Yellow Carrot Cultivation in Hindi: बिहार के छपरा जिले के भीखमपुर गांव में पीला गाजर किसानों की किस्मत चमका रहा है। यहां के किसान रंजीत सिंह ने कुछ साल पहले इस अनोखे गाजर की खेती शुरू की और आज सीजन में दो-तीन लाख रुपये कमा रहे हैं। उनकी सफलता ने पूरे गांव को प्रेरित किया है। अब आसपास के किसान भी पारंपरिक फसलों को छोड़कर पीले गाजर की खेती की ओर बढ़ रहे हैं। रंजीत बताते हैं कि यह फसल कम खर्च में ज्यादा मुनाफा देती है। गर्मियों की तपती धूप में भी यह बंपर पैदावार दे रही है, जिससे एक कट्ठा ज़मीन से 4-5 क्विंटल गाजर मिल जाता है। यह न सिर्फ स्वाद में लाजवाब है, बल्कि बाज़ार में भी इसकी खूब मांग है।
पीले गाजर की खासियत
पीला गाजर अपने चटख रंग और मीठे स्वाद के लिए मशहूर है। यह लाल या काले गाजर से ज्यादा मिठास लिए होता है, जिसकी वजह से शादी-विवाह, उत्सवों और रेस्तरां में इसकी डिमांड रहती है। रंजीत के मुताबिक, इस गाजर की खेती में ज्यादा देखभाल की जरूरत नहीं पड़ती। सिर्फ 100 ग्राम बीज से तीन कट्ठा खेत में बुवाई हो जाती है, जो इसे सस्ता और आसान बनाता है। यह गाजर न सिर्फ ताज़ा खाने के लिए बल्कि सलाद, जूस, और मिठाइयों में भी इस्तेमाल होता है। इसकी मांग स्थानीय मंडियों से लेकर बड़े शहरों तक है, और गर्मियों में भी यह अच्छी पैदावार देता है। विटामिन A और बीटा-कैरोटीन से भरपूर होने की वजह से यह सेहत के लिए भी फायदेमंद है।
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खेत की तैयारी और बुवाई
पीले गाजर की खेती शुरू करने से पहले खेत को अच्छे से तैयार करना जरूरी है। मिट्टी को भुरभुरा करने के लिए 2-3 बार जुताई करें। रेतीली दोमट मिट्टी इस फसल के लिए सबसे अच्छी है, जिसमें जल निकास अच्छा हो। मिट्टी का पीएच 6 से 7 होना चाहिए। खेत में 8-10 टन गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट डालें, ताकि मिट्टी की ताकत बढ़े। बीज को लाइनों में बोएं, हर पंक्ति के बीच 30-40 सेंटीमीटर की दूरी रखें। बुवाई के लिए अगस्त से नवंबर का समय सबसे सही है, लेकिन छपरा जैसे इलाकों में गर्मियों में भी खेती हो रही है। बुवाई के बाद हल्की सिंचाई करें, ताकि बीज अच्छे से अंकुरित हों। रंजीत सलाह देते हैं कि बीज किसी विश्वसनीय कृषि केंद्र से लें, ताकि पैदावार अच्छी हो।
खाद और देखभाल
पीले गाजर की अच्छी पैदावार के लिए सही खाद जरूरी है। प्रति हेक्टेयर 150 क्विंटल गोबर की खाद, 60-70 किलो नाइट्रोजन, और 30 किलो पोटाश डालें। नाइट्रोजन को बुवाई के 15 और 30 दिन बाद दो हिस्सों में दें। जैविक खेती के लिए नीम की खली और आज़ोटोबैक्टर का इस्तेमाल करें। अगर मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी हो, तो कृषि केंद्र से मिट्टी की जांच करवाएं। गर्मियों में हर 4-5 दिन में हल्की सिंचाई करें, और सर्दियों में 8-10 दिन में। पानी ज्यादा जमा न होने दें, वरना गाजर की जड़ें सड़ सकती हैं। खरपतवार से बचने के लिए बुवाई के 20-25 दिन बाद निराई-गुड़ाई करें। पेंडीमेथालिन (1 लीटर प्रति 200 लीटर पानी) का छिड़काव बुवाई के 2-3 दिन बाद करें।
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कीट और रोग से बचाव
पीले गाजर की फसल में ज्यादा कीट या रोग नहीं लगते, लेकिन सावधानी बरतना जरूरी है। राइजोम वीविल और रस्ट फ्लाई जैसे कीटों से बचने के लिए नीम तेल (3-4 मिली प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करें। आर्द्रगलन रोग से बचने के लिए बीज को बुवाई से पहले कार्बेन्डाझीम (2 ग्राम प्रति किलो बीज) से उपचारित करें। अगर पत्तियां पीली पड़ें, तो जैविक खाद या गोमूत्र का इस्तेमाल करें। रंजीत का कहना है कि जैविक तरीके अपनाने से फसल स्वस्थ रहती है और बाज़ार में ज्यादा कीमत मिलती है। खेत की नियमित जांच करें और किसी भी रोग के लक्षण दिखने पर नज़दीकी कृषि केंद्र से सलाह लें।
कटाई और भंडारण
पीला गाजर 90-100 दिन में कटाई के लिए तैयार हो जाता है। जब जड़ों का ऊपरी हिस्सा 2.5-3.5 सेंटीमीटर मोटा हो जाए, तब कटाई करें। कटाई से पहले खेत में हल्की नमी रखें, ताकि गाजर आसानी से निकल आए। कटाई के बाद गाजर को पानी से धोकर छांव में सुखाएं। इससे उनका रंग और मिठास बरकरार रहता है। गाजर को 10-12 डिग्री सेल्सियस पर स्टोर करें, ताकि वे लंबे समय तक ताज़ा रहें। छपरा के किसान स्थानीय मंडियों और बड़े शहरों में गाजर बेचकर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं।
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लागत और मुनाफा
पीले गाजर की खेती में प्रति कट्ठा 2,000-3,000 रुपये का खर्च आता है, जिसमें बीज, खाद, और मजदूरी शामिल है। एक कट्ठा से 4-5 क्विंटल गाजर मिलता है, जो 20-30 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिकता है। इससे प्रति कट्ठा 8,000-12,000 रुपये का मुनाफा हो सकता है। रंजीत ने तीन कट्ठा में खेती की, जिसमें उनकी लागत 6,000 रुपये थी और 40,000 रुपये से ज्यादा का मुनाफा हुआ। बड़े स्तर पर खेती करने वाले सीजन में 2-3 लाख रुपये तक कमा सकते हैं। इसकी मांग सालभर रहती है, खासकर शादी-विवाह के सीजन में।
किसानों के लिए सुझाव
रंजीत सलाह देते हैं कि नए किसान छोटे स्तर पर पीले गाजर की खेती शुरू करें। बीज किसी भरोसेमंद दुकान या कृषि केंद्र से लें। जैविक खेती पर ध्यान दें, क्योंकि जैविक गाजर की कीमत ज्यादा मिलती है। सरकार की सब्सिडी योजनाओं का फायदा उठाएं, जैसे बीज या ड्रिप सिंचाई पर अनुदान। गर्मियों में खेती करने से पहले मिट्टी की जांच करवाएं। सोशल मीडिया पर अपने गाजर का प्रचार करें, ताकि ज्यादा ग्राहक मिलें। पीला गाजर न सिर्फ खेतों को हरा-भरा रखता है, बल्कि किसानों की जेब भी भरता है। आज ही शुरू करें और छपरा के खेतों की तरह अपने खेत को भी मुनाफे का खजाना बनाएं!
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