Intercropping In Potato: रबी मौसम की शुरुआत हो चुकी है और अक्टूबर आलू की बुवाई के लिए उपयुक्त समय है। विशेषज्ञों के अनुसार, आलू की फसल के साथ मूली, गाजर और धनिया जैसी सहफसलें लगाने से न केवल आय में इजाफा होता है, बल्कि जोखिम भी कम हो जाता है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) की रिपोर्ट बताती है कि ऐसी खेती से खेत की उत्पादकता 40-50 प्रतिशत तक बढ़ सकती है। यदि मुख्य फसल पर कोई समस्या आ भी जाए, तो सहफसलें नुकसान की भरपाई कर देती हैं। यह तरीका खासतौर पर उत्तर प्रदेश, बिहार और पंजाब जैसे राज्यों के किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो रहा है।
सहफसली का लाभ: मूली-गाजर से कम लागत, जल्दी कमाई
आलू की लंबी अवधि वाली फसल के बीच मूली और गाजर जैसी जड़ वाली सब्जियां आसानी से उगाई जा सकती हैं। इनकी जड़ें आलू से अलग-अलग गहराई पर फैलती हैं, जिससे दोनों फसलें एक-दूसरे को नुकसान नहीं पहुंचातीं। अक्टूबर के पहले सप्ताह में बुवाई करने पर नवंबर-दिसंबर तक इनकी कटाई हो जाती है। कृषि मंत्रालय के दिशानिर्देशों के मुताबिक, आलू की पंक्तियों के बीच 30-40 सेंटीमीटर दूरी पर बीज बोएं।
हाल के आंकड़ों से पता चलता है कि 10 एकड़ खेत में मूली से 200-250 क्विंटल और गाजर से 150 क्विंटल उपज संभव है। बाजार मूल्य के हिसाब से मूली 20-30 रुपये प्रति किलोग्राम और गाजर 25-35 रुपये प्रति किलोग्राम बिक रही है, जो आलू के अतिरिक्त 50-60 हजार रुपये की कमाई दे सकती है। इन फसलों का बीज और खाद का खर्च भी न्यूनतम होता है, जिससे कुल लागत 50 प्रतिशत तक कम रहती है।
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धनिया की बाड़ से पशु बचाव और दोहरी फसल
खेत के किनारों पर धनिया की पंक्तियां लगाने से आवारा पशुओं का खतरा कम हो जाता है। इसकी तेज खुशबू पशुओं को दूर रखती है। अक्टूबर में बोए गए धनिया के बीज 20-25 दिनों में पहली कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं। हरी पत्तियों का बाजार मूल्य 50-70 रुपये प्रति किलोग्राम है, जबकि बची हुई फसल से फरवरी तक सूखे बीज प्राप्त हो सकते हैं, जो 100-150 रुपये प्रति किलोग्राम तक बिकते हैं।
एक एकड़ के किनारे पर 200-300 किलोग्राम हरा धनिया और 100 किलोग्राम बीज निकलना आम बात है, जो 10-15 हजार रुपये की अतिरिक्त आय सुनिश्चित करता है। आईसीएआर के अध्ययन में पाया गया है कि धनिया मिट्टी की नमी बनाए रखने में मदद करता है, जिससे आलू की जड़ें स्वस्थ रहती हैं। सिंचाई सावधानी से करें हल्की पानी की व्यवस्था पर्याप्त है, अधिक पानी से सड़न का खतरा बढ़ सकता है।
दीर्घकालिक लाभ
सहफसली न केवल तात्कालिक कमाई देती है, बल्कि मिट्टी की उर्वरता भी बढ़ाती है। मूली और गाजर की जड़ें मिट्टी को ढीला करती हैं, जिससे हवा और पानी का संचरण बेहतर होता है। धनिया पोषक तत्वों को संतुलित रखता है। बुवाई से पहले खेत की अच्छी जुताई करें और 10 टन प्रति हेक्टेयर गोबर खाद मिलाएं। कीट प्रबंधन के लिए नीम-आधारित स्प्रे का उपयोग करें, रासायनिक दवाओं से बचें। विशेषज्ञों का कहना है कि मौसम संबंधी अनिश्चितताओं में भी सहफसलें 30-40 प्रतिशत खर्च की वसूली कर लेती हैं। इससे किसान आर्थिक रूप से मजबूत रहते हैं।
यह सहफसली मॉडल अपनाकर किसान अपनी आय को स्थिर और बढ़ा सकते हैं। अधिक जानकारी के लिए स्थानीय कृषि केंद्र से संपर्क करें।
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