देशभर में रबी फसलों की बुवाई का दौर जोरों पर है, और गेहूं किसानों की सबसे पसंदीदा फसल है। इस बीच, भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी गेहूं की किस्म विकसित की है, जो खेतों में क्रांति लाने को तैयार है। इसका नाम है करण आदित्य डीबीडब्ल्यू 332। यह किस्म न केवल 83 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक की बंपर पैदावार देती है, बल्कि रोगों से लड़ने में भी मजबूत है।
बिहार, उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों के किसानों के लिए यह किसी वरदान से कम नहीं। कम लागत, ज्यादा उत्पादन और पोषण से भरपूर इस किस्म ने किसानों में नई उम्मीद जगाई है। अगर आप भी इस रबी सीजन में गेहूं की खेती की सोच रहे हैं, तो इस किस्म को अपनाकर अपनी कमाई को नई ऊंचाई दे सकते हैं। आइए, इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।
करण आदित्य की बंपर उपज, पुरानी किस्मों से कितनी आगे
करण आदित्य की सबसे बड़ी खासियत है इसकी जबरदस्त उत्पादन क्षमता। इसकी औसत उपज 78.3 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है, जो पुरानी लोकप्रिय किस्मों जैसे एचडी 2967 से 31.3% और एचडी 3086 से 12% ज्यादा है। वैज्ञानिकों ने इसकी अधिकतम पैदावार 83 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक दर्ज की है, जो इसे बाजार में सबसे आकर्षक विकल्प बनाती है।
उनकी माने तो यह किस्म न केवल ज्यादा दाने देती है, बल्कि इसके मोटे और स्वस्थ दाने बाजार में अच्छा दाम भी दिलाते हैं। एक अनुमान के मुताबिक, भारत में गेहूं का कुल उत्पादन 112 मिलियन टन है, और करण आदित्य जैसे उन्नत बीजों से इसे 10-15% तक बढ़ाया जा सकता है। यह किसानों की आय को दोगुना करने के सरकार के लक्ष्य को पूरा करने में मददगार साबित हो रही है।
रोगों से लड़ने की ताकत, पोषण में भी बेजोड़
करण आदित्य सिर्फ उपज में ही नहीं, बल्कि रोग प्रतिरोधक क्षमता में भी अव्वल है। यह पीले और भूरे रतुआ (रस्ट) रोग के खिलाफ पूरी तरह प्रतिरोधी है, जो गेहूं की फसल को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं। साथ ही, करनाल बंट रोग से भी यह अच्छी तरह लड़ती है, जो इसे अन्य किस्मों से अलग बनाता है।
भारतीय गेहूं अनुसंधान संस्थान के अनुसार, इसकी रोग प्रतिरोधकता के कारण कीटनाशकों पर खर्च 20-25% तक कम हो जाता है। इसके दानों में 12.2% प्रोटीन और 39.2 पीपीएम आयरन पाया जाता है, जो इसे पोषण के लिहाज से भी खास बनाता है। गेहूं की रोटी और आटा बनाने में इसके दाने बेहतर स्वाद और गुणवत्ता देते हैं, जिससे बाजार में इसकी मांग बढ़ रही है।
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इसके पौधों की औसत ऊंचाई 97 सेंटीमीटर है, जो हवा या बारिश में गिरने से बचाती है। एक हजार दानों का वजन 46 ग्राम होता है, जो मोटे और भरे हुए दानों का संकेत है। यह किस्म 101 दिनों में बालियां देना शुरू करती है और 156 दिनों में पूरी तरह पककर कटाई के लिए तैयार हो जाती है। बिहार के मुजफ्फरपुर और वैशाली जैसे इलाकों में जहां रतुआ रोग की समस्या आम है, वहां यह किस्म किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है। इसके अलावा, यह किस्म पर्यावरण के लिए भी अनुकूल है, क्योंकि कम रासायनिक खाद और कीटनाशकों की जरूरत पड़ती है।
कहां-कहां उगाएं
करण आदित्य को खासतौर पर उत्तर-पश्चिम मैदानी क्षेत्रों के लिए विकसित किया गया है, जहां सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है। यह पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान (कोटा और उदयपुर डिवीजन को छोड़कर), और उत्तर-पश्चिमी उत्तर प्रदेश (झांसी डिवीजन को छोड़कर) के लिए अनुशंसित है। बिहार के गंगा मैदानी क्षेत्र, जैसे समस्तीपुर, वैशाली, मुजफ्फरपुर और दरभंगा, इसके लिए आदर्श हैं। जम्मू-कश्मीर के जम्मू-कठुआ, हिमाचल प्रदेश के ऊना और पांवटा घाटी, और उत्तराखंड के तराई क्षेत्रों में भी यह शानदार परिणाम दे रही है।
बिहार में जहां 20 लाख हेक्टेयर से ज्यादा भूमि पर गेहूं की खेती होती है, वहां करण आदित्य ने पिछले दो सालों में 10% किसानों को आकर्षित किया है। इसका कारण है इसकी रोग प्रतिरोधकता और कम पानी की जरूरत।
बुवाई का सही समय और तकनीक, लागत से मुनाफे तक
करण आदित्य की बुवाई का सबसे अच्छा समय 20 अक्टूबर से 5 नवंबर तक है। इस दौरान तापमान 20-25 डिग्री सेल्सियस रहता है, जो अंकुरण के लिए आदर्श है। प्रति हेक्टेयर 100 किलो बीज पर्याप्त है, और लाइनों के बीच 20 सेंटीमीटर की दूरी रखें। कंडुवा रोग से बचाव के लिए बीज को 2-3 ग्राम वीटावैक्स प्रति किलोग्राम से उपचारित करें। मिट्टी की जांच के बाद खाद डालें 150 किलो नाइट्रोजन, 60 किलो फास्फोरस और 40 किलो पोटाश प्रति हेक्टेयर सही रहता है। गोबर की खाद (8-10 टन प्रति हेक्टेयर) मिट्टी की उर्वरता बढ़ाती है।
सिंचाई की बात करें तो 5-6 बार पानी देना काफी है। पहली सिंचाई बुवाई के 20-25 दिन बाद करें, फिर फूल आने और दाने भरने के समय। ड्रिप इरिगेशन से पानी की बचत होती है, जो बिहार जैसे क्षेत्रों में जहां पानी की कमी हो सकती है, वहां फायदेमंद है। लागत की बात करें तो प्रति एकड़ 15-20 हजार रुपये खर्च आता है, जिसमें बीज, खाद, और मजदूरी शामिल है। बाजार में गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2600 रुपये प्रति क्विंटल है, जिससे एक एकड़ से 1.5-2 लाख का मुनाफा संभव है।
किसानों के लिए क्यों है यह गेम चेंजर
करण आदित्य न केवल उपज और रोग प्रतिरोधकता में आगे है, बल्कि यह किसानों की आर्थिक स्थिति को भी मजबूत कर रही है। बिहार में जहां छोटे और सीमांत किसान 70% से ज्यादा हैं, वहां यह किस्म कम जोखिम और ज्यादा फायदा देती है। इसके बीज राष्ट्रीय बीज निगम और स्थानीय कृषि केंद्रों पर 50-60 रुपये प्रति किलो की दर से उपलब्ध हैं। सरकार की सब्सिडी योजनाएं, जैसे बिहार में 50% बीज अनुदान, इसे और किफायती बनाती हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के अनुसार, ऐसी उन्नत किस्में 2030 तक भारत को गेहूं निर्यात में शीर्ष देश बना सकती हैं। बाजार में इसकी मांग बढ़ रही है, क्योंकि इसके दाने रोटी, ब्रेड और बिस्किट उद्योग के लिए उपयुक्त हैं।
इसके अलावा, पर्यावरणीय लाभ भी हैं। कम रासायनिक खाद और कीटनाशकों की जरूरत से मिट्टी की सेहत बनी रहती है। बिहार के किसानों के लिए यह इसलिए भी खास है, क्योंकि यहां रतुआ और बंट रोगों की समस्या आम है। करण आदित्य ने इन समस्याओं को काफी हद तक हल कर दिया है। अगर आप इस रबी सीजन में खेती की योजना बना रहे हैं, तो करण आदित्य के बीज मंगवाएं और समय पर बुवाई शुरू करें। यह न केवल आपकी जेब भरेगी, बल्कि खेतों को भी समृद्ध बनाएगी।
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