पंजाब सरकार ने केंद्र की नई गेहूं किस्मों पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। राज्य ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) को पत्र लिखकर छह नई किस्मों पर आपत्ति जताई है। इन किस्मों को सामान्य से 50 प्रतिशत अधिक रासायनिक खाद की जरूरत पड़ती है। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (PAU) ने भी इन्हें राज्य की मिट्टी और किसानों के लिए अनुपयुक्त बताया है। गांव जंक्शन की 13 नवंबर 2025 की रिपोर्ट कहती है कि DBW 303, DBW 327, DBW 332, DBW 370, DBW 371 और DBW 372 नामक इन किस्मों का परीक्षण हाई इनपुट ट्रायल में हुआ था। यानी जहां सामान्य गेहूं में दो बोरी यूरिया या DAP लगती है, वहां इनमें तीन बोरी।
पंजाब स्टेट सीड्स कॉर्पोरेशन (PunSeed) की प्रबंध निदेशक शैलेन्द्र कौर ने ICAR के महानिदेशक को लिखा कि बीज वितरण से पहले स्पष्टीकरण चाहिए। ये बीज राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NFSM) और राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY) के तहत सब्सिडी पर बांटे जाने हैं। कोई भ्रम न हो, इसलिए तुरंत दिशा-निर्देश चाहिए। PAU के अनुसंधान निदेशक डॉ. अजमेर सिंह धत्त ने पहले ही राज्य सरकार को चेताया था कि ये किस्में सामान्य खुराक पर अधिसूचित नहीं हुईं।
क्या कहा PAU ने
PAU ने स्पष्ट किया कि वह इन किस्मों की सिफारिश नहीं करता। कारण साफ है ज्यादा खाद, ज्यादा फफूंदनाशक, ग्रोथ रेगुलेटर। किसान की जेब पर बोझ पड़ेगा, मिट्टी की सेहत बिगड़ेगी। पंजाब में पहले से नाइट्रोजन और फॉस्फोरस की अधिकता है। भूमिगत जल घट रहा है, मिट्टी का क्षरण बढ़ रहा है। ऐसे में कम इनपुट वाला मॉडल ही चाहिए।
विश्वविद्यालय ने कहा कि ये किस्में अर्ली सॉइंग के लिए हैं, लेकिन पंजाब की जलवायु और मिट्टी में फिट नहीं बैठतीं। गोबर खाद, लेहोसिन जैसे रेगुलेटर का इस्तेमाल अनिवार्य बताया गया। लेकिन किसान के पास इतना संसाधन कहां? छोटे किसान तो दो बोरी से काम चला रहे हैं।
ICAR की दलील
ICAR के सूत्र बता रहे हैं कि इन किस्मों की पैदावार 7.5 से 8 टन प्रति हेक्टेयर है। सामान्य किस्में 5-6 टन देती हैं। इसलिए ज्यादा खाद जरूरी। “किसान को विकल्प देना चाहिए। जो ज्यादा उत्पादन चाहे, वह अपनाए।” लेकिन पंजाब का कहना है कि उत्पादकता के नाम पर पर्यावरण और किसान को नुकसान नहीं हो सकता।
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दिलचस्प बात ये कि PAU ने खुद PBW 872 नामक किस्म विकसित की है। ये भी हाई यील्डिंग है 9 टन तक प्रति हेक्टेयर। ब्राउन रस्ट रोधी, चपाती के लिए अच्छी, 152 दिन में तैयार। सामान्य खुराक पर ही चलती है। हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय की किस्म भी ऐसी ही है। दोनों फिलहाल खेतों में इस्तेमाल हो रही हैं।
मिट्टी की सेहत vs उत्पादकता
ये विवाद सिर्फ छह किस्मों का नहीं। पूरी भारतीय कृषि में कम इनपुट vs हाई इनपुट की लड़ाई है। पंजाब जैसे राज्य पहले से रासायनिक खादों की मार झेल रहे हैं। मिट्टी में पोषक तत्व असंतुलित हो गए। पानी की बर्बादी अलग। सरकार का कहना है कि अब स्थिरता पर ध्यान देना होगा। ज्यादा उपज के चक्कर में किसान कर्ज में न डूबे।
कृषि विशेषज्ञ बता रहे हैं कि पंजाब में गेहूं की औसत पैदावार पहले से ऊंची है। 5 टन प्रति हेक्टेयर से ऊपर। लेकिन मिट्टी की उर्वरता घट रही। जैविक खेती, जीरो बजट, कम पानी वाली किस्में यही भविष्य है। ICAR और PAU के बीच ये बहस जारी है। वैज्ञानिक कहते हैं कि हाई इनपुट जरूरी है, राज्य कहता है कि किसान तैयार नहीं।
पंजाब का स्टैंड
पंजाब सरकार ने साफ कर दिया कि इन छह किस्मों का राज्य में वितरण नहीं होगा। जब तक ICAR स्पष्ट दिशा-निर्देश न दे। PunSeed ने बीज आपूर्ति रोक दी है। किसानों को पुरानी सिद्ध किस्में ही दी जाएंगी। PAU की PBW सीरीज, HD सीरीज – ये सब सामान्य खुराक पर चलती हैं।
किसान संगठन भी सरकार के साथ हैं। उनका कहना है कि सब्सिडी वाले बीज में भ्रम न हो। किसान को पता होना चाहिए कि कौन सी किस्म कितनी खाद मांगेगी। पंजाब में रबी की बुवाई चल रही है। नवंबर के अंत तक ज्यादातर खेत बो दिए जाएंगे। ऐसे में गलत बीज न पहुंचे।
पंजाब का ये कदम दूसरे राज्यों के लिए मिसाल बन सकता है। हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान भी देख रहे हैं। कृषि में उत्पादकता और स्थिरता का संतुलन जरूरी है। ICAR को जवाब देना होगा। किसान इंतजार कर रहे हैं।
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