Top-5 Varieties Of Ridge Gourd : तोरई या तुरई गर्मी और वर्षा ऋतु की लोकप्रिय सब्जी फसल है जो भारत के अधिकांश क्षेत्रों में सफलतापूर्वक उगाई जाती है। भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान (IIVR) वाराणसी चंद्रशेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय कानपुर और गोविंद बल्लभ पंत कृषि विश्वविद्यालय पंतनगर की रिपोर्ट्स के अनुसार उन्नत किस्में कम दिनों में तैयार हो जाती हैं तथा फल चिकने स्वादिष्ट और बाजार योग्य होते हैं। 2025 में ये किस्में उत्तर प्रदेश बिहार राजस्थान मध्य प्रदेश और अन्य राज्यों में किसानों के बीच लोकप्रिय हैं। एक हेक्टेयर से 130 से 220 क्विंटल तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। सही किस्म और प्रबंधन से कम लागत में अच्छी कमाई संभव है।
कल्याणपुर हरी चिकनी
कल्याणपुर हरी चिकनी चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कानपुर द्वारा विकसित किस्म है। फल हरे रंग के मध्यम आकार के गुदेदार और चिकने होते हैं। ये फल खाने में स्वादिष्ट तथा बाजार में लोकप्रिय हैं। रोपाई के 60-70 दिन बाद पहली तुड़ाई शुरू हो जाती है। उत्पादन 200-220 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक मिलता है। यह किस्म गर्म जलवायु में अच्छा प्रदर्शन करती है तथा रोगों के प्रति मध्यम सहनशील है। उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है।

पंत चिकनी तोरई-1
पंत चिकनी तोरई-1 गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय पंतनगर की उन्नत किस्म है। फल लंबे बेलनाकार हरे रंग के और आकर्षक होते हैं। रोपाई के 50-55 दिन में तुड़ाई शुरू हो जाती है। उत्पादन 140-170 क्विंटल प्रति हेक्टेयर रहता है। यह किस्म कीट और रोगों से कम प्रभावित होती है तथा गर्म और आर्द्र जलवायु में अच्छी पैदावार देती है। छोटे और मध्यम किसानों के लिए किफायती विकल्प है।
पूसा चिकनी
पूसा चिकनी भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) नई दिल्ली की प्रसिद्ध किस्म है। फल चिकने हरे रंग के और मध्यम आकार के होते हैं। बाजार में इनकी मांग हमेशा बनी रहती है। रोपाई के 60-70 दिन बाद फल तोड़ाई शुरू होती है। उत्पादन 150-200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक आता है। यह किस्म गर्मी के मौसम में अच्छी पैदावार देती है तथा अधिक देखभाल की जरूरत नहीं पड़ती। उत्तर और मध्य भारत में व्यापक रूप से उगाई जाती है।
काशी दिव्या
काशी दिव्या भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान (IIVR) वाराणसी द्वारा विकसित उन्नत किस्म है। फल मध्यम आकार के पतले गुदेदार और स्वादिष्ट होते हैं। रोपाई के 60 दिन में तुड़ाई शुरू हो जाती है। उत्पादन 130-160 क्विंटल प्रति हेक्टेयर रहता है। यह किस्म डाउनी मिल्ड्यू जैसे प्रमुख रोगों के प्रति अच्छी प्रतिरोधक क्षमता रखती है। गर्मी और मानसून दोनों मौसम में सफल होती है। पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के लिए विशेष रूप से उपयुक्त है।

पूसा सुप्रिया
पूसा सुप्रिया भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान की एक और उन्नत किस्म है। फल मध्यम आकार के चिकने और हरे रंग के होते हैं जो बाजार में अच्छी कीमत दिलाते हैं। रोपाई के मात्र 50 दिन में तुड़ाई शुरू हो जाती है। उत्पादन 130-140 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक मिलता है। यह किस्म 25-37 डिग्री तापमान में अच्छी तरह बढ़ती है तथा रोग प्रतिरोधक है। मिट्टी का पीएच 6.5 से 7.5 के लिए सबसे अनुकूल है।
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खेत की तैयारी और बुवाई का तरीका
तोरई की खेती के लिए खेत को अच्छे से तैयार करना ज़रूरी है। सबसे पहले मिट्टी को हल से जोतकर भुरभुरा बनाएँ। इसके बाद गोबर की सड़ी खाद डालें, जो मिट्टी को ताकत देती है। अगर आप खाद में थोड़ा ट्राइकोडर्मा मिलाएँ, तो मिट्टी में रोग पैदा करने वाले कीटाणु कम होंगे। खेत को समतल करके ऊँची-ऊँची बेड बनाएँ। एक एकड़ में 1.5-2 किलो बीज काफी हैं। बेड पर पौधों के बीच 60 सेंटीमीटर की दूरी रखें, ताकि बेल को फैलने की जगह मिले। बेल को जाल या लकड़ी के सहारे चढ़ाएँ, इससे फल ज़मीन से दूर रहते हैं और उनकी गुणवत्ता बढ़िया रहती है।
देखभाल और रोगों से बचाव
तोरई की फसल को स्वस्थ रखने के लिए सही देखभाल बहुत ज़रूरी है। बुवाई के बाद हफ्ते में दो बार पानी दें, लेकिन खेत में पानी जमा न होने दें, क्योंकि ज़्यादा नमी से फफूंदी का खतरा बढ़ता है। कीटों और रोगों से बचने के लिए नीम का तेल या जैविक कीटनाशक का छिड़काव करें। डाउनी मिल्ड्यू, थ्रिप्स, और अन्य कीट तोरई को नुकसान पहुँचा सकते हैं। इनसे बचने के लिए नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से सलाह लें, जहाँ वैज्ञानिक आपको सही दवा और छिड़काव का समय बता सकते हैं। अगर आप जैविक तरीके अपनाना चाहते हैं, तो नीम का तेल, लहसुन, और मिर्च का मिश्रण बनाकर छिड़काव करें। यह सस्ता और कारगर तरीका है।
लागत और कमाई का गणित
तोरई की खेती में लागत ज्यादा नहीं आती। एक एकड़ में खेती के लिए 15-20 हज़ार रुपये का खर्चा आता है, जिसमें बीज, खाद, सिंचाई, और मज़दूरी शामिल है। अगर सही देखभाल करें, तो एक एकड़ से 50-80 क्विंटल तक तोरई मिल सकती है। गर्मियों में बाजार में इसका भाव 20-30 रुपये प्रति किलो तक जाता है। यानी, एक एकड़ से 1-1.5 लाख रुपये की कमाई हो सकती है। यह फसल सिर्फ़ 50-55 दिनों में तैयार हो जाती है, जिससे आप जल्दी मुनाफा कमा सकते हैं। इसकी माँग बाजार में हमेशा बनी रहती है, खासकर गर्मियों में।
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