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Nagarmotha ki kheti: नागरमोथा एक महत्वपूर्ण औषधीय पौधा है, जिसकी खेती भारत में कई सालों से की जा रही है। इसकी जड़ों का उपयोग आयुर्वेदिक दवाओं, इत्र और सौंदर्य प्रसाधनों में किया जाता है। नागरमोथा की खेती करने से किसानों को अच्छा मुनाफा मिल सकता है, क्योंकि इसकी मांग बाजार में हमेशा बनी रहती है। आइए, जानते हैं कि नागरमोथा की खेती कैसे की जाती है और इसके लिए क्या-क्या जरूरी है।

यह एक बारहमासी पौधा है, जो झाड़ीनुमा होता है। इसकी जड़ें मोटी और गांठदार होती हैं, जिनमें से तेल और सुगंध निकलती है। इसकी खेती मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, गुजरात, राजस्थान और मध्य प्रदेश में की जाती है। नागरमोथा की जड़ों का उपयोग आयुर्वेदिक दवाओं, इत्र और सौंदर्य प्रसाधनों में किया जाता है, जिससे इसकी मांग बाजार में हमेशा बनी रहती है।

 जलवायु और मिट्टी कैसी हो

नागरमोथा की खेती के लिए गर्म और शुष्क जलवायु उपयुक्त होती है। यह पौधा बारिश और सूखे दोनों में अच्छी तरह विकसित होता है। हालांकि, अधिक बारिश या पानी जमा होने से इसकी जड़ें सड़ सकती हैं। इसलिए, जल निकासी वाली मिट्टी इसकी खेती के लिए सबसे अच्छी होती है।

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मिट्टी की बात करें तो बलुई दोमट मिट्टी नागरमोथा की खेती के लिए सबसे उपयुक्त होती है। मिट्टी का पीएच मान 6 से 8 के बीच होना चाहिए। खेत की अच्छी तरह जुताई करके मिट्टी को भुरभुरा बना लेना चाहिए।

नागरमोथा की खेती (Nagarmotha ki kheti) शुरू करने से पहले खेत की अच्छी तरह तैयारी करनी चाहिए। खेत की 2-3 बार जुताई करके मिट्टी को भुरभुरा बना लें। जुताई के बाद खेत में गोबर की खाद या कंपोस्ट डालकर मिट्टी को उपजाऊ बनाएं। खेत में पानी जमा न हो, इसके लिए उचित जल निकासी की व्यवस्था करें।

बुवाई का समय और तरीका

नागरमोथा की बुवाई का सही समय जून से जुलाई के बीच होता है, जब बारिश शुरू होती है। इसकी बुवाई जड़ों के टुकड़ों (राइजोम) से की जाती है। राइजोम को खेत में 30-45 सेंटीमीटर की दूरी पर लगाया जाता है। बुवाई के बाद हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए।

नागरमोथा की खेती में सिंचाई की ज्यादा जरूरत नहीं होती है, क्योंकि यह पौधा शुष्क जलवायु में भी अच्छी तरह विकसित होता है। हालांकि, गर्मी के मौसम में 10-15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए। खरपतवार नियंत्रण के लिए समय-समय पर निराई-गुड़ाई करते रहना चाहिए।

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खाद और कीटों से बचाव

नागरमोथा की खेती में जैविक खाद का उपयोग करना बेहतर होता है। बुवाई से पहले खेत में गोबर की खाद या कंपोस्ट डालें। इसके अलावा, नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश जैसे रासायनिक उर्वरकों का उपयोग भी किया जा सकता है, लेकिन इनकी मात्रा मिट्टी की जांच के बाद ही तय करनी चाहिए।

नागरमोथा के पौधे को कीट और रोगों का खतरा कम होता है। फिर भी, कभी-कभी जड़ सड़न और पत्तियों पर धब्बे जैसी समस्याएं हो सकती हैं। इनसे बचने के लिए जैविक कीटनाशकों का उपयोग करना चाहिए। अधिक पानी देने से बचें, क्योंकि इससे जड़ें सड़ सकती हैं।

फसल की कटाई

नागरमोथा की फसल 8-10 महीने में तैयार हो जाती है। जब पौधे की पत्तियां पीली पड़ने लगें और सूखने लगें, तो समझ जाएं कि फसल कटाई के लिए तैयार है। कटाई के बाद जड़ों को अच्छी तरह साफ करके सुखा लेना चाहिए। सूखी हुई जड़ों को बाजार में बेचा जा सकता है।

नागरमोथा की जड़ों की मांग आयुर्वेदिक दवाओं, इत्र और सौंदर्य प्रसाधन उद्योग में बहुत अधिक है। इसकी कीमत बाजार में अच्छी मिलती है। एक हेक्टेयर खेत से लगभग 15-20 क्विंटल सूखी जड़ें प्राप्त होती हैं, जिनसे किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। इसके इत्र का विदेशों में भी खूब मांग रहती है। कई प्रकार के उद्योग इत्र से ही अपनी वस्तुएं बनाते हैं, जैसे तेल, साबुन, शैंपू आदि।

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  • Dharmendra

    मै धर्मेन्द्र एक कृषि विशेषज्ञ हूं जिसे खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी साझा करना और नई-नई तकनीकों को समझना बेहद पसंद है। कृषि से संबंधित लेख पढ़ना और लिखना मेरा जुनून है। मेरा उद्देश्य है कि किसानों तक सही और उपयोगी जानकारी पहुंचे ताकि वे अधिक उत्पादन कर सकें और खेती को एक लाभकारी व्यवसाय बना सकें।

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