लौकी की बेस्ट 3 किस्में जिनकी मार्केट में सबसे तगड़ी डिमांड, बना देंगी मालामाल

Lauki Top 3 Variety: भारत के किसान भाई जानते हैं कि सब्जी की खेती में कम समय में ज्यादा कमाई का राज छिपा है। खासकर बाढ़ प्रभावित इलाकों में, जहां पानी सूखने के बाद मिट्टी उपजाऊ हो जाती है, लौकी जैसी फसलें वरदान साबित होती हैं। भागलपुर जिले जैसे क्षेत्रों में, जहां गंगा की नमी मिट्टी को हमेशा हरा-भरा रखती है, लौकी की खेती से किसान अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं।

लेकिन सफलता का राज सही किस्म चुनना है। कृषि विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों की सलाह है कि भागलपुर की काली और दोमट मिट्टी के लिए तीन खास किस्में ऐसी हैं, जो कम पानी और देखभाल में भी भरपूर पैदावार देंगी। आइए, जानते हैं इनके बारे में, ताकि आप भी इस मौसम में अपनी खेती को नई ऊंचाई दे सकें।

पूसा हाइब्रिड

पूसा हाइब्रिड लौकी की एक ऐसी किस्म है, जो भागलपुर जैसे नम इलाकों में खूब फल-फूल रही है। इसके पौधे मजबूत और तेजी से बढ़ने वाले होते हैं, जिससे फसल जल्दी तैयार हो जाती है। फल लंबे, सीधे और चिकने निकलते हैं, जिनका वजन अच्छा रहता है। यह किस्म ज्यादा पानी की मार भी सह लेती है, जो बाढ़ वाले क्षेत्रों के लिए फायदेमंद है। प्रति हेक्टेयर 300 से 350 क्विंटल तक उपज मिल सकती है, और बाजार में इसकी मांग हमेशा बनी रहती है। किसान बताते हैं कि इस किस्म को चुनकर उन्होंने अपनी लागत आधी कर दी और मुनाफा दोगुना कर लिया।

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काशी उज्जवल

काशी उज्जवल नाम से ही लगता है कि यह किस्म कितनी खास है। भागलपुर की दोमट मिट्टी पर यह किस्म बिल्कुल फिट बैठती है, जहां नमी की वजह से कभी-कभी रोग लग जाते हैं। लेकिन इसकी खासियत यह है कि यह रोग प्रतिरोधक क्षमता से लैस है, जिससे कीटों का प्रकोप कम होता है। फल चमकदार हरे रंग के, मध्यम आकार के और स्वाद में मीठे होते हैं। बुवाई के 60-70 दिनों में ही तुड़ाई शुरू हो जाती है, और प्रति हेक्टेयर 250 से 300 क्विंटल पैदावार आसानी से हो जाती है। गंगा किनारे के किसानों के लिए यह किस्म एक भरोसेमंद साथी है, जो कम देखभाल में भी अच्छा परिणाम देती है।

पूसा अलंकार

पूसा अलंकार लौकी की वह किस्म है, जो बाजार में ग्राहकों को सबसे ज्यादा भाती है। इसके फल सुंदर, एकसमान आकार के और बिना कांटों के होते हैं, जो बिक्री को आसान बनाते हैं। भागलपुर की काली मिट्टी पर यह किस्म तेजी से पनपती है और ज्यादा नमी सहन कर लेती है। फसल तैयार होने में 65-75 दिन लगते हैं, और उपज 280 से 320 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पहुंच सकती है। विशेषज्ञ कहते हैं कि इस किस्म से किसान न केवल ताजा सब्जी बेच सकते हैं, बल्कि सुखाकर भी अतिरिक्त आय कमा सकते हैं।

मिट्टी और मौसम के हिसाब से सही तैयारी

भागलपुर जैसे इलाकों में लौकी की खेती के लिए मिट्टी का चयन बहुत महत्वपूर्ण है। काली या दोमट मिट्टी, जो अच्छी जल निकासी वाली हो, इन किस्मों के लिए बेस्ट रहती है। बुवाई से पहले खेत को अच्छी तरह जोतें और सड़ी गोबर की खाद या वर्मीकम्पोस्ट मिलाएं, ताकि जड़ें मजबूत पकड़ बनाएं। नमी बनाए रखने के लिए हल्की सिंचाई करें, लेकिन ज्यादा पानी से बचें। अगर कीट लगें, तो गोबर के घोल या चूल्हे की राख का छिड़काव करें यह प्राकृतिक तरीका है जो फसल को स्वस्थ रखता है। इन छोटी सावधानियों से आपकी लौकी की खेती न केवल सफल होगी, बल्कि मुनाफे का अच्छा स्रोत भी बनेगी।

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  • Shashikant

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