किसान भाइयों, ग्रीष्मकालीन जुताई मिट्टी को स्वस्थ और उपजाऊ रखने का सबसे आसान और सस्ता तरीका है। अप्रैल-मई की गर्मी में खेत की गहरी जुताई करने से मिट्टी हवादार बनती है, कीट-रोग खत्म होते हैं, और खरपतवार की समस्या कम होती है। इससे अगली फसल की पैदावार 20-30% तक बढ़ सकती है। ये पुराना, आजमाया हुआ तरीका भारत के हर हिस्से में, खासकर उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान में लोकप्रिय है। लागत सिर्फ 500-1000 रुपये प्रति बीघा आती है, और फायदा कई गुना मिलता है। गर्मी में खेत को तैयार करें, मिट्टी को ताकत दें, और बंपर फसल का आनंद लें।
ग्रीष्मकालीन जुताई के फायदे
ग्रीष्मकालीन जुताई मिट्टी को नया जीवन देती है। गहरी जुताई से मिट्टी की सख्त परत टूटती है, और पोषण अच्छे से ले पाती हैं। सूरज की तेज गर्मी मिट्टी में छिपे कीटों जैसे दीमक, तना छेदक, उनके अंडों और लार्वा को मार देती है। खरपतवार और उनके बीज जलकर नष्ट हो जाते हैं, जिससे अगली फसल में खरपतवार 30-40% तक कम होता है। मिट्टी में हवा का संचार बढ़ता है, नमी का संतुलन बनता है, और जैविक तत्व आसानी से घुलते हैं। इससे धान, गेहूं, मक्का, दालें और सब्जियों की पैदावार बढ़ती है। ये तरीका पर्यावरण के लिए भी सुरक्षित है, क्योंकि रासायनिक कीटनाशकों, खरपतवारनाशकों की जरूरत कम हो जाती है, जिससे लागत बचती है।
जुताई का सही समय और तरीका
ग्रीष्मकालीन जुताई का सबसे अच्छा समय अप्रैल-मई है, जब तापमान 35-45 डिग्री के बीच होता है। इस समय सूरज की गर्मी मिट्टी को प्राकृतिक रूप से साफ करती है। ट्रैक्टर, हल या रोटावेटर से 8-12 इंच गहरी जुताई करें। पहले हल्की जुताई करें, फिर 7-10 दिन बाद गहरी जुताई करें। खेत को 15-20 दिन तक खुला छोड़ दें, ताकि सूरज की गर्मी अपना काम कर सके। दोमट, चिकनी, रेतीली—हर तरह की मिट्टी में ये फायदेमंद है। ध्यान रखें कि जुताई के बाद खेत में पानी न भरने दें, वरना मिट्टी फिर से सख्त हो सकती है। सही समय और तरीके से जुताई करने से मिट्टी की संरचना सुधरती है, और फसल को पूरा पोषण मिलता है।
जैविक खाद का साथ
जुताई के साथ जैविक खाद का इस्तेमाल मिट्टी को और ताकतवर बनाता है। गोबर की खाद 2-3 टन प्रति बीघा डालें, जो मिट्टी में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस जैसे पोषक तत्व बढ़ाती है। वर्मी कम्पोस्ट 500 किलो प्रति बीघा मिलाएँ, जो मिट्टी में माइक्रोब्स को बढ़ाकर उर्वरता बढ़ाता है। नीम की खली 100-150 किलो प्रति बीघा डालें, जो कीटों को दूर रखती है और मिट्टी को पोषण देती है। जुताई के बाद जीवामृत 50 लीटर प्रति बीघा छिड़कें, ताकि मिट्टी की जैविक शक्ति बनी रहे। ये जैविक उपाय मिट्टी में कार्बन की मात्रा बढ़ाते हैं, जो फसलों को लंबे समय तक फायदा देता है। रासायनिक खादों से बचें, क्योंकि वे मिट्टी की प्राकृतिक ताकत को कम कर सकते हैं।
कीट और रोगों पर काबू
ग्रीष्मकालीन जुताई कीटों और रोगों को जड़ से खत्म करती है। 40-45 डिग्री तापमान में फ्यूजेरियम, राइजोक्टोनिया जैसे फफूंद नष्ट हो जाते हैं, जो धान, गेहूं में झुलसा रोग लाते हैं। दीमक, कटवर्म, और मिट्टी में छिपे अंडे गर्मी में खत्म हो जाते हैं। खरपतवार जैसे बथुआ, सेंजी, मोथा जलकर राख हो जाते हैं। जुताई के बाद नीम का तेल 5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़कें, ताकि बचे हुए कीट भी भाग जाएँ। ये प्राकृतिक तरीका रासायनिक दवाओं पर होने वाला खर्च 2000-3000 रुपये प्रति बीघा बचाता है। मिट्टी साफ और स्वस्थ रहती है, जिससे फसल को रोगों से लड़ने की ताकत मिलती है।
कमाई और मुनाफा का हसाब
ग्रीष्मकालीन जुताई से फसल की पैदावार बढ़ती है, और कमाई में इजाफा होता है। धान, गेहूं, सब्जियों की उपज 20-30% बढ़ सकती है। एक बीघा में 5-7 क्विंटल अतिरिक्त धान यानी 8000-10,000 रुपये की कमाई हो सकती है। जुताई, खाद, मजदूरी में 500-1000 रुपये प्रति बीघा खर्च आता है। कीटनाशक, खरपतवारनाशी पर 2000-3000 रुपये की बचत होती है। कुल मिलाकर 10,000-15,000 रुपये प्रति बीघा अतिरिक्त मुनाफा मिलता है। स्वस्थ मिट्टी से बनी फसल मंडी, ऑर्गेनिक स्टोर में 10-20% ज्यादा दाम पाती है। सरकार की मृदा स्वास्थ्य योजनाओं से सब्सिडी भी ले सकते हैं। ग्रीष्मकालीन जुताई मिट्टी को सालों तक तंदुरुस्त रखती है, जिससे खेती हमेशा फायदेमंद रहती है।
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