छत्तीसगढ़ के किसानों के लिए अब मधुमक्खी पालन एक नया और मुनाफे वाला रास्ता बन रहा है। रायपुर का कृषि विज्ञान केंद्र इस दिशा में शानदार काम कर रहा है। पहले लोग सोचते थे कि छत्तीसगढ़ की जलवायु में मधुमक्खी पालन मुश्किल है, लेकिन केंद्र के विशेषज्ञ डॉ. चंद्रमणि साहू ने इसे संभव कर दिखाया। पिछले ढाई-तीन साल से वे खुद मधुमक्खी पालन कर रहे हैं और किसानों को इसकी बारीकियां सिखा रहे हैं। ये न सिर्फ शहद का बिजनेस शुरू करने का मौका देता है, बल्कि फसलों की पैदावार में भी 25 से 30 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी करता है।
मधुमक्खी पालन की वैज्ञानिक तकनीक
मधुमक्खी पालन में सफलता के लिए सही तकनीक का इस्तेमाल बहुत जरूरी है। डॉ. साहू बताते हैं कि सबसे बड़ी चुनौती है मधुमक्खियों की कॉलोनी को स्वस्थ रखना। अगर कीटों या बीमारियों से बचाव न किया जाए, तो कॉलोनी कमजोर हो सकती है और मधुमक्खियां उड़ सकती हैं। इसके लिए किसानों को वैज्ञानिक तरीके से देखभाल सीखनी पड़ती है। जैसे, मधुमक्खियों को सही समय पर भोजन देना, मौसम बदलने पर कॉलोनी को शिफ्ट करना, और कॉलोनी का सही तरीके से विभाजन करना। अगर इन बातों का ध्यान रखा जाए, तो मधुमक्खी पालन न सिर्फ आसान है, बल्कि बहुत फायदेमंद भी है।
फसलों में बढ़ोतरी का राज
मधुमक्खी पालन का सबसे बड़ा फायदा है फसलों की पैदावार में बढ़ोतरी। डॉ. साहू मशहूर वैज्ञानिक डॉ. सी.सी. घोष के हवाले से कहते हैं कि मधुमक्खियां एक रुपये का शहद देती हैं, लेकिन बदले में दस रुपये की फसल देती हैं। खासकर तिलहन फसलों, जैसे सरसों या सूरजमुखी, में मधुमक्खी पालन से 25 से 30 प्रतिशत ज्यादा उत्पादन हो सकता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि मधुमक्खियां परागण में मदद करती हैं, जिससे फूलों से फल और बीज ज्यादा बनते हैं। ये किसानों के लिए दोहरा फायदा है शहद से कमाई और फसल से मुनाफा।
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रायपुर में प्रशिक्षण का सुनहरा मौका
कृषि विज्ञान केंद्र रायपुर ने मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने के लिए खास प्रदर्शनी इकाई बनाई है। यहां किसान मधुमक्खी पालन के यंत्रों को करीब से देख सकते हैं और उनके इस्तेमाल का तरीका सीख सकते हैं। इसके अलावा, केंद्र में मधुमक्खी के डिब्बों के साथ प्रैक्टिकल प्रशिक्षण भी दिया जाता है। किसानों को बताया जाता है कि मधुमक्खियों को क्या खिलाना है, मौसम बदलने पर उनकी देखभाल कैसे करनी है, और कॉलोनी को कैसे मजबूत रखना है। ये प्रशिक्षण इतना आसान और समझने योग्य है कि कोई भी किसान इसे सीख सकता है।
आसपास के जिलों में बढ़ता उत्साह
रायपुर के इस प्रयास का असर सिर्फ शहर तक सीमित नहीं है। राजनांदगांव, कवर्धा, जांजगीर-चांपा और कांकेर जैसे जिलों के किसान भी इस हनी बिजनेस की ओर आकर्षित हो रहे हैं। कई किसान रायपुर आकर एक-दो दिन प्रशिक्षण लेते हैं और मधुमक्खी पालन की बारीकियां सीखकर अपने खेतों में लागू करते हैं। राष्ट्रीय मधुमक्खी पालन और शहद मिशन के तहत छत्तीसगढ़ के 27 कृषि विज्ञान केंद्रों में से 13 को प्रशिक्षण का जिम्मा मिला है। रायपुर केंद्र को तीन लक्ष्य दिए गए थे, जिनमें से एक को वे पहले ही पूरा कर चुके हैं।
हनी बिजनेस का भविष्य
आज के समय में जब प्रदूषण और रासायनिक खेती प्रकृति को नुकसान पहुंचा रहे हैं, मधुमक्खी पालन जैविक खेती का एक शानदार साथी बन सकता है। ये न सिर्फ किसानों की आय बढ़ाता है, बल्कि पर्यावरण को भी बेहतर बनाता है। शहद की मांग बाजार में हमेशा रहती है, और इसका निर्यात भी बढ़ रहा है। अगर किसान सही प्रशिक्षण और मेहनत के साथ इस बिजनेस को शुरू करें, तो ये उनकी किस्मत चमका सकता है।
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