भारत की पुरानी फसल कुल्थी दाल, जो कभी गांवों की रसोई का हिस्सा थी, अब दुनिया भर में अपनी पहचान बना रही है। ‘पावर ऑफ डाइवर्सिटी’ नाम की अंतरराष्ट्रीय परियोजना ने इसे ‘अवसर फसल’ का दर्जा दिया है। इसका मकसद साफ है – पारंपरिक फसलों को बचाना, पोषण को मजबूत करना और किसानों की जेब भरना। क्रॉप ट्रस्ट संगठन की इस पहल में 7 देशों के 250 से ज्यादा किसान, वैज्ञानिक और नीति विशेषज्ञ साथ काम कर रहे हैं। एम.एस. स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन ने भारत में कुल्थी और याम जैसी फसलों पर रिसर्च को गति दी है। यह प्रोजेक्ट न सिर्फ खेती को बढ़ावा देगा, बल्कि बिक्री के नए रास्ते भी खोलेगा।
फसल विविधता का वैश्विक संरक्षण
यह परियोजना एक मल्टी-डोनर फंड है, जो वैश्विक खाद्य सुरक्षा को मजबूत बनाने पर केंद्रित है। जर्मनी की KFW डेवलपमेंट बैंक ने €10 मिलियन और आयरलैंड के विदेश विभाग ने €2 मिलियन दिए हैं। यह फंडिंग कुल्थी जैसी फसलों के संरक्षण, उत्पादन और बाजार को बढ़ाने में लगेगी। भारत में कुल्थी को विशेष फोकस मिल रहा है, क्योंकि यह सूखा सहन करने वाली और पोषक फसल है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसी फसलें जलवायु परिवर्तन के दौर में किसानों के लिए वरदान हैं। परियोजना से बीजों की गुणवत्ता सुधरेगी और किसान आसानी से बेहतर बीज पा सकेंगे।
ये भी पढ़ें- पछेती गेहूं की खेती से भी होगी शानदार पैदावार, जानें ये 6 हाई यील्डिंग किस्में
कुल्थी की खेती-बिक्री को नया आयाम
इस प्रोजेक्ट में कुल्थी के बीजों को जीन बैंकों में सुरक्षित किया जाएगा, ताकि आने वाली पीढ़ियों के लिए विविधता बनी रहे। पोषण पर रिसर्च से इसके स्वास्थ्य फायदों को प्रमाणित किया जाएगा, जैसे प्रोटीन और मिनरल्स की भरमार। उपभोक्ताओं को जागरूक करके बाजार मांग बढ़ाई जाएगी, जिससे किसानों को अच्छी कीमत मिलेगी। नीति स्तर पर सरकार से बातचीत हो रही है, ताकि कुल्थी को राष्ट्रीय योजनाओं में जगह मिले। खेती के लिए किसानों को ट्रेनिंग और बीज सप्लाई मिलेगी, जबकि बिक्री के लिए वैश्विक बाजार से जुड़ाव होगा। इससे छोटे किसान भी बड़े मुनाफे का सपना देख सकेंगे।
दुनिया भर में पारंपरिक फसलों का पुनरुद्धार
भारत के अलावा यह परियोजना अन्य देशों में भी सक्रिय है। कोलंबिया में पीच पाम और चायोटे को बढ़ावा मिल रहा है। नाइजीरिया में फोटो और कबूतर मटर जैसी फसलें खाद्य सुरक्षा मजबूत कर रही हैं। जाम्बिया में काउपी और ज्वार जैसी सूखा-रोधी फसलें किसानों की मदद कर रही हैं। केन्या में अमरंथ और फिंगर मिलेट को सांस्कृतिक महत्व देकर प्रोत्साहित किया जा रहा है। ये उदाहरण दिखाते हैं कि कुल्थी जैसी फसलें कैसे स्थानीय स्तर से वैश्विक पटल पर पहुंच सकती हैं। भारत के किसानों के लिए यह प्रोजेक्ट आय बढ़ाने और पोषण सुनिश्चित करने का सुनहरा मौका है।
कुल्थी से कमाएं ज्यादा
अगर आप कुल्थी की खेती शुरू करना चाहते हैं, तो स्थानीय कृषि केंद्र से संपर्क करें। यह फसल कम पानी में उगती है और मिट्टी को उपजाऊ बनाती है। प्रोजेक्ट से जुड़कर आप बीज और ट्रेनिंग पा सकते हैं। बाजार में कुल्थी की डिमांड बढ़ रही है, खासकर हेल्थ फूड्स में। इस परियोजना से न सिर्फ खेती मजबूत होगी, बल्कि बिक्री के नए रास्ते खुलेंगे। कुल्थी को फिर से अपनी थाली में लाएं और किसानी को नया रंग दें।
ये भी पढ़ें- अमरूद की इस हाई-प्रॉफिट वैरायटी से किसान कमा रहे हैं तगड़ा मुनाफा, मार्केट में ₹600 किलो का भाव
