रासायनिक दवाओं को भूल जाइए! 7 दिन में घर पर बनाएं ट्राइकोडर्मा और बचाएं हजारों रुपये

खेत में फसल लगाते ही रोगों का डर सताने लगता है। फ्यूजेरियम, राइजोक्टोनिया, विल्ट – ये नाम सुनते ही किसान की नींद उड़ जाती है। लेकिन अब चिंता मत कीजिए। पूसा कृषि विश्वविद्यालय के वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रोफेसर (डॉ.) एस.के. सिंह ने एक ऐसा जैविक हथियार बताया है, जो आप घर पर ही बना सकते हैंट्राइकोडर्मा। ये न सिर्फ रोग मारता है, बल्कि पौधों की जड़ें मजबूत करता है, बढ़वार तेज करता है और मिट्टी को स्वस्थ बनाता है। बाजार से खरीदने पर 1 किलो ट्राइकोडर्मा ₹300-500 तक पड़ता है, लेकिन घर पर सिर्फ ₹50-60 में 1 किलो तैयार हो जाता है। आइए, 2025 की फसल से पहले इसे बनाना सीखें।

ट्राइकोडर्मा क्या है और ये कैसे काम करता है

ट्राइकोडर्मा एक फायदेमंद कवक (फंगस) है, जो मिट्टी में रहकर पौधों की जड़ों के चारों ओर एक सुरक्षा कवच बनाता है। ये खतरनाक रोगाणुओं को मारता है, उनके पोषक तत्व छीन लेता है और उन्हें बढ़ने नहीं देता। साथ ही, ये पौधों को फॉस्फोरस, आयरन जैसे तत्व उपलब्ध कराता है। यानी ये तीन काम एक साथ करता है – जैविक कीटनाशक, जैविक खाद और ग्रोथ प्रमोटर। धान, गेहूं, सब्जी, दालें – हर फसल में असरदार। प्रो. सिंह कहते हैं, “ट्राइकोडर्मा मिट्टी का डॉक्टर है। इसे लगाओ, रसायन कम करो, उपज बढ़ाओ।”

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घर पर बनाने की सामग्री (Ghar Par Trichoderma Banana)

सबसे अच्छी बात – इसके लिए कोई महंगी चीज नहीं चाहिए। बस ये 5 चीजें:

  • मुख्य कल्चर: 50 ग्राम शुद्ध ट्राइकोडर्मा (कृषि विश्वविद्यालय, KVK या ऑनलाइन ₹100-150 में मिलेगा)
  • आधार: 1 किलो गेहूं या चने का चोकर (आटा चक्की से ₹20-25/किलो)
  • खाना: 10 ग्राम गुड़ या चीनी (घर में होगा ही)
  • बर्तन: साफ प्लास्टिक बैग या डब्बा
  • पानी: 500 मिलीलीटर साफ कुएं का पानी

स्टेप-बाय-स्टेप बनाने की विधि: 7 दिन में तैयार

प्रो. सिंह की बताई विधि बिलकुल आसान है। इसे कोई भी किसान घर पर बना सकता है:

स्टेप 1: मिश्रण तैयार करें 1 किलो चोकर लें। 10 ग्राम गुड़ को 500 मिलीलीटर पानी में घोलें। ये घोल चोकर में डालकर अच्छी तरह मिलाएं। चोकर हल्का गीला हो जाए, लेकिन पानी न टपके। हाथ से दबाने पर नमी महसूस हो, पर पानी न निकले।

स्टेप 2: कल्चर मिलाएं 50 ग्राम ट्राइकोडर्मा कल्चर डालें। चम्मच या हाथ से अच्छी तरह हिलाएं, ताकि कल्चर पूरे चोकर में फैल जाए।

स्टेप 3: बैग में भरें साफ प्लास्टिक बैग में मिश्रण भरें। मुंह बंद करें, लेकिन हवा के लिए 2-4 छोटे छेद कर दें।

स्टेप 4: छाया में रखें ठंडी, छायादार और हवादार जगह पर 7-10 दिन रखें। धूप में न रखें।

स्टेप 5: जांच करें 7-10 दिन बाद खोलकर देखें – चोकर पर हरी परत जम गई होगी। यही ट्राइकोडर्मा है। तैयार!

स्टेप 6: स्टोर करें छाया में सुखाकर एयरटाइट डिब्बे में रखें। 3-4 महीने तक इस्तेमाल कर सकते हैं।

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इस्तेमाल के 4 आसान तरीके: फसल को बनाएं रोगमुक्त

तैयार ट्राइकोडर्मा को इन तरीकों से लगाएं:

1. बीजोपचार 1 किलो बीज को हल्का गीला करें। 10 ग्राम ट्राइकोडर्मा मिलाकर छाया में सुखाएं। फिर बोएं। अंकुरण मजबूत, रोग कम।

2. मिट्टी में मिलाएं 5 किलो ट्राइकोडर्मा को 100 किलो सड़ी गोबर खाद में मिलाकर 1 एकड़ में बुवाई से पहले बिखेरें। जड़ सड़न, विल्ट से बचाव।

3. जड़ डिप (नर्सरी पौधों के लिए) 10 ग्राम ट्राइकोडर्मा को 1 लीटर पानी में घोलें। पौध की जड़ें 15-20 मिनट डुबोएं। फिर रोपाई करें। धान, टमाटर, मिर्च में जबरदस्त।

4. बीमार पौधों का इलाज 10 ग्राम को 1 लीटर पानी में घोलकर जड़ों में डालें। 7 दिन में असर दिखेगा।

जरूरी सावधानियां: गलती से बचें

  • धूप से दूर रखें – ट्राइकोडर्मा धूप में मर जाता है।
  • ज्यादा नमी न हो – सड़न लग जाएगी।
  • रासायनिक फफूंदनाशक से 7 दिन का अंतर – दोनों साथ में न डालें।
  • 3-4 महीने में इस्तेमाल करें – पुराना हो जाए तो नया बनाएं।

फायदे: क्यों हर किसान को अपनाना चाहिए

  • सस्ता: ₹50 में 1 किलो – बाजार से 10 गुना सस्ता।
  • असरदार: विल्ट, रूट रॉट, फ्यूजेरियम को 80% तक नियंत्रित।
  • टिकाऊ: मिट्टी की जैविकता बढ़ाता है, रसायन कम करता है।
  • सुरक्षित: इंसान, पशु, पर्यावरण के लिए 100% सुरक्षित।

जैविक खेती का भविष्य

प्रो. एस.के. सिंह कहते हैं, “ट्राइकोडर्मा जैविक खेती की रीढ़ है। इसे घर पर बनाओ, हर फसल में लगाओ, रसायन छोड़ो।” 2025 में जब रासायनिक कीटनाशक महंगे हो रहे हैं, ये घरेलू नुस्खा किसानों की जेब और फसल दोनों बचाएगा। आज ही 50 ग्राम कल्चर लाएं, और अपने खेत को रोगमुक्त बनाएं।

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  • Dharmendra

    मै धर्मेन्द्र एक कृषि विशेषज्ञ हूं जिसे खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी साझा करना और नई-नई तकनीकों को समझना बेहद पसंद है। कृषि से संबंधित लेख पढ़ना और लिखना मेरा जुनून है। मेरा उद्देश्य है कि किसानों तक सही और उपयोगी जानकारी पहुंचे ताकि वे अधिक उत्पादन कर सकें और खेती को एक लाभकारी व्यवसाय बना सकें।

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