भारत दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश है और इसकी ताकत हमारी देसी नस्लों में छिपी है। इनमें से एक प्रमुख नस्ल है पंढरपुरी भैंस, जो मुख्य रूप से महाराष्ट्र के सोलापुर, सांगली, कोल्हापुर और आसपास के इलाकों में पाई जाती है। पंढरपुरी का नाम पंढरपुर शहर से जुड़ा है, जहाँ यह नस्ल सदियों से पाली जा रही है। केंद्रीय पशुपालन एवं डेयरी विभाग (DAHD) की आधिकारिक नस्ल सूची में शामिल यह भैंस अपनी अनुकूलन क्षमता, अच्छे दूध उत्पादन और कम देखभाल में चलने के लिए जानी जाती है। ग्रामीण डेयरी व्यवस्था में यह किसानों की पहली पसंद बनी हुई है।
पंढरपुरी भैंस की शारीरिक विशेषताएँ
पंढरपुरी भैंस मध्यम आकार की होती है। इसका शरीर मजबूत और कॉम्पैक्ट होता है, जो स्थानीय जलवायु और कम संसाधनों में आसानी से जीवित रहने में मदद करता है। मुख्य पहचान:
- रंग: गहरा काला या भूरा-काला
- सींग: लंबे, मजबूत और पीछे की ओर मुड़े हुए (आमतौर पर अर्धचंद्राकार)
- पूँछ: लंबी और पतली
- वजन: वयस्क नर 500-600 किलो, मादा 400-500 किलो
- ऊँचाई: कंधे तक 130-140 सेमी
यह नस्ल गर्मी, सूखा और कम चारे वाली स्थितियों में भी अच्छी तरह अनुकूल हो जाती है। महाराष्ट्र के सूखाग्रस्त इलाकों में यह किसानों के लिए वरदान साबित होती है।
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दूध उत्पादन और गुणवत्ता
पंढरपुरी भैंस (Pandharpuri Buffalo Breed) दूध के लिए बहुत लोकप्रिय है। एक दूध वाली भैंस औसतन 6-8 लीटर दूध प्रतिदिन देती है, जो अच्छी देखभाल में 10-12 लीटर तक पहुँच जाता है। दूध की सबसे बड़ी खासियत है उच्च वसा सामग्री – औसतन 7-9% फैट, जो मुर्रा (6-7%) से ज्यादा है। SNF (सॉलिड नॉट फैट) भी 9-10% रहता है, जिससे दूध घना और स्वादिष्ट होता है। यह दूध घी, पनीर और दही बनाने के लिए आदर्श माना जाता है। महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों में पंढरपुरी का दूध स्थानीय बाजार में प्रीमियम दाम पर बिकता है।
पालन-पोषण और फायदे
यह नस्ल कम चारे में चल जाती है। सूखा चारा, हरा चारा, खली और घर का अनाज ही काफी है। बीमारियाँ कम लगती हैं और टीकाकरण से आसानी से नियंत्रित हो जाती हैं। किसानों के लिए फायदे:
- कम लागत में अच्छा दूध उत्पादन
- बछड़े मजबूत और तेजी से बढ़ते हैं
- गर्मी-सूखे में टिकाऊ
- बछियों की माँग ज्यादा, अच्छा भाव मिलता है
सरकार की नंदिनी कृषक समृद्धि योजना और अन्य गोपालन योजनाओं में पंढरपुरी जैसी देसी नस्लों को प्रोत्साहन मिल रहा है। महाराष्ट्र में कई सहकारी डेयरियाँ इस नस्ल के दूध को प्राथमिकता देती हैं। आधुनिक समय में मुर्रा जैसी विदेशी नस्लों के कारण पंढरपुरी की संख्या कम हो रही है, लेकिन जागरूक किसान और सरकारी प्रयासों से इसे बचाया जा रहा है। देसी नस्लों का संरक्षण जरूरी है क्योंकि ये जलवायु परिवर्तन और कम संसाधनों में बेहतर टिकती हैं।
पंढरपुरी भैंस महाराष्ट्र की सांस्कृतिक और कृषि विरासत का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह न केवल दूध देती है, बल्कि गोबर से खाद और गोमूत्र से प्राकृतिक कीटनाशक भी उपलब्ध कराती है। अगर आप गोपालन शुरू करना चाहते हैं और कम लागत में स्थिर आय चाहते हैं, तो पंढरपुरी एक बेहतरीन विकल्प है। देसी नस्लों को अपनाकर हम अपनी कृषि को और मजबूत बना सकते हैं। पंढरपुरी जैसी नस्लें साबित करती हैं कि हमारी पुरानी विरासत आज भी कितनी उपयोगी और टिकाऊ है।
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