धान की बजाय कपास की खेती से किसानों की कमाई में जबरदस्त उछाल, ATGC Biotech की मदद से उपज में 21 फीसदी का उछाल

पंजाब और हरियाणा में बीते कुछ सालों में कपास की खेती कम होती जा रही थी। खासकर गुलाबी सुंडी (पिंक बॉलवर्म) के कारण किसानों को भारी नुकसान झेलना पड़ा। इसी दिक्कत को दूर करने के लिए ‘संवर्धन प्रोजेक्ट’ शुरू किया गया है, जिससे किसानों को नई तकनीक और सही जानकारी मिल रही है। अब किसान कम लागत में ज्यादा पैदावार ले पा रहे हैं।

संवर्धन प्रोजेक्ट क्या है और इसमें कौन-कौन शामिल है?

संवर्धन प्रोजेक्ट को खरीफ सीजन 2024 के दौरान पंजाब और हरियाणा में कपास की खेती को बढ़ावा देने के लिए शुरू किया गया। इसमें कई बड़ी संस्थाएँ जुड़ी हैं, जैसे टाटा ट्रस्ट, कृषि सलाहकार कंपनी एथेना, रिवाइविंग ग्रीन रिवोल्यूशन सेल (RGR), स्पोर्टकिंग इंडिया और एग्रीटेक कंपनी एटीजीसी बायोटेक। इन सभी का मकसद किसानों की मदद करना है।

किसानों को क्या फायदा हुआ?

इस प्रोजेक्ट की वजह से पंजाब और हरियाणा के 3 जिलों में 2000 एकड़ जमीन पर 660 किसानों को फायदा हुआ है। पहले किसान धान उगाते थे, लेकिन अब उन्हें कपास की खेती ज्यादा फायदेमंद लग रही है। इस तकनीक से कपास की पैदावार 21% तक बढ़ गई है, वहीं किसानों की आमदनी में भी 30% का इजाफा हुआ है। इसके अलावा, कीटनाशकों का इस्तेमाल कम हुआ है, जिससे मिट्टी की सेहत भी सुधर रही है।

कीड़ों से बचाव के लिए नई तकनीक

कपास की फसल में गुलाबी सुंडी का हमला सबसे बड़ी दिक्कत थी। इससे बचने के लिए एटीजीसी बायोटेक की ‘क्रेमिट तकनीक’ (CREMIT) इस्तेमाल की जा रही है। यह फेरोमॉन-बेस्ड तकनीक है, जो कीटों को फसल से दूर रखती है। इससे किसानों को फसल का नुकसान कम हुआ है और कीटनाशकों पर खर्चा भी घट गया है।

कपास की मांग और सरकारी मदद

इंडियन कॉटन एसोसिएशन के निदेशक राकेश राठी के मुताबिक, उत्तर भारत में कपास की मांग और उत्पादन के बीच बड़ा अंतर है। हर साल 90 लाख गांठ कपास की जरूरत होती है, लेकिन उत्पादन 30 लाख गांठ से भी कम हो रहा है। इस समस्या को दूर करने के लिए हरियाणा सरकार कपास पर बाजार शुल्क माफ करने और किसानों को मुआवजा देने की योजना बना रही है। इससे किसानों को और मदद मिलेगी।

कृषि विशेषज्ञों की राय

पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, लुधियाना के कुलपति डॉ. सतबीर सिंह गोसल का कहना है कि कपास की खेती में गिरावट से किसानों की लागत बढ़ रही थी, लेकिन संवर्धन प्रोजेक्ट से उन्हें नई उम्मीद मिली है। उन्होंने सलाह दी कि किसान इस नई तकनीक को अपनाएं, जिससे उन्हें ज्यादा मुनाफा होगा। बठिंडा और सिरसा के कई किसानों ने भी इस तकनीक से अच्छे नतीजे पाए हैं।

संवर्धन प्रोजेक्ट से यह साफ हो गया है कि सही तकनीक और जानकारी से कपास की खेती को बढ़ाया जा सकता है। इससे न सिर्फ किसानों की आमदनी बढ़ेगी, बल्कि मिट्टी की सेहत भी अच्छी रहेगी। अगर यह प्रोजेक्ट और आगे बढ़ाया जाए, तो उत्तर भारत में कपास की खेती फिर से अपने पुराने स्वरूप में लौट सकती है।

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  • Shashikant

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