही समय पर बुवाई, संतुलित पोषण प्रबंधन, रोग और कीट नियंत्रण अपनाकर किसान भाई इस किस्म से शानदार मुनाफा कमा सकते हैं।
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