IPL 220 मसूर: भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने 4 नवंबर 2025 को दलहन उत्पादन के क्षेत्र में एक नई शुरुआत की है। कानपुर स्थित ICAR-भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान ने मसूर की एक बायोफोर्टिफाइड वैरायटी ‘IPL 220’ विकसित की है, जो लोह (73 पीपीएम) और जस्ते (51 पीपीएम) से भरपूर है। यह किस्म न सिर्फ पोषण के मामले में बेहतर है, बल्कि उत्पादन और टिकाऊ खेती के लिहाज से भी किसानों के लिए उम्मीद की नई किरण लेकर आई है। खासतौर पर पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, असम और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों के लिए यह एक उपयुक्त विकल्प साबित हो सकती है, जहां मसूर की खेती को रबी सीजन में बढ़ावा देने की जरूरत है।
अनियमित मानसून के बीच खेती की नई उम्मीद
साल 2025 का अनियमित मॉनसून दलहनों के उत्पादन के लिए चुनौती भरा साबित हुआ। अनुमान है कि पैदावार में करीब 15 प्रतिशत की गिरावट आई है। ऐसे में IPL 220 मसूर किसानों के लिए एक राहत बनकर आई है। यह वैरायटी मात्र 121 दिन में तैयार हो जाती है और औसतन 13.8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज देती है। इसके पौधे मजबूत हैं और कम पानी में भी अच्छी तरह विकसित हो जाते हैं। इसलिए यह सूखे या जल-संकट की स्थिति में भी स्थिर उत्पादन देती है। यही कारण है कि कृषि वैज्ञानिक इसे “भविष्य की मसूर” कह रहे हैं।
मिट्टी और पोषण दोनों का रखवाला
ICAR के अनुसार, IPL 220 न सिर्फ मनुष्य के पोषण के लिए बल्कि मिट्टी की सेहत के लिए भी लाभकारी है। इस फसल की जड़ें मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा को 10 से 15 प्रतिशत तक बढ़ाती हैं, जिससे रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता घटती है। मिट्टी में जैविक तत्वों की वृद्धि के कारण खेत की उर्वरता लंबे समय तक बनी रहती है। बायोफोर्टिफिकेशन तकनीक से तैयार यह मसूर शरीर में खून की कमी और जस्ता की कमी से होने वाले रोगों को रोकने में मदद करती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि देशभर में इस किस्म का विस्तार किया जाए तो कुपोषण की समस्या में 20 प्रतिशत तक कमी लाई जा सकती है।
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नवंबर में बुवाई का सही समय
इस समय यानी नवंबर का पहला और दूसरा हफ्ता IPL 220 की बुवाई के लिए बिल्कुल उपयुक्त माना जाता है। इस मौसम में ठंडक बढ़ने लगती है, जो मसूर की ग्रोथ के लिए जरूरी है। किसानों को रेतीली दोमट मिट्टी का चयन करना चाहिए जिसमें पानी की निकासी ठीक हो। खेत को दो-तीन बार जुताई कर भुरभुरा बना लेना चाहिए। बीज की बुवाई लगभग तीन सेंटीमीटर गहराई पर करनी चाहिए और लाइनों के बीच उचित दूरी रखनी चाहिए ताकि पौधों को पर्याप्त हवा और धूप मिल सके। गोबर की सड़ी हुई खाद डालने से मिट्टी में नमी और पोषण दोनों बने रहते हैं। फफूंद से बचाव के लिए बीजों का उपचार जरूरी है, जिससे फसल स्वस्थ और मजबूत बनती है।
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— Indian Council of Agricultural Research. (@icarindia) November 4, 2025
कम लागत में ज्यादा मुनाफा
IPL 220 मसूर की खेती छोटे और मध्यम किसानों के लिए खासतौर पर लाभदायक है। इसकी खेती का कुल खर्च प्रति हेक्टेयर करीब 15 से 20 हजार रुपये तक आता है, जबकि बाजार में मसूर की कीमत 6000 से 6500 रुपये प्रति क्विंटल तक मिल रही है। MSP भी 5500 रुपये तय है, इसलिए किसान निश्चित आमदनी की उम्मीद रख सकते हैं। प्रति हेक्टेयर करीब 50 से 70 हजार रुपये तक का शुद्ध लाभ मिल सकता है। सबसे बड़ी बात यह है कि यह फसल कम उर्वरक और पानी में भी अच्छी पैदावार देती है, जिससे खेती का जोखिम घटता है और मुनाफा बढ़ता है।
रबी सीजन के लिए स्मार्ट विकल्प
लॉन्च हुई यह नई मसूर किस्म भारत में दलहन क्रांति की दिशा में एक और बड़ा कदम है। जब दलहन उत्पादन में गिरावट दर्ज की जा रही है, तब IPL 220 जैसी वैरायटी किसानों को न सिर्फ आत्मनिर्भर बनने का मौका देती है, बल्कि टिकाऊ खेती की दिशा में भी प्रेरित करती है। ICAR और कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) के सहयोग से किसान इस नई किस्म के बीज प्राप्त कर सकते हैं। इससे उनके खेतों की मिट्टी हरी-भरी रहेगी और परिवार की थाली में पोषण भी बढ़ेगा।
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