किसान भाइयों, आज हम एक ऐसी सब्जी की बात करेंगे, जो प्रोटीन में अंडे को भी पीछे छोड़ देती है और आपकी जेब को मालामाल कर सकती है – बाकला! बाकला की हरी फली न सिर्फ सेहत के लिए वरदान है, बल्कि बाज़ार में इसकी माँग भी गजब की है। लोग इसे सब्जी, सलाद, या भूनकर खाना पसंद करते हैं, क्यूंकि ये पोषक तत्वों से भरपूर है। प्रोटीन, फाइबर, आयरन, और विटामिन से लबरेज बाकला सेहत को फौलादी बनाती है। गाँव में इसकी खेती शुरू करें, तो लाखों की कमाई पक्की है। आइए बाकला की खेती का तरीका जानते हैं।
बाकला क्या है अंडे से ज्यादा ताकतवर कैसे
बाकला की हरी फली में 25-30 ग्राम प्रोटीन प्रति किलो होता है, जबकि अंडा 100 ग्राम में सिर्फ 13 ग्राम देता है। ये आयरन, फोलिक एसिड, और फाइबर का खजाना है, जो शरीर को ताकत देता है। ठंड में उगने वाली ये रबी फसल 60-80 दिन में तैयार हो जाती है। बाज़ार में 30-50 रुपये किलो तक बिकती है। एक हेक्टेयर से 142 क्विंटल उपज मिलती है, यानी कम मेहनत में बंपर फायदा। सेहत और दौलत दोनों के लिए बाकला सच्चा साथी है।
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खेत को तैयार करने का आसान तरीका
बाकला की खेती (bakla ki kheti) के लिए जल निकासी वाली दोमट मिट्टी सबसे अच्छी है। खेत को बैल या ट्रैक्टर से 2-3 बार जोतें, ताकि मिट्टी ढीली हो जाए। प्रति हेक्टेयर 10-12 टन गोबर की सड़ी खाद डालें। अगर मिट्टी सख्त हो, तो रेत मिलाकर हल्की करें। pH 6-7 रखें। अक्टूबर के मध्य से नवंबर तक खेत तैयार करें। क्यारियाँ बनाएँ, ताकि पानी जमा न हो। ये देसी तरीका मिट्टी को ताकत देगा और फसल को आसानी से बढ़ने का रास्ता देगा।
बुवाई का सही ढंग और समय
बाकला की बुवाई ठंड शुरू होते ही, यानी अक्टूबर के आखिर से नवंबर तक करें। प्रति हेक्टेयर 70-100 किलो बीज चाहिए। बीज को रातभर पानी में भिगो दें, ताकि अंकुरण तेज हो। क्यारियों में पंक्ति से पंक्ति 30 सेमी और पौधे से पौधे 10 सेमी की दूरी रखें। बीज को 4-5 सेमी गहरा बोएं। हल्का पानी छिड़कें। 7-10 दिन में पौधे निकल आएँगे। ‘HFB-1’, ‘HFB-153’, या देसी किस्में लें, जो ठंड में भी शानदार बढ़ें। बैल से लाइन बनाकर बोएं, तो मेहनत बचेगी।
बीज कहाँ से जुटाएँ
बाकला के बीज गाँव की दुकानों, कृषि केंद्र, या नर्सरी से 50-80 रुपये किलो मिलते हैं। सरकारी बीज भंडार से सस्ते में ले सकते हैं। ऑनलाइन इंडिया मार्ट पर भी उपलब्ध हैं। पुराने किसानों से देसी बीज माँग लें। बीज ताजा और कीट-मुक्त हो। छोटे खेत के लिए 5-10 किलो से शुरू करें। अच्छा बीज बाकला की फसल को चमकाएगा।
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देखभाल और कीटों से बचाव
बाकला में माहू (एफिड्स) और पत्ती खाने वाली सुंडी का खतरा रहता है। नीम का तेल (5 मिली प्रति लीटर पानी) छिड़कें। फफूंद से बचने के लिए बीज को थाइरम (3 ग्राम प्रति किलो) से उपचारित करें। 20-25 दिन बाद हल्की गुड़ाई करें, खरपतवार हटाएँ। ठंड में ओस से पत्तियाँ गलें, तो पुआल डालें। पौधों को सहारा देने के लिए बाँस का ढांचा बनाएँ। थोड़ी मेहनत से फसल लहलहाएगी।
कटाई और कमाई का धमाल
बाकला की हरी फली 60-80 दिन में तैयार हो जाती है। जब फलियाँ हरी, चमकदार, और रसीली हों, तो सुबह तोड़ें। एक हेक्टेयर से 142 क्विंटल उपज मिलती है। लागत 20,000-30,000 रुपये (बीज, खाद, मजदूरी) आती है। 30-50 रुपये किलो के हिसाब से 4-7 लाख रुपये की कमाई हो सकती है। गाँव में बेचें या मंडी भेजें, हर तरफ फायदा। सूखे बीज भी 50-70 रुपये किलो बिकते हैं।
बाकला मिट्टी में नाइट्रोजन डालती है, जो अगली फसल को ताकत देती है। ये सेहत का खजाना है और बाज़ार में छाई रहती है। कम खर्च में लाखों की कमाई का मौका देती है। ठंड में आसानी से उगती है और मेहनत कम माँगती है। तो खेत तैयार करें, बाकला बोएं, और सेहत-दौलत दोनों पाएँ!
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