यह तकनीक तालाबों की तुलना में 3 गुना अधिक मछलियां पैदा करती है, कम लागत में लाखों की कमाई

किसान साथियों, मछली पालन ग्रामीण और तटीय क्षेत्रों में आय का महत्वपूर्ण स्रोत बन चुका है। रेसवे तकनीक इस क्षेत्र में एक क्रांतिकारी बदलाव ला रही है, जो कम पानी, कम जगह, और कम श्रम के साथ उच्च उत्पादन देती है। यह तकनीक पानी की रिसाइक्लिंग, स्वस्थ मछलियों का उत्पादन, और कम रखरखाव के कारण छोटे और मध्यम स्तर के मछली पालकों के लिए वरदान है। 2025 में, जब भारत का मत्स्य पालन क्षेत्र 20% वार्षिक वृद्धि के साथ बढ़ रहा है, रेसवे तकनीक किसानों को लाखों की कमाई का अवसर दे रही है। यह लेख रेसवे तकनीक की विशेषताओं, लागत-मुनाफे, और सरकारी सहायता को विस्तार से बताएगा।

रेसवे तकनीक क्या है

रेसवे तकनीक एक आधुनिक मछली पालन प्रणाली है, जिसमें लंबे, संकरे, और प्रवाहित टैंकों में मछलियां पाली जाती हैं। इन टैंकों में पानी लगातार बहता रहता है, जैसे नदी में, जिससे मछलियों को ताजा और ऑक्सीजन युक्त पानी मिलता है। यह तकनीक पारंपरिक तालाबों और बायोफ्लॉक की तुलना में अधिक कुशल है, क्योंकि यह पानी की बचत करती है और मछलियों की वृद्धि दर को 20-30% बढ़ाती है।

रेसवे टैंक आमतौर पर 10-30 मीटर लंबे और 1-2 मीटर चौड़े होते हैं। पानी को पंपों और फिल्टरों के जरिए रिसाइकल किया जाता है, जिससे 90% तक पानी की बचत होती है। यह तकनीक तिलापिया, रोहू, कतला, और ट्राउट जैसी मछलियों के लिए उपयुक्त है। तमिलनाडु के एक मछली पालक, रामास्वामी, ने बताया कि रेसवे तकनीक ने उनके उत्पादन को दोगुना कर दिया और पानी की बर्बादी को 80% कम किया।

रेसवे तकनीक की विशेषताएं

रेसवे तकनीक की सबसे बड़ी खासियत पानी की बचत है। पारंपरिक तालाबों में हर 2-3 महीने में पानी बदलना पड़ता है, लेकिन रेसवे में पानी बार-बार रिसाइकल होता है। फिल्टर और बायोरेमेडिएशन सिस्टम पानी को साफ रखते हैं, जिससे मछलियां स्वस्थ और ताजा रहती हैं। यह तकनीक मछलियों में बीमारियों को 50% तक कम करती है, क्योंकि साफ पानी में बैक्टीरिया और परजीवियों का खतरा कम होता है।इस तकनीक में श्रम लागत भी कम है। स्वचालित पंप और फिल्टर सिस्टम के कारण सफाई और देखरख में कम मेहनत लगती है। एक व्यक्ति 2-3 रेसवे यूनिट्स को आसानी से संभाल सकता है। इसके अलावा, रेसवे छोटी जगह (0.5-1 एकड़) में स्थापित हो सकता है, जो छोटे किसानों के लिए फायदेमंद है।

रेसवे तकनीक की स्थापना

रेसवे यूनिट स्थापित करने के लिए साफ पानी का स्रोत (जैसे बोरवेल या नदी) जरूरी है। टैंक कंक्रीट, फाइबर, या पॉलिथीन से बनाए जा सकते हैं। एक मानक यूनिट में 4-6 टैंक, वाटर पंप, ऑक्सीजनेटर, और फिल्टर सिस्टम शामिल होते हैं। स्थापना से पहले मिट्टी और पानी का pH (6.5-8.0) जांच लें।

मछली के स्टॉकिंग के लिए 50-100 मछलियां प्रति क्यूबिक मीटर की दर से डालें। तिलापिया और रोहू जैसे प्रजातियां तेजी से बढ़ती हैं और 6-8 महीने में बिक्री के लिए तैयार हो जाती हैं। चारा प्रोटीन युक्त होना चाहिए, जिसमें मछली भोजन, सोयाबीन खली, और विटामिन शामिल हों। बाजार से तैयार फीड (CP Aquaculture, Godrej) खरीदा जा सकता है। सप्ताह में एक बार पानी की गुणवत्ता (ऑक्सीजन, अमोनिया, नाइट्रेट) जांचें।

लागत और मुनाफा का हिसाब

रेसवे तकनीक में शुरुआती लागत 3-5 लाख रुपये आती है, जिसमें टैंक (1-2 लाख), पंप और फिल्टर (1-1.5 लाख), और बिजली व अन्य उपकरण (50,000-1 लाख) शामिल हैं। मछली चारा और स्टॉकिंग पर सालाना 1-1.5 लाख रुपये खर्च होते हैं। यह लागत बायोफ्लॉक (2-3 लाख) से अधिक है, लेकिन उत्पादन क्षमता 2-3 गुना होने से लागत जल्दी वसूल हो जाती है।एक रेसवे यूनिट सालाना 10-15 टन मछलियां पैदा कर सकती है। बाजार में मछलियां (तिलापिया, रोहू) 100-150 रुपये प्रति किलोग्राम बिकती हैं। इससे सालाना 10-15 लाख रुपये की आय होती है। चारा, बिजली, और श्रम लागत काटने के बाद 4-6 लाख रुपये का शुद्ध मुनाफा संभव है।

सरकारी योजनाएं और प्रशिक्षण

भारत सरकार मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं चला रही है। प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY) रेसवे और बायोफ्लॉक जैसी तकनीकों पर 40-60% सब्सिडी देती है। सामान्य वर्ग के लिए 40% और SC/ST/महिलाओं के लिए 60% सब्सिडी उपलब्ध है। राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड (NFDB) तकनीकी मार्गदर्शन और वित्तीय सहायता प्रदान करता है। उत्तर प्रदेश, बिहार, और तमिलनाडु जैसे राज्यों के मत्स्य पालन विभाग मुफ्त प्रशिक्षण और 0% ब्याज पर लोन देते हैं।

प्रशिक्षण के लिए केंद्रीय मात्स्यिकी शिक्षा संस्थान (CIFE, मुंबई), केंद्रीय मीठाजल मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान (CIFA, भुवनेश्वर), और NFDB (हैदराबाद) से संपर्क करें। उत्तर प्रदेश में यूपी एग्रीस प्रोजेक्ट के तहत मछली पालकों को रेसवे तकनीक का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। पंजीकरण के लिए www.fisheries.up.gov.in या स्थानीय KVK से संपर्क करें। तमिलनाडु में 2,000 पालकों ने PMMSY के तहत रेसवे यूनिट्स स्थापित किए।

रेसवे तकनीक के कितना लाभ संभव

रेसवे तकनीक पानी की बर्बादी को 90% तक कम करती है, जो जलवायु परिवर्तन के दौर में महत्वपूर्ण है। साफ और ऑक्सीजन युक्त पानी मछलियों को स्वस्थ रखता है, जिससे बाजार में 10-15% अधिक कीमत मिलती है। कम श्रम लागत और स्वचालित सिस्टम इसे छोटे किसानों और गृहिणियों के लिए सुविधाजनक बनाते हैं। यह तकनीक तालाबों की तुलना में 3 गुना अधिक मछलियां पैदा करती है।रेसवे से उत्पादित मछलियां रेस्तरां, सुपरमार्केट, और ऑनलाइन मार्केट (BigBasket, Farmizen) में बिकती हैं। निर्यात के लिए तिलापिया और ट्राउट की मांग मध्य पूर्व और यूरोप में बढ़ रही है।

चुनौतियां और समाधान

रेसवे तकनीक की शुरुआती लागत और तकनीकी जानकारी की कमी छोटे पालकों के लिए चुनौती हो सकती है। बिजली की निर्भरता और रखरखाव भी लागत बढ़ा सकते हैं। सरकार इन समस्याओं को हल करने के लिए कदम उठा रही है। PMMSY और NFDB सस्ते लोन और सब्सिडी दे रहे हैं। KVK और CIFA प्रशिक्षण के जरिए तकनीकी जानकारी पहुंचा रहे हैं। सौर ऊर्जा से चलने वाले रेसवे सिस्टम बिजली लागत को 30% कम कर सकते हैं।

भारत का मत्स्य पालन क्षेत्र विश्व में तीसरे स्थान पर है, और रेसवे तकनीक इसकी रीढ़ बन रही है। PMMSY के तहत 70,000 करोड़ रुपये के निवेश से 1 करोड़ रोजगार सृजित होंगे। रेसवे तकनीक से उत्पादन 20-30% बढ़ेगा, और निर्यात 15% बढ़कर 1 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचेगा। उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में रेसवे यूनिट्स की संख्या 5,000 तक पहुंच चुकी है।

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  • Dharmendra

    मै धर्मेन्द्र एक कृषि विशेषज्ञ हूं जिसे खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी साझा करना और नई-नई तकनीकों को समझना बेहद पसंद है। कृषि से संबंधित लेख पढ़ना और लिखना मेरा जुनून है। मेरा उद्देश्य है कि किसानों तक सही और उपयोगी जानकारी पहुंचे ताकि वे अधिक उत्पादन कर सकें और खेती को एक लाभकारी व्यवसाय बना सकें।

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