Arbi Ki Kheti Kaise Kare: अगर आप किसान हैं और फरवरी के महीने में खाली पड़े खेतों का सही इस्तेमाल करना चाहते हैं, तो अरबी की खेती (Taro Farming) आपके लिए फायदेमंद साबित हो सकती है। ये एक ऐसी सब्जी है, जिसकी खेती कम लागत में की जा सकती है और इसकी बाजार में हमेशा अच्छी मांग रहती है। आइए जानते हैं, अरबी की खेती के हर पहलू को देसी अंदाज में।
अरबी की खेती क्यों है खास?- Arbi Ki Kheti Kaise Kare
अरबी की खेती भारत में लंबे समय से हो रही है। इसे उगाना आसान है और इसकी फसल कम समय में तैयार हो जाती है। फरवरी के महीने में अरबी की बुवाई करने से आपको बाजार में इसका अच्छा भाव मिलता है। इसकी जड़ और पत्तियां, दोनों ही उपयोगी हैं। अरबी सेहत के लिए भी फायदेमंद होती है, क्योंकि इसमें कई पोषक तत्व पाए जाते हैं।
अरबी की खेती (Taro Farming) के लिए जलवायु
फरवरी का महीना अरबी की बुवाई के लिए सबसे सही माना जाता है। इस समय मौसम ठंडा और शुष्क रहता है, जो फसल के लिए बहुत अनुकूल होता है। तापमान अगर 25-35 डिग्री सेल्सियस के बीच रहे, तो फसल की अच्छी बढ़ोतरी होती है।
खेत की तैयारी
अरबी की खेती के लिए सबसे जरूरी है, सही मिट्टी और खेत की तैयारी। हल्की रेतीली और दोमट मिट्टी इसमें बेहतरीन परिणाम देती है। खेत को अच्छी तरह से जोतें ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए। खेत में जैविक खाद डालें और नाइट्रोजनयुक्त उर्वरक का सही इस्तेमाल करें। इससे फसल को जरूरी पोषण मिलता है।
अरबी की उन्नत किस्में- Arbi Ki Kheti Kaise Kare
इंदिरा अरबी 1
यह किस्म मध्यम आकार के हरे पत्तों वाली होती है। इसके तने का रंग बैंगनी और हरा होता है। 9-10 मुख्य कंद पाये जाते हैं और ये 210-220 दिनों में खुदाई योग्य हो जाती है। औसत पैदावार 22-33 टन प्रति हेक्टेयर है।
श्रीरश्मि
इसकी पत्तियां झुकी हुई और किनारे बैंगनी रंग लिये होती हैं। मातृ कंद बड़ा और बेलनाकार होता है। कंद खुजलाहट रहित होते हैं और 200-201 दिनों में तैयार हो जाते हैं। औसत पैदावार 15-20 टन प्रति हेक्टेयर है।
पंचमुखी
इस किस्म में 5 मुख्य कंदिकाएं पायी जाती हैं। ये 180-200 दिनों में खुदाई योग्य होती हैं। औसत पैदावार 18-25 टन प्रति हेक्टेयर है।
व्हाइट गौरेइया
यह किस्म 180-190 दिनों में तैयार हो जाती है। पत्तियां और कंद खुजलाहट मुक्त होते हैं। औसत पैदावार 17-19 टन प्रति हेक्टेयर है।
नरेन्द्र अरबी
170-180 दिनों में तैयार होने वाली इस किस्म की औसत पैदावार 12-15 टन प्रति हेक्टेयर है। इसकी पत्तियां, तने और कंद सभी खाने योग्य होते हैं।
पंजाब अरबी – 1
2009 में विकसित इस किस्म की उपज 22-22.5 टन प्रति हेक्टेयर है और यह 175-180 दिनों में तैयार हो जाती है। इसके कंद भूरे रंग के और गूदे का रंग क्रीम होता है।
अन्य किस्में
श्री पल्लवी, श्री किरण, सतमुखी, आजाद अरबी, मुक्ताकेशी और बिलासपुर अरूम भी अच्छी किस्मों में शामिल हैं। इनकी औसत पैदावार 17-30 टन प्रति हेक्टेयर है।
बुवाई का तरीका
अरबी की अच्छी फसल के लिए बीज की क्वालिटी बहुत मायने रखती है। बीजों को 12-24 घंटे तक पानी में भिगो लें, ताकि उनकी अंकुरण क्षमता बढ़ सके। फरवरी के पहले या दूसरे हफ्ते में बुवाई करें। बुवाई के समय पौधों के बीच उचित दूरी रखें, जिससे उनकी जड़ें अच्छे से फैल सकें।
फसल की सिंचाई
अरबी को ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती, लेकिन नियमित अंतराल पर सिंचाई करना जरूरी है। पहली सिंचाई बुवाई के तुरंत बाद करें और उसके बाद हर 10-15 दिन में पानी दें। खेत में खरपतवार को समय-समय पर निकालें और मिट्टी को हल्का ढीला करते रहें, ताकि पौधों को बेहतर पोषण मिले।
कटाई का सही समय और तरीका
अरबी की फसल 90-120 दिनों में तैयार हो जाती है। जब पौधों के पत्ते पीले पड़ने लगें, तो समझिए कि फसल कटाई के लिए तैयार है। कटाई करते समय पौधों को सावधानीपूर्वक जड़ से निकालें। कंदों को साफ पानी से धोकर पैकिंग करें, ताकि बाजार में अच्छे दाम मिल सकें।
एक एकड़ में उपज और कमाई
अगर आप अरबी की खेती सही तरीके से करें, तो एक एकड़ में करीब 250-300 क्विंटल फसल हो सकती है। फरवरी में इसकी बाजार कीमत 10-12 रुपये प्रति किलो होती है। यानी एक एकड़ में 2.5-3 लाख रुपये तक की कमाई हो सकती है।
अरबी की खेती में ज्यादा लागत नहीं लगती। बीज, खाद और सिंचाई समेत कुल खर्च करीब 25,000-30,000 रुपये आता है। इतने कम खर्च में अच्छी कमाई होने की वजह से किसान इसे पसंद करते हैं।
अरबी की खेती (Taro Farming) के फायदे
अरबी की खेती में नुकसान के चांस बहुत कम हैं। ये फसल कीट और रोगों के प्रति काफी सहनशील होती है। इसकी जड़ और पत्तियां दोनों ही बाजार में बिकती हैं, जिससे अतिरिक्त आय होती है। भारत में अरबी की मांग हर समय बनी रहती है, और इसका निर्यात भी किया जाता है।
अगर आप किसान हैं और फरवरी में खाली पड़े खेतों का सही उपयोग करना चाहते हैं, तो अरबी की खेती आपके लिए एक सुनहरा मौका है। कम लागत, बेहतर उपज और बाजार में इसकी हमेशा बनी रहने वाली मांग इसे किसानों के लिए एक फायदे का सौदा बनाती है। इस बार फरवरी में अरबी की खेती जरूर करें और अपनी आमदनी बढ़ाएं।
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