Onion Farming: रबी का मौसम दस्तक दे चुका है और अक्टूबर से नवंबर का पहला पखवाड़ा प्याज की खेती के लिए सबसे सही समय है। ठंडी हवाओं और मिट्टी की नमी से पौधे मजबूत होते हैं, जिससे उपज अच्छी मिलती है। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि अगर आधुनिक तरीकों का सहारा लें तो लागत 30-40 प्रतिशत कम हो सकती है और एक एकड़ से 2 से 5 लाख रुपये तक की कमाई संभव है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) की सलाह है कि समय पर बुवाई और वैज्ञानिक प्रबंधन से फसल की गुणवत्ता भी ऊंची रहती है। उत्तर भारत के राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार और पंजाब में यह खेती तेजी से लोकप्रिय हो रही है, जहां किसान कम निवेश से बाजार की अच्छी कीमत पा रहे हैं।
नर्सरी की सही तैयारी से पौधे होंगे हटके
प्याज की मजबूत शुरुआत नर्सरी से होती है, जो कुल खेत का महज एक-बीसवां हिस्सा लेती है। अच्छी जल निकासी वाली उपजाऊ मिट्टी चुनें और बेड को 7 सेंटीमीटर ऊंचा बनाएं। बीजों को 6 से 8 घंटे पानी में डुबोकर तैयार करें, फिर कतारों में 5 से 7.5 सेंटीमीटर दूरी पर बो दें गहराई सिर्फ 1 सेंटीमीटर रखें। नियमित हल्की सिंचाई से पौधे 10 से 12 सेंटीमीटर ऊंचे हो जाते हैं, जो रोपाई के लिए परफेक्ट होते हैं। आईसीएआर के अनुसार, ऐसी नर्सरी से पौधों की जड़ें गहरी बनती हैं, जिससे बाद में सूखे का असर कम पड़ता है। यह तरीका पुरानी विधि से 20 प्रतिशत ज्यादा पौधे बचाता है, और कुल खर्च में भी कटौती करता है।
रोपाई का सही जुगाड़
खेत को पहले अच्छी तरह जोतकर भुरभुरा बनाएं, फिर प्रति हेक्टेयर 10 टन गोबर खाद या कंपोस्ट मिला दें। समतल सतह पर चौड़ी नालियां काटें ताकि पानी का बहाव आसान हो। पौधों को 20 से 25 सेंटीमीटर की दूरी पर लगाएं और कतारें 30 से 35 सेंटीमीटर अलग रखें। रोपाई के फौरन बाद हल्का पानी दें, फिर हर 7-10 दिन में सिंचाई का ध्यान रखें। निराई-गुड़ाई को कभी नजरअंदाज न करें, क्योंकि खरपतवार फसल की ताकत चुरा लेते हैं।
बीज से सीधी बुवाई पर फसल 120 से 150 दिन में पकती है, लेकिन नर्सरी वाले पौधों से यह समय 70 से 80 दिन रह जाता है। इससे किसान भाई जल्दी बाजार पहुंचा पाते हैं और मौसमी कीमतों का फायदा उठाते हैं। वैज्ञानिक खेती से प्रति एकड़ 150-200 क्विंटल उपज आसानी से मिल सकती है।
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कीटों से बचाव का देसी नुस्खा
प्याज की फसल पर थ्रिप्स और माइट्स जैसे कीटों का कहर आम है, लेकिन आधुनिक तरीके से इन्हें काबू किया जा सकता है। नीम का तेल सबसे सस्ता और सुरक्षित विकल्प है, जो प्राकृतिक रूप से कीटों को भगाता है बिना फसल को नुकसान पहुंचाए। इसे कृषि केंद्रों से लें और 5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोलकर 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें। आईसीएआर के अध्ययन बताते हैं कि यह रसायनों से 50 प्रतिशत सस्ता पड़ता है और मिट्टी की सेहत भी बनी रहती है। रोगों जैसे डाउन मिल्ड्यू से बचने के लिए सुबह-शाम हवा का प्रवाह सुनिश्चित करें। इन छोटे-छोटे कदमों से नुकसान 20-30 प्रतिशत तक कम हो जाता है।
वैज्ञानिक खेती का असली फायदा
एक एकड़ प्याज की खेती में कुल खर्च 50-70 हजार रुपये आता है, लेकिन अच्छी उपज से बाजार मूल्य 20-30 रुपये प्रति किलो मिलने पर 2 से 5 लाख की कमाई हो जाती है। आधुनिक तकनीक जैसे ड्रिप सिंचाई या मल्चिंग शीट का इस्तेमाल पानी और खाद बचाता है, जिससे लाभ मार्जिन बढ़ता है। समय पर बुवाई, सही नर्सरी और प्राकृतिक प्रबंधन से फसल की गुणवत्ता इतनी ऊंची रहती है कि निर्यात स्तर की भी बन जाती है। किसान भाई अगर स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्र से सलाह लें तो और बेहतर रिजल्ट पा सकते हैं। यह खेती न सिर्फ आज की कमाई देती है, बल्कि अगले सीजन के लिए मिट्टी को भी मजबूत रखती है।
अक्टूबर का यह मौका हाथ से न जाने दें। प्याज की खेती से गांव की अर्थव्यवस्था मजबूत बनेगी।
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