Kathia Wheat Durum Farming: किसान भाईयों, हमारे देश में पानी की कमी तो हमेशा की समस्या है, लेकिन क्या पता था कि कठिया गेहूं जैसी किस्म इस मुश्किल को आसान कर देगी। यह गेहूं की वो प्रजाति है जो सूखे को झेलकर भी अच्छी पैदावार देती है। जहाँ साधारण गेहूं को पाँच-छह बार पानी लगाना पड़ता है, वहाँ कठिया गेहूं सिर्फ तीन बार की सिंचाई में ही 45 से 50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक अनाज उगा लेता है।
अगर थोड़ा और पानी मिल जाए तो यह 50 से 60 क्विंटल तक पहुँच जाता है। असिंचित या कम पानी वाली जगहों पर भी यह 30 से 35 क्विंटल की गारंटी देता है। यह न सिर्फ फसल बचाता है बल्कि किसानों की मेहनत को भी फल देता है।
कठिया गेहूं की जड़ें और खासियत
कठिया गेहूं, जिसे वैज्ञानिक भाषा में ड्यूरम गेहूं कहते हैं, भारत के उन इलाकों में पॉपुलर है जहाँ पानी कम पड़ता है। इसकी जड़ें गहरी होती हैं, जो मिट्टी से नमी खींच लेती हैं। हमारे गाँव के बुजुर्ग बताते हैं कि यह गेहूं सूखे से लड़ने में माहिर है क्योंकि इसकी किस्मों में प्राकृतिक तौर पर सूखा सहने की ताकत ज्यादा होती है। उदाहरण के लिए, मध्य प्रदेश या राजस्थान जैसे क्षेत्रों में जहाँ बारिश अनिश्चित है, वहाँ यह फसल बिना ज्यादा पानी के पनप जाती है। वैज्ञानिकों ने इसे और मजबूत बनाने के लिए नई किस्में विकसित की हैं।
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सूखे में भी हरी-भरी फसल कैसे मिलती है
कठिया गेहूं की सबसे बड़ी ताकत है इसका पानी बचाने का तरीका। साधारण गेहूं जहां ज्यादा पानी मांगता है, वहाँ यह सिर्फ तीन सिंचाई में काम चला लेता है। मैंने देखा है कि हमारे यहाँ के किसान इसे नवंबर में बोते हैं और पहली सिंचाई बुआई के 20-25 दिन बाद करते हैं, फिर दूसरी जब फसल में बालियाँ आने लगती हैं, और तीसरी दाने भरते समय। इससे फसल की जड़ें मजबूत हो जाती हैं और मिट्टी की नमी का पूरा फायदा उठाती हैं। अगर आपके खेत में पानी की कमी है तो यह किस्म 45-50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक दे सकती है।
सिंचित इलाकों में तो यह और चमक जाती है, 50-60 क्विंटल तक पहुँचकर। असिंचित जगहों पर भी यह 30-35 क्विंटल की उम्मीद रखती है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, इसकी जेनेटिक संरचना ऐसी है कि यह सूखे को सहन कर पत्तियों को हरा रखती है, जिससे फसल की पैदावार नहीं गिरती। हमारे गाँव में तो इसे ‘सूखे का साथी’ कहते हैं, क्योंकि यह पानी की बचत करके किसानों की जेब भी बचाता है।
पोषण का खजाना, सेहत के लिए वरदान
कठिया गेहूं न सिर्फ पेट भरता है बल्कि सेहत भी बनाता है। साधारण शरबती गेहूं की तुलना में इसमें प्रोटीन 1.5 से 2 प्रतिशत ज्यादा होता है, जो बच्चों और बुजुर्गों के लिए बहुत फायदेमंद है। इसमें विटामिन ए की अच्छी मात्रा होती है, जो आँखों की रोशनी बढ़ाती है, और बीटा कैरोटीन से भरपूर होने से रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है। ग्लूटिन की पर्याप्त मात्रा इसे रोटी या चपाती बनाने के लिए बढ़िया बनाती है, जो आसानी से पच जाती है। हमारे गाँव की महिलाएँ बताती हैं कि इससे बनी रोटियाँ ज्यादा नरम और स्वादिष्ट होती हैं।
रोगों से लड़ाई, तापमान और नई किस्मों का खेल
कठिया गेहूं में गेरुई या रतुआ जैसे रोग तापमान के हिसाब से कम-ज्यादा होते हैं। गर्म मौसम में ये महामारी की तरह फैल सकते हैं, लेकिन ठंडी जगहों पर कम असर डालते हैं। हमारे गाँव में किसान बताते हैं कि अगर तापमान 20-25 डिग्री के आसपास रहता है तो रतुआ का खतरा बढ़ जाता है, लेकिन नई किस्मों से इसे काबू किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, एचआई 8840 या पуса गेहूं गौरव जैसी किस्में काले और भूरे रतुआ के खिलाफ मजबूत हैं।
वैज्ञानिकों ने ऐसी प्रजातियाँ विकसित की हैं जो रोगों को सहन कर पैदावार नहीं गिरने देतीं। अगर आपके खेत में रोग का इतिहास है तो बीज चुनते समय रेसिस्टेंट किस्में लीजिए, जैसे एचडी 3385 या एचआई 8802, जो सूखे के साथ रोगों से भी लड़ती हैं। सही समय पर फफूंदनाशी दवा का छिड़काव और फसल चक्र अपनाकर इन रोगों को कम किया जा सकता है। इससे फसल सुरक्षित रहती है और किसानों को नुकसान नहीं होता।
नई किस्मों की चमक
आजकल कठिया गेहूं की नई किस्में बाजार में धूम मचा रही हैं। पуса मंगल (एचआई 8713) जैसी किस्म मध्य भारत में कम पानी में 50 क्विंटल तक देती है और पास्ता बनाने के लिए बढ़िया है। एचआई 8802 में प्रोटीन 12.8 प्रतिशत और आयरन 40 पीपीएम तक होता है, जो पेनिनसुलर भारत के लिए सूटेबल है। हाल ही में एचडी 3385 और एचडी 3410 जैसी किस्में आई हैं, जो गर्मी और रोग सहन करती हैं। ये 75 क्विंटल तक पैदावार दे सकती हैं अगर मिट्टी अच्छी हो।
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खेती के देसी जुगाड़, शुरुआत से कटाई तक
कठिया गेहूं की खेती शुरू करने से पहले खेत की मिट्टी जांचिए, क्योंकि यह दोमट या रेतीली मिट्टी में अच्छा चलता है। हमारे यहाँ किसान अक्टूबर-नवंबर में बुआई करते हैं, बीज की मात्रा 100-120 किलो प्रति हेक्टेयर रखते हैं। पहली जुताई गहरी करें ताकि जड़ें फैल सकें। खाद के लिए यूरिया, डीएपी और पोटाश का संतुलित इस्तेमाल करें, लेकिन ज्यादा न डालें वरना फसल गिर सकती है।
पानी बचाने के लिए ड्रिप सिंचाई अपनाएं अगर संभव हो। कीटों से बचाव के लिए नीम की खली या देसी दवा इस्तेमाल करें। कटाई अप्रैल में करें जब दाने सख्त हो जाएं। इससे न सिर्फ पैदावार बढ़ती है बल्कि बाजार में अच्छी कीमत मिलती है। अगर आपके पास छोटा खेत है तो इसे सब्जियों के साथ मिलाकर उगाएं, फायदा दोगुना होगा।
कठिया गेहूं अपनाकर आप न सिर्फ पानी बचाएंगे बल्कि अच्छी पैदावार और सेहतमंद अनाज पाएंगे। सूखे के दौर में यह किस्म उम्मीद की किरण है। नई किस्में चुनें, देसी तरीके अपनाएं और सरकारी मदद लें। इससे आपकी खेती चमकेगी और परिवार खुशहाल होगा। आजमाकर देखिए, फर्क खुद महसूस होगा।
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