चने की इस किस्म से किसानों को मिलेगा डबल उत्पादन, कम खर्च में चार गुना फायदा

रबी सीजन की शुरुआत में चने की बुवाई का सही वक्त आ गया है, जब एक नई किस्म किसान भाइयों की किस्मत बदलने को तैयार खड़ी है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) की पूसा 3043 चना किस्म पुरानी प्रजातियों से 20-30 प्रतिशत ज्यादा उपज देती है, और रोगों के प्रति इतनी सहनशील है कि दवाइयों का खर्च आधा रह जाता है।

पलामू जिले जैसे क्षेत्रों में पल्स सीड हब अभियान के तहत यह किस्म उपलब्ध हो रही है, जहां कम पानी और कम देखभाल वाली फसलें किसानों की पहली पसंद हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि समय पर बुवाई और संतुलित खाद से यह किस्म मौसम के उतार-चढ़ाव को भी झेल लेती है, जिससे कुल खर्च घटता है और मुनाफा चार गुना तक बढ़ जाता है। छोटे-मझोले किसान इसे अपनाकर अपनी आय को नई ऊंचाई दे सकते हैं।

पूसा 3043 की खासियतें

यह किस्म चने की खेती को आसान बना देती है, क्योंकि इसमें रोगों के प्रति प्राकृतिक सहनशीलता ज्यादा है। पुरानी किस्मों की तुलना में अतिरिक्त दवाइयों या देखभाल की जरूरत नहीं पड़ती, जो किसान भाइयों के लिए बड़ी राहत है। कम सिंचाई में भी अच्छी पैदावार देती है, खासकर सूखाग्रस्त इलाकों में। ICAR के शोध बताते हैं कि यह मौसम के बदलावों को सहन करने में सक्षम है, चाहे ठंड ज्यादा पड़े या हल्का सूखा हो। पत्तियां मजबूत और दाने भारी होते हैं, जो बाजार में अच्छे दाम दिलाते हैं। पलामू जैसे जिले में पल्स सीड हब के तहत इसे बढ़ावा दिया जा रहा है, ताकि दलहन उत्पादन बढ़े और किसानों की आमदनी मजबूत हो।

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20-30% ज्यादा पैदावार

पूसा 3043 से प्रति हेक्टेयर 20-30 प्रतिशत ज्यादा उपज मिलती है, जो एक एकड़ में 15-20 क्विंटल तक पहुंच सकती है। बाजार में चने के दाम 50-70 रुपये प्रति किलो रहते हैं, तो लागत घटने से मुनाफा चार गुना हो जाता है। कुल खर्च कम होने से छोटे किसान भी आसानी से शुरू कर सकते हैं। विशेषज्ञ कहते हैं कि संतुलित खाद और समय पर बुवाई से यह आंकड़ा और ऊंचा हो जाता है। पलामू में ट्रायल से साबित हो चुका है कि यह किस्म स्थानीय मिट्टी के अनुकूल है।

बुवाई के आसान टिप्स

बुवाई नवंबर के पहले पखवाड़े में करें, ताकि फसल फरवरी-मार्च में तैयार हो जाए। प्रमाणित बीज चियांकी खोज केंद्र या स्थानीय कृषि केंद्र से लें – ये पुराने बीजों से बेहतर अंकुरण और पौधों की संख्या देते हैं। खेत को अच्छी तरह जोतकर भुरभुरा बनाएं, और गोबर खाद 10-15 टन प्रति हेक्टेयर मिलाएं। बीज दर 60-70 किलोग्राम रखें, कतारों के बीच 30 सेंटीमीटर दूरी पर बोएं। संतुलित खाद दें नाइट्रोजन 20 किलोग्राम, फॉस्फोरस 40 किलोग्राम और पोटाश 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर। पहली सिंचाई बुवाई के 20-25 दिन बाद करें, फिर जरूरत के मुताबिक 2-3 बार। ICAR की सलाह है कि बीज उपचार जरूर करें, ताकि शुरुआती रोग न लगें।

रोग मुक्त होने से दवाइयों का झंझट खत्म

पूसा 3043 में रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होने से अतिरिक्त स्प्रे या दवाओं की जरूरत नहीं पड़ती। बस निराई-गुड़ाई समय पर करें और खरपतवार हटाएं। कम सिंचाई से पानी की बचत होती है, जो ग्राउंडवाटर लेवल गिरते इलाकों के लिए फायदेमंद है। अगर कीट दिखें तो नीम तेल का देसी घोल छिड़कें। यह फसल दलहन उत्पादन बढ़ाने में सहायक है, और पल्स सीड हब से बीज सस्ते मिलेंगे।

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  • Shashikant

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