Take care of Fish Farming in Summer : मछली पालन करने वाले किसान भाइयों के लिए गर्मी का मौसम थोड़ा मुश्किल भरा होता है। जैसे-जैसे धूप तेज होती है, तालाब का पानी गर्म हो जाता है, और मछलियों को कई तरह के रोग लगने का खतरा बढ़ जाता है। अगर सही वक्त पर ध्यान न दिया जाए, तो मछलियाँ बीमार पड़ सकती हैं, और सारा मेहनत-मुनाफा पानी में मिल सकता है। गर्मी में पानी का तापमान बढ़ने, ऑक्सीजन कम होने और कीटाणुओं के पनपने से रोग फैलते हैं। आइए जानते हैं कि गर्मी में मछलियों को कौन-कौन से रोग हो सकते हैं और उनसे बचने के देसी उपाय क्या हैं, ताकि आपकी मछलियाँ स्वस्थ रहें और कमाई भी बढ़े।
गर्मी में मछलियों को होने वाले रोग
गर्मी का मौसम मछलियों के लिए कई परेशानियाँ लाता है। पहला रोग है सफेद धब्बे रोग (व्हाइट स्पॉट डिजीज), जिसे इक्थियो भी कहते हैं। इसमें मछली की त्वचा पर छोटे-छोटे सफेद दाने निकल आते हैं, और वो कमजोर हो जाती है। दूसरा है फिन रॉट (पंख सड़न), जिसमें मछली के पंख सड़ने लगते हैं, और वो तैरने में दिक्कत महसूस करती है। तीसरा बड़ा रोग है बैक्टीरियल इन्फेक्शन, जो गंदे पानी से फैलता है – इसमें मछली की आँखें लाल हो जाती हैं, और शरीर पर घाव बन जाते हैं।
चौथा है पैरासाइट इन्फेक्शन, जिसमें जोंक जैसे कीड़े मछली की त्वचा पर चिपक जाते हैं। और पाँचवाँ है ऑक्सीजन की कमी, जो गर्मी में पानी में घुली ऑक्सीजन कम होने से होती है – मछलियाँ सतह पर मुँह मारती दिखती हैं।
रोगों के कारण
गर्मी में तालाब का पानी 30 डिग्री से ऊपर चला जाता है, जिससे कीटाणु तेजी से बढ़ते हैं। ज्यादा मछलियाँ हों तो पानी गंदा हो जाता है, और ऑक्सीजन कम पड़ती है। बचा हुआ चारा और मछलियों का मल पानी को खराब करता है। बारिश न होने से तालाब का पानी स्थिर रहता है, जिससे रोग फैलने का खतरा बढ़ता है। अगर सही देखभाल न हो, तो मछलियाँ कमजोर पड़कर बीमार हो जाती हैं।
बचाव के देसी और आसान उपाय
अब बात करते हैं कि इन रोगों से मछलियों को कैसे बचाएं। सबसे पहले तालाब की साफ-सफाई का ध्यान रखें। हर हफ्ते तालाब के पानी का 20-30% हिस्सा बदल दें और ताजा पानी डालें। पानी में ऑक्सीजन बढ़ाने के लिए पंखा या एयर पंप लगाएं, या नीम की टहनियाँ डालें—ये देसी तरीका ऑक्सीजन बढ़ाता है और कीटाणुओं को कम करता है। सफेद धब्बे और बैक्टीरियल रोग से बचने के लिए 1 हेक्टेयर तालाब में 1 किलो नमक डालें, ये कीटाणुओं को मारता है। नीम का तेल 2-3 लीटर प्रति हेक्टेयर पानी में मिलाएँ, ये पैरासाइट और फंगल इन्फेक्शन से लड़ता है।
फिन रॉट और घावों के लिए हल्दी का इस्तेमाल करें। 1 किलो हल्दी पाउडर को पानी में घोलकर तालाब में डालें, ये प्राकृतिक एंटीसेप्टिक है। मछलियों को खिलाने में सावधानी बरतें—ज्यादा चारा न डालें, और बचा हुआ चारा निकाल दें। गोबर की खाद कम डालें, क्यूंकि गर्मी में ये पानी को और गंदा करती है। तालाब के किनारे पेड़-पौधे लगाएं, ताकि छाया बने और पानी ज्यादा गर्म न हो। अगर मछलियाँ सतह पर मुँह मार रही हों, तो तुरंत पानी में बर्फ के टुकड़े डालें, इससे तापमान कम होगा।
सही खुराक और देखभाल
मछलियों को गर्मी में हल्का और पौष्टिक खाना दें, जैसे चावल की भूसी, मक्के का आटा और मछली दाना। दिन में 2 बार थोड़ा-थोड़ा खिलाएँ, ताकि पानी खराब न हो। तालाब में कतला, रोहू और मृगल जैसी मछलियाँ रखें, जो गर्मी में भी ठीक रहती हैं। हर 10-15 दिन में पानी की जाँच करें—अगर पानी हरा हो जाए, तो जिप्सम (10-15 किलो प्रति हेक्टेयर) डालें। बीमार मछलियों को तुरंत अलग करें, वरना रोग फैल सकता है।
सावधानियाँ
इन उपायों से मछलियाँ स्वस्थ रहेंगी, और मरने का नुकसान कम होगा। एक हेक्टेयर तालाब से 3-5 टन तक पैदावार हो सकती है, जो अच्छी कमाई देती है। मगर ध्यान रखें कि तालाब में ज्यादा मछलियाँ न डालें, वरना ऑक्सीजन की कमी होगी। रसायनिक दवाओं से बचें, क्यूंकि ऑर्गेनिक तरीके लंबे वक्त तक फायदा देते हैं। गर्मी में रोज तालाब देखें, ताकि कोई दिक्कत जल्दी पकड़ में आए।
ये भी पढ़ें – मछलियों को तेजी से बढ़ाना है तो उन्हें,गोबर के घोल के साथ दीजिए ये चमत्कारी आहार
