बरसात के मौसम में परवल की खेती किसानों के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन जाती है, क्योंकि लताएं और फल रोगों की चपेट में आ जाते हैं। लेकिन अच्छी खबर ये है कि ट्राइकोडर्मा जैसे जैविक उपाय से इन मुश्किलों को आसानी से काबू किया जा सकता है। राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डॉ. एस.के. सिंह जैसे विशेषज्ञ बताते हैं कि सही समय पर ट्राइकोडर्मा का इस्तेमाल करने से न सिर्फ रोग रुक जाते हैं, बल्कि फसल की पैदावार भी दोगुनी हो जाती है। उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में परवल की डिमांड हमेशा बनी रहती है, और अगर खेती सही तरीके से की जाए तो एक एकड़ से 6 लाख रुपये तक की कमाई हो सकती है। ये बहुवर्षीय फसल है, जो एक बार लगाने पर 5-6 साल तक फल देती रहती है, बस सालाना देखभाल की जरूरत पड़ती है।
परवल की लताओं पर रोग क्यों लगते हैं, समझें वजह
परवल की लताएं फाइटोफ्थोरा मेलोनिस जैसे कवक से सबसे ज्यादा प्रभावित होती हैं, जो बरसात में नमी बढ़ने से फल, जड़ें और लताओं को सड़ा देता है। फलों पर काले धब्बे पड़ जाते हैं, बदबू आने लगती है, और पूरी फसल बर्बाद हो जाती है। विशेषज्ञों का कहना है कि जलभराव वाली मिट्टी और खराब जल निकासी इस समस्या को और बढ़ाती है। बिहार, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में ये रोग आम है, लेकिन सावधानी से इसे रोका जा सकता है। डॉ. संजय कुमार सिंह बताते हैं कि शुरुआती लक्षण जैसे पत्तियों का पीला पड़ना या लताओं का सड़ना दिखते ही उपाय शुरू कर दें, वरना नुकसान हाथ से निकल जाएगा।
ट्राइकोडर्मा से लताओं को मजबूत बनाएं, रोगों का सफाया
ट्राइकोडर्मा परवल की खेती का रामबाण इलाज है, जो मिट्टी में फंगस को जड़ से खत्म कर देता है। बोआई से पहले आखिरी जुताई के समय प्रति हेक्टेयर 4-5 किलो ट्राइकोडर्मा को 50-60 टन सड़ी गोबर की खाद के साथ मिलाकर खेत में फैला दें। इससे मिट्टी में अच्छे बैक्टीरिया बढ़ते हैं, जो हानिकारक कवक को दबा देते हैं। अगर रोग लग जाए तो रिडोमिल गोल्ड और मैंकोजेब का मिश्रण 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर लताओं और मिट्टी पर छिड़काव करें। ये घोल लताओं को नमी से बचाता है और रोग की फैलावट रोकता है। वैज्ञानिकों के ट्रायल में पाया गया कि ये तरीका फसल को 80 प्रतिशत तक सुरक्षित रखता है, और किसान भाई छोटे खेतों में भी इसे आसानी से अपना सकते हैं।
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परवल लगाने का सही समय और मिट्टी की तैयारी
परवल की खेती के लिए फरवरी-मार्च या जून-जुलाई का समय सबसे अच्छा रहता है, जब मौसम गर्म और नम होता है। दोमट या बलुई दोमट मिट्टी चुनें, जहां जल निकासी अच्छी हो, वरना जड़ें सड़ जाएंगी। खेत की गहरी जुताई करें, ताकि पुरानी घास-फूस न रहे। मजबूत मचान बनाएं, क्योंकि ये लता वाली फसल है और बिना सहारे लताएं फैल नहीं पाएंगी। बीज या कलम लगाने से पहले उन्हें राइजोबियम से उपचारित करें, जिससे नाइट्रोजन फिक्सेशन बेहतर हो और खाद की बचत हो। पहले साल 70-90 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज मिलती है, लेकिन दूसरे साल से ये 150 क्विंटल तक पहुंच जाती है। सिंचाई हल्की रखें, जलभराव से बचें, और फलों के नीचे पुआल बिछा दें ताकि वे मिट्टी से न छूएं।
कमाई का गणित: 6 लाख तक कैसे पहुंचें
परवल की खेती में कुल खर्चा 1.5-2 लाख रुपये प्रति एकड़ आता है, जिसमें बीज, खाद, मजूरी सब शामिल। लेकिन बाजार भाव 40-50 रुपये प्रति किलो रहने पर 100-150 क्विंटल उपज से 4-6 लाख का मुनाफा हो जाता है। अररिया जैसे इलाकों में किसान भाई एक बीघे से ही 2-3 लाख कमा लेते हैं, क्योंकि ये सब्जी हाथों-हाथ बिक जाती है। थोक मंडियों या स्थानीय व्यापारियों से सीधा बेचें, और अगर एक्सपोर्ट क्वालिटी की हो तो दाम और चढ़ जाते हैं। विशेषज्ञ कहते हैं कि रोग नियंत्रण से उपज न गिरे तो कमाई सालाना 3-5 लाख तक स्थिर रहती है, जो छोटे किसानों के लिए वरदान है।
परवल खेती से बदलें अपनी किसानी
ट्राइकोडर्मा जैसे सस्ते उपायों से परवल की लताओं को रोगमुक्त रखना अब आसान हो गया है, और ये फसल किसानों को लंबे समय तक फायदा देती रहेगी। अगर आप भी शुरू करना चाहें तो लोकल कृषि केंद्र से बीज और ट्राइकोडर्मा लें, और विशेषज्ञों की सलाह मानें।
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