Top-5 Varieties Of Ridge Gourd : तोरई की खेती गाँव के किसानों के लिए एक शानदार मौका है, जो कम समय में अच्छा मुनाफा देती है। गर्मियों में बाजार में तोरई की माँग खूब रहती है, और इसका भाव भी बढ़िया मिलता है। यह फसल सिर्फ़ 50-55 दिनों में तैयार हो जाती है, जिससे आप जल्दी कमाई कर सकते हैं। भारत के गर्म और शुष्क इलाकों में, जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, या राजस्थान में, तोरई की खेती आसानी से की जा सकती है। इसकी कुछ उन्नत किस्में इतनी शानदार हैं कि कम समय में तगड़ा उत्पादन देती हैं। आइए जानें कि तोरई की उन्नत किस्में कौन सी हैं, और इनकी खेती कैसे करें ताकि जेब भरी रहे।
कल्याणपुर हरी चिकनी
कल्याणपुर हरी चिकनी एक ऐसी किस्म है, जो कानपुर के चंद्रशेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय ने तैयार की है। इसके फल हरे, गुदेदार, और मध्यम आकार के होते हैं, जो खाने में स्वादिष्ट और बाजार में लोकप्रिय हैं। यह किस्म 60-70 दिनों में पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। अगर सही देखभाल करें, तो एक हेक्टेयर में 200-220 क्विंटल तक फल मिल सकते हैं। गर्मियों में इसकी माँग अच्छी रहती है, जिससे किसानों को बढ़िया दाम मिलता है। इसकी खासियत यह है कि यह आसानी से उगती है और मिट्टी की सेहत को भी बनाए रखती है।
पंत चिकनी तोरई-1
पंत चिकनी तोरई-1 पंतनगर के गोविंद बल्लभ पंत कृषि विश्वविद्यालय की मशहूर किस्म है। इसके फल लंबे, बेलनाकार, और हरे रंग के होते हैं, जो देखने में आकर्षक और खाने में स्वादिष्ट होते हैं। यह किस्म सिर्फ़ 50-55 दिनों में तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। एक हेक्टेयर में यह 140-170 क्विंटल तक पैदावार दे सकती है। यह कीटों और रोगों से कम प्रभावित होती है, जिससे किसानों को कम मेहनत में अच्छी फसल मिलती है। गर्म जलवायु में यह किस्म खूब फलती-फूलती है।
पूसा चिकनी
पूसा चिकनी भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईसीएआर) की एक लोकप्रिय किस्म है। इसके फल चिकने, हरे, और मध्यम आकार के होते हैं, जो बाजार में खूब पसंद किए जाते हैं। यह 60-70 दिनों में पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है और एक हेक्टेयर में 150-200 क्विंटल तक उपज देती है। इसकी खासियत है कि यह बाजार में अच्छी माँग रखती है, जिससे किसानों को मुनाफा बढ़ाने में मदद मिलती है। यह किस्म गर्मियों में अच्छी पैदावार देती है और खेती के लिए ज्यादा जटिल देखभाल की ज़रूरत नहीं होती।
काशी दिव्या
काशी दिव्या वाराणसी के भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान की उन्नत किस्म है। इसके फल मध्यम आकार के, गुदेदार, और पतले होते हैं, जो खाने में स्वादिष्ट और बाजार में माँग में रहते हैं। यह 60 दिनों में तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है और एक हेक्टेयर में 130-160 क्विंटल तक उत्पादन दे सकती है। यह किस्म डाउनी मिल्ड्यू जैसे रोगों से लड़ने में माहिर है, जिससे फसल को नुकसान कम होता है। गर्मियों में यह किस्म किसानों के लिए बढ़िया साथ देती है।
पूसा सुप्रिया
पूसा सुप्रिया भी भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान की एक शानदार किस्म है। इसके फल मध्यम आकार के, चिकने, और हरे रंग के होते हैं, जो बाजार में अच्छी कीमत लाते हैं। यह सिर्फ़ 50 दिनों में तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है और एक हेक्टेयर में 130-140 क्विंटल तक पैदावार देती है। यह 25-37 डिग्री तापमान में अच्छी तरह बढ़ती है और रोगों से लड़ने में भी माहिर है। अगर आपके खेत की मिट्टी का पीएच 6.5-7.5 है, तो यह किस्म आपके लिए सबसे अच्छी रहेगी।
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खेत की तैयारी और बुवाई का तरीका
तोरई की खेती के लिए खेत को अच्छे से तैयार करना ज़रूरी है। सबसे पहले मिट्टी को हल से जोतकर भुरभुरा बनाएँ। इसके बाद गोबर की सड़ी खाद डालें, जो मिट्टी को ताकत देती है। अगर आप खाद में थोड़ा ट्राइकोडर्मा मिलाएँ, तो मिट्टी में रोग पैदा करने वाले कीटाणु कम होंगे। खेत को समतल करके ऊँची-ऊँची बेड बनाएँ। एक एकड़ में 1.5-2 किलो बीज काफी हैं। बेड पर पौधों के बीच 60 सेंटीमीटर की दूरी रखें, ताकि बेल को फैलने की जगह मिले। बेल को जाल या लकड़ी के सहारे चढ़ाएँ, इससे फल ज़मीन से दूर रहते हैं और उनकी गुणवत्ता बढ़िया रहती है।
देखभाल और रोगों से बचाव
तोरई की फसल को स्वस्थ रखने के लिए सही देखभाल बहुत ज़रूरी है। बुवाई के बाद हफ्ते में दो बार पानी दें, लेकिन खेत में पानी जमा न होने दें, क्योंकि ज़्यादा नमी से फफूंदी का खतरा बढ़ता है। कीटों और रोगों से बचने के लिए नीम का तेल या जैविक कीटनाशक का छिड़काव करें। डाउनी मिल्ड्यू, थ्रिप्स, और अन्य कीट तोरई को नुकसान पहुँचा सकते हैं। इनसे बचने के लिए नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से सलाह लें, जहाँ वैज्ञानिक आपको सही दवा और छिड़काव का समय बता सकते हैं। अगर आप जैविक तरीके अपनाना चाहते हैं, तो नीम का तेल, लहसुन, और मिर्च का मिश्रण बनाकर छिड़काव करें। यह सस्ता और कारगर तरीका है।
लागत और कमाई का गणित
तोरई की खेती में लागत ज्यादा नहीं आती। एक एकड़ में खेती के लिए 15-20 हज़ार रुपये का खर्चा आता है, जिसमें बीज, खाद, सिंचाई, और मज़दूरी शामिल है। अगर सही देखभाल करें, तो एक एकड़ से 50-80 क्विंटल तक तोरई मिल सकती है। गर्मियों में बाजार में इसका भाव 20-30 रुपये प्रति किलो तक जाता है। यानी, एक एकड़ से 1-1.5 लाख रुपये की कमाई हो सकती है। यह फसल सिर्फ़ 50-55 दिनों में तैयार हो जाती है, जिससे आप जल्दी मुनाफा कमा सकते हैं। इसकी माँग बाजार में हमेशा बनी रहती है, खासकर गर्मियों में।
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