UP किसानों के लिए गेहूं की बेहतरीन किस्में: उत्तर प्रदेश भारत का गेहूं उत्पादन का सबसे बड़ा केंद्र है, जो देश की कुल पैदावार का 35-36% हिस्सा देता है। गंगा-यमुना की उपजाऊ दोमट मिट्टी, नहरों और ट्यूबवेल से उन्नत सिंचाई, और ठंडी-नम जलवायु इस राज्य को गेहूं खेती का स्वर्ग बनाती है। पश्चिमी यूपी (मेरठ, सहारनपुर, अलीगढ़) में सिंचित खेत और पूर्वी यूपी (वाराणसी, गोरखपुर, बलिया) में नम मिट्टी गेहूं की विविध किस्मों के लिए अनुकूल है। लेकिन बंपर उपज, बेहतर दाना गुणवत्ता, और रोग प्रतिरोध के लिए सही किस्म का चयन महत्वपूर्ण है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के अनुसार, सही किस्म और वैज्ञानिक खेती से यूपी के किसान 50-60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज और 1-1.5 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर मुनाफा पा सकते हैं। इस लेख में यूपी की 10 सबसे प्रभावी गेहूं किस्मों को विस्तार से बताया जायेगा, ताकि किसान अपनी जरूरत के हिसाब से सही विकल्प चुन सकें।
HD-2967 (पुसा): पश्चिमी यूपी का सुपरस्टार
HD-2967, जिसे पुसा के नाम से जाना जाता है, पश्चिमी यूपी के किसानों की पहली पसंद है। यह किस्म 50-55 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की बंपर उपज देती है और समय पर बुवाई (15-25 नवंबर) के लिए आदर्श है। इसकी खासियत है भूरा और पीला रतुआ रोगों के प्रति उच्च प्रतिरोधकता, जो फसल को स्वस्थ रखती है। दाने चमकदार और भारी (42-45 ग्राम/1000 दाने) होते हैं, जिनमें प्रोटीन 11-12% और उच्च ग्लूटेन इंडेक्स होता है, जो चपाती और बेकरी उत्पादों के लिए प्रीमियम बनाता है
। मेरठ और सहारनपुर के सिंचित खेतों में यह किस्म शानदार प्रदर्शन करती है। ICAR के अनुसार, HD-2967 की बुवाई 20-25 डिग्री सेल्सियस तापमान में करने से अंकुरण तेज और उपज स्थिर रहती है। यह किस्म मध्यम अवधि (135-140 दिन) में पकती है।
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UP-2338: पूर्वी यूपी की जलवायु का साथी
UP-2338 उत्तर प्रदेश में विकसित एक ऐसी किस्म है, जो पूर्वी यूपी की नम मिट्टी और देर से बुवाई (20 नवंबर-10 दिसंबर) के लिए खास तौर पर उपयुक्त है। यह 45-50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती है और सूखा व गर्मी तनाव को सहन करने की क्षमता रखती है। भूरा रतुआ और हेल्मिन्थोस्पोरियम लीफ स्पॉट के प्रति मध्यम प्रतिरोध इसे वाराणसी, गोरखपुर, और बलिया जैसे क्षेत्रों में भरोसेमंद बनाता है।
दाने की गुणवत्ता अच्छी (40-42 ग्राम/1000 दाने) और चपाती का स्वाद उम्दा होता है। एक स्टडी में पाया गया कि UP-2338 ने पूर्वी यूपी में देर से बुवाई में 10-15% अधिक उपज दी। यह 140-145 दिन में पकती है और दोमट मिट्टी (pH 6.5-7.5) में शानदार प्रदर्शन करती है।
HD-3086 (पुसा गौतमी): गुणवत्ता और उपज का मेल
HD-3086, जिसे पुसा गौतमी भी कहते हैं, पश्चिमी यूपी के सिंचित खेतों के लिए समय पर बुवाई (15-25 नवंबर) में सबसे अच्छा प्रदर्शन करती है। यह 50-55 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती है और उच्च प्रोटीन (12%) और ग्लूटेन इंडेक्स के साथ बेकरी उद्योग में लोकप्रिय है। भूरा और पीला रतुआ के प्रति इसकी सहनशीलता रासायनिक छिड़काव की लागत 20% तक कम करती है। पौधे की ऊंचाई 90-95 सेंटीमीटर होने से लॉजिंग (फसल गिरना) का खतरा कम रहता है। अलीगढ़ और बरेली में इस किस्म ने बाजार में 2600-2800 रुपये प्रति क्विंटल की प्रीमियम कीमत दिलाई। यह 135-140 दिन में पकती है और दोमट मिट्टी में बेस्ट परिणाम देती है।
DBW-187 (करण वंदना): पौष्टिकता का खजाना
DBW-187, जिसे करण वंदना के नाम से जाना जाता है, पूर्वी यूपी में तेजी से लोकप्रिय हो रही है। यह बायोफोर्टिफाइड किस्म है, जिसमें आयरन और जिंक की उच्च मात्रा (40-45 ppm) होती है, जो इसे पौष्टिक बनाती है। औसत उपज 50-55 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है, और यह 20 नवंबर-10 दिसंबर की बुवाई के लिए उपयुक्त है। भूरा रतुआ और स्मट के प्रति उच्च प्रतिरोध इसे गाजीपुर और बस्ती जैसे नम क्षेत्रों में भरोसेमंद बनाता है। कृषक जगत के अनुसार, DBW-187 ने पूर्वी यूपी में उपज को 12-15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर बढ़ाया। यह 140-145 दिन में पकती है और दाने की गुणवत्ता (42 ग्राम/1000 दाने) बाजार में मांग बढ़ाती है।
PBW-343: पुरानी लेकिन भरोसेमंद
PBW-343 एक पुरानी किस्म है, जो अभी भी यूपी के कई हिस्सों में अपनी स्थिर उपज (45-50 क्विंटल/हेक्टेयर) के लिए पसंद की जाती है। यह समय पर (15-25 नवंबर) और देर से बुवाई (25 नवंबर-10 दिसंबर) दोनों में अच्छा प्रदर्शन करती है। भूरा रतुआ और पाउडरी मिल्ड्यू के प्रति मध्यम प्रतिरोध के साथ यह दोमट और बलुई-दोमट मिट्टी में उपयुक्त है। दाने का वजन 40-42 ग्राम/1000 दाने और चपाती की गुणवत्ता अच्छी होती है। यह 135-140 दिन में पकती है। पश्चिमी और पूर्वी यूपी में छोटे किसान इसे इसकी विश्वसनीयता के लिए चुनते हैं।
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PBW-550 और उन्नत लाइनें: देर बुवाई का सहारा
PBW-550 और इसकी उन्नत लाइनें देर से बुवाई (25 नवंबर-10 दिसंबर) के लिए डिज़ाइन की गई हैं, जो पूर्वी यूपी के किसानों के लिए वरदान है। यह 45-50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती है और रतुआ रोगों के प्रति मध्यम प्रतिरोध दिखाती है। पौधे की ऊंचाई 85-90 सेंटीमीटर होने से तेज हवाओं में भी स्थिर रहती है। दाने की गुणवत्ता (40 ग्राम/1000 दाने) और प्रोटीन (11%) इसे बाजार में प्रतिस्पर्धी बनाती है। यह 140-145 दिन में पकती है और नम मिट्टी में अच्छा प्रदर्शन करती है। ICAR की सलाह है कि देर बुवाई में PBW-550 की बीज दर 125-140 किलो/हेक्टेयर रखें।
WH-1105: बेकरी की पसंद
WH-1105 अपनी उच्च दाना गुणवत्ता (12% प्रोटीन, उच्च ग्लूटेन इंडेक्स) के लिए जानी जाती है, जो बेकरी और चपाती दोनों के लिए आदर्श है। यह 50-55 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती है और समय पर बुवाई (15-25 नवंबर) में पश्चिमी यूपी के लिए उपयुक्त है। भूरा और पीला रतुआ के प्रति अच्छी सहनशीलता इसे रासायनिक खर्च में कमी लाती है। पौधे की ऊंचाई 90-95 सेंटीमीटर और 135-140 दिन की परिपक्वता इसे स्थिर बनाती है। मेरठ और मुजफ्फरनगर में इसकी मांग प्रीमियम कीमत (2600 रुपये/क्विंटल) के लिए है।
HD-3386: नया रतुआ-प्रतिरोधी सितारा
HD-3386 एक नई किस्म है, जो पीला और भूरा रतुआ के प्रति उच्च प्रतिरोधकता के लिए जानी जाती है। यह पश्चिमी और पूर्वी यूपी दोनों में 50-55 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती है। समय पर और देर से बुवाई दोनों में यह अच्छा प्रदर्शन करती है। दाने का वजन 42-44 ग्राम/1000 दाने और प्रोटीन 11-12% इसे बाजार में लोकप्रिय बनाता है। यह 135-140 दिन में पकती है और दोमट मिट्टी में उपयुक्त है। कृषक जगत की एक रिपोर्ट में बताया गया कि HD-3386 ने यूपी में रतुआ से होने वाले नुकसान को 20% तक कम किया।
HD-3406 (उन्नत HD-2967): अपग्रेडेड शक्ति
HD-3406, HD-2967 का उन्नत संस्करण है, जो 55-60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज देती है। यह पश्चिमी यूपी के लिए समय पर बुवाई (15-25 नवंबर) में आदर्श है और रतुआ रोगों के प्रति बेहतर प्रतिरोध दिखाती है। दाने की गुणवत्ता (44 ग्राम/1000 दाने) और उच्च प्रोटीन (12%) इसे प्रीमियम बाजार में लोकप्रिय बनाती है। यह 135-140 दिन में पकती है और सिंचित खेतों में शानदार प्रदर्शन करती है। ICAR के अनुसार, HD-3406 की खेती से पश्चिमी यूपी में मुनाफा 15% तक बढ़ा।
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PBW-826: राष्ट्रीय ट्रायल्स का चैंपियन
PBW-826 हाल की राष्ट्रीय ट्रायल्स में शीर्ष प्रदर्शन करने वाली किस्म है, जो पूर्वी यूपी में तेजी से लोकप्रिय हो रही है। यह 50-55 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती है और भूरा रतुआ, स्मट, और पाउडरी मिल्ड्यू के प्रति उच्च प्रतिरोध दिखाती है। 20 नवंबर-10 दिसंबर की बुवाई के लिए उपयुक्त, यह नम मिट्टी और देर से बुवाई में बेहतर परिणाम देती है। दाने का वजन 42 ग्राम/1000 दाने और प्रोटीन 11-12% इसे बाजार में मांग वाली बनाता है। यह 140-145 दिन में पकती है।
बुवाई और प्रबंधन: उपज की नींव
गेहूं की बुवाई का समय यूपी के लिए क्षेत्र-विशिष्ट है। पश्चिमी यूपी में 15-25 नवंबर और पूर्वी यूपी में 20 नवंबर-10 दिसंबर तक बुवाई करें। ड्रिल विधि से 20-22 सेंटीमीटर पंक्ति दूरी और 2-3 सेंटीमीटर गहराई रखें। बीज दर समय पर बुवाई में 100-125 किलो/हेक्टेयर और देर से बुवाई में 125-140 किलो/हेक्टेयर रखें। बीज को कार्बेन्डाजिम (2 ग्राम/किलो) से उपचारित करें। उर्वरक के रूप में नाइट्रोजन 120 किलोग्राम, फॉस्फोरस 60 किलोग्राम, और पोटाश 40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर डालें। मिट्टी परीक्षण से जिंक और बोरॉन की कमी ठीक करें।
सिंचाई और रोग नियंत्रण
गेहूं को 4-5 बार सिंचाई चाहिए—CRI (20-25 दिन), टिलरिंग (40-45 दिन), बूटिंग (60-70 दिन), फ्लावरिंग (80-90 दिन), और ग्रेन फिलिंग (100-110 दिन)। ड्रिप सिस्टम से पानी बचता है। खरपतवार के लिए पेंडीमेथालिन (1 किलो/हेक्टेयर) और रोगों के लिए मैनकोजेब (2 किलो/हेक्टेयर) का छिड़काव करें। जैविक खेती में नीम तेल उपयोगी है।
प्रति हेक्टेयर लागत 50,000-60,000 रुपये और उपज 50-60 क्विंटल होने पर, 2400-2800 रुपये/क्विंटल की दर से आय 1.2-1.68 लाख रुपये होती है। शुद्ध मुनाफा 70,000-1.1 लाख रुपये है। प्रीमियम किस्में जैसे HD-3406 और WH-1105 अधिक दाम दिलाती हैं।
यूपी के किसान HD-2967, UP-2338, DBW-187 जैसी किस्मों और सही बुवाई समय से बंपर उपज और मुनाफा पा सकते हैं। इस रबी सीजन में सही कदम उठाएँ और खेत को समृद्धि का केंद्र बनाएँ।
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