कम लागत में चाहते हैं बम्पर कमाई तो कीजिए इस छोटे तरबूज की खेती, रेगिस्तान की मुनाफेदार फसल

किसान साथियों, कचरी एक छोटी, गोल, पीली-भूरी सब्जी है, जो छोटे तरबूज जैसी दिखती है। राजस्थान, हरियाणा, और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इसकी खेती खासतौर पर रेतीली और बंजर जमीन पर की जाती है। गर्मी और सूखे को सहन करने वाली यह फसल कम लागत (15,000-20,000 रुपये/एकड़) में 1-2 लाख रुपये का मुनाफा दे सकती है। इसके स्वाद, औषधीय गुण (पाचन, मधुमेह नियंत्रण), और मसाला-अचार बनाने में उपयोग के कारण बाजार में माँग बढ़ रही है। स्थानीय व्यंजनों और आयुर्वेद में इसका महत्व इसे किसानों के लिए वरदान बनाता है। यह खेती छोटे किसानों और कम उपजाऊ जमीन वालों के लिए आदर्श है।

जलवायु और मिट्टी की जरूरतें

कचरी की खेती के लिए गर्म और शुष्क जलवायु (30-45°C) सर्वोत्तम है, जो राजस्थान, हरियाणा, और पश्चिमी यूपी की गर्मियों के लिए उपयुक्त है। यह फसल कम पानी में पनपती है, इसलिए रेतीली, बलुई दोमट, या बंजर जमीन (pH 6-7.5) आदर्श है। अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी में जड़ें मजबूत होती हैं, और उपज बढ़ती है। भारी या जलजमाव वाली मिट्टी से बचें। कम उपजाऊ जमीन में 2-3 टन गोबर खाद/एकड़ मिलाकर खेती शुरू करें। यह फसल सूखा सहन करने की क्षमता के लिए जानी जाती है।

कचरी का बीज कैसे प्राप्त करें?

इसका बीज बाजार में आसानी से उपलब्ध नहीं होता, लेकिन कुछ सरकारी कृषि अनुसंधान केंद्र, कृषि विज्ञान केंद्र (KVK), या स्थानीय बीज उत्पादन समितियों के पास से इसकी जानकारी मिल सकती है। इसके अलावा राजस्थान के जोधपुर, बीकानेर और बाड़मेर जैसे इलाकों में पारंपरिक किसान या ऑर्गेनिक बीज विक्रेता कचरी का देसी बीज उपलब्ध कराते हैं। ऑनलाइन बीज कंपनियां जैसे इफको किसान, कृषिकला या अगेती बीज स्टोर्स से भी ऑर्डर किया जा सकता है। बीज खरीदते समय यह सुनिश्चित करें कि वह स्थानीय जलवायु के अनुसार हो और किसी प्रमाणित स्रोत से हो ताकि उपज अच्छी मिले।

बुवाई का समय और तरीका

कचरी की बुवाई गर्मी के मौसम में, मार्च से मई तक, की जाती है। खेत की तैयारी के लिए 2-3 बार गहरी जुताई करें, मिट्टी भुरभुरी बनाएँ, और गोबर खाद (2-3 टन/एकड़) मिलाएँ। खेत को समतल कर 2×2 मीटर की दूरी पर 2-3 बीज 3-4 सेमी गहराई में बोएँ। प्रति एकड़ 2-2.5 किलो बीज पर्याप्त हैं। बुवाई के बाद हल्की सिंचाई करें। 7-14 दिनों में अंकुरण शुरू होता है। सीड ड्रिल या कतार विधि (2 मीटर दूरी) से बीज बोने से उपज बढ़ती है। स्थानीय किस्में (जैसलमेर, बाड़मेर) या उन्नत किस्में (ICAR से) चुनें।

देखभाल और सिंचाई

यह फसल कम देखभाल माँगती है। पहले 20-25 दिन हर 5-7 दिन में हल्की सिंचाई करें ताकि जड़ें मजबूत हों। इसके बाद 10-15 दिन के अंतराल पर, मौसम के अनुसार, पानी दें। ड्रिप सिस्टम से 20-30% पानी बचता है। खरपतवार नियंत्रण के लिए बुवाई के 15-20 दिन बाद और 40 दिन बाद निराई-गुड़ाई करें। कीट (फल मक्खी) और रोग (पाउडरी मिल्ड्यू) कम लगते हैं; नीम तेल (5 मिली/लीटर) या जैविक कीटनाशक (बविस्टिन, 2 ग्राम/लीटर) छिड़कें। 100-150 ग्राम वर्मी कम्पोस्ट/पौधा सालाना डालें।

तुड़ाई और मुनाफा

बुवाई के 60-70 दिन बाद कचरी तुड़ाई के लिए तैयार होती है। हरे फल सलाद या सब्जी के लिए और सूखे फल मसाला-अचार के लिए बिकते हैं। सूखी कचरी की माँग ज्यादा है, जिसका मूल्य 150-300 रुपये/किलो है। एक एकड़ से 10-15 क्विंटल सूखी कचरी मिलती है, यानी 1.5-4.5 लाख रुपये की आय। लागत (15,000-20,000 रुपये) और रखरखाव (5,000-10,000 रुपये) घटाकर 1-2 लाख रुपये मुनाफा। जैविक कचरी की कीमत 350-400 रुपये/किलो तक जाती है। स्थानीय मंडी, मसाला कंपनियाँ, या ऑनलाइन (IndiaMART, AgriMart) में बेचें।

प्रोसेसिंग और अतिरिक्त कमाई

कचरी को सुखाकर मसाला, अचार, या चटनी बनाकर मुनाफा 30-50% बढ़ाया जा सकता है। 1 किलो सूखी कचरी से 2-3 किलो अचार (500-800 रुपये/किलो) बनता है। ऑर्गेनिक और देसी मसालों की ऑनलाइन माँग (Amazon, Flipkart, BigBasket) बढ़ रही है। स्थानीय ब्रांड बनाकर या FPO के जरिए निर्यात (मध्य पूर्व) करें। APEDA से निर्यात लाइसेंस लें। राष्ट्रीय बागवानी मिशन से 40-50% सब्सिडी, KVK से प्रशिक्षण, और AIF योजना से 2 करोड़ लोन (3% ब्याज सब्सिडी) मिलता है। ड्रिप सिस्टम पर 50% सब्सिडी लें। कचरी की खेती रेतीली जमीन वाले किसानों के लिए कम मेहनत में लाखों की कमाई का सुनहरा अवसर है।

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  • Dharmendra

    मै धर्मेन्द्र एक कृषि विशेषज्ञ हूं जिसे खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी साझा करना और नई-नई तकनीकों को समझना बेहद पसंद है। कृषि से संबंधित लेख पढ़ना और लिखना मेरा जुनून है। मेरा उद्देश्य है कि किसानों तक सही और उपयोगी जानकारी पहुंचे ताकि वे अधिक उत्पादन कर सकें और खेती को एक लाभकारी व्यवसाय बना सकें।

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