मखाना की खेती अब देश के कई राज्यों में किसानों की कमाई का बड़ा जरिया बन रही है। बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, असम, मणिपुर, त्रिपुरा, जम्मू-कश्मीर और पूर्वी ओडिशा में इसकी खेती तेजी से बढ़ रही है। भाकृअनुप-मखाना अनुसंधान केंद्र, दरभंगा की नई खेत प्रणाली और उन्नत किस्म ‘स्वर्ण वैदेही’ ने पारंपरिक खेती को पीछे छोड़ दिया है। यह किस्म प्रति हेक्टेयर 2.6-3.0 टन उपज देती है, जो पुरानी किस्मों से 70 फीसदी ज्यादा है। पोषक तत्वों और औषधीय गुणों से भरपूर मखाना की बढ़ती माँग ने इसे बाजार में हिट बना दिया है।
नई खेत प्रणाली ने बदला खेल
भाकृअनुप-मखाना अनुसंधान केंद्र ने पारंपरिक तालाब खेती को छोड़कर आधुनिक खेत प्रणाली विकसित की है। इस प्रणाली में किसान लेजर लैंड लेवलर से खेत को समतल कर 2 फीट ऊँची मेड़ बनाते हैं। खेत के लिए कार्बनिक पदार्थों से भरपूर चिकनी या चिकनी-दोमट मिट्टी जरूरी है। एक हेक्टेयर खेत के लिए 500 वर्गमीटर की नर्सरी तैयार की जाती है। यह प्रणाली पानी का सही इस्तेमाल करती है और पैदावार बढ़ाती है। केंद्र के वैज्ञानिकों का कहना है कि यह तरीका लागत कम कर मुनाफा बढ़ाता है।
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स्वर्ण वैदेही किस्म की खासियत
‘स्वर्ण वैदेही’ मखाना की उन्नत किस्म है, जिसे दरभंगा केंद्र ने विकसित किया। यह किस्म 90-100 दिनों में पककर तैयार हो जाती है और प्रति हेक्टेयर 2.6-3.0 टन उपज देती है। इसके बीज बड़े, चमकदार और बाजार में ज्यादा माँग वाले हैं। पारंपरिक किस्मों की तुलना में यह 70 फीसदी ज्यादा उत्पादन देती है। इसकी खेती में कम पानी और कम मेहनत की जरूरत होती है, जो इसे छोटे और बड़े किसानों के लिए आदर्श बनाता है।
खेती का सही समय और तरीका
मखाना की रोपाई फरवरी के पहले हफ्ते से अप्रैल के तीसरे हफ्ते तक होती है। नर्सरी में बीज बोने के 30-35 दिन बाद पौधों को खेत में रोपा जाता है। पुष्पण और फलन मई से सितंबर तक चलता है। इस दौरान खेत में पानी का स्तर 1 फीट से कम नहीं होना चाहिए। सामान्य बारिश में सिंचाई की जरूरत नहीं, लेकिन कम बारिश होने पर 4-5 बार सिंचाई करें। खेत में पानी की गहराई 1-1.5 फीट रखें, ताकि पौधे स्वस्थ रहें।
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पोषक तत्वों से भरपूर मखाना
आचार्य नरेंद्र देव कृषि विश्वविद्यालय, कुमारगंज की पीएचडी शोध छात्रा अमृत वर्षिणी ने बताया कि मखाना पोषण का पावरहाउस है। इसमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, कैल्शियम, पोटैशियम, फॉस्फोरस और मैग्नीशियम भरपूर मात्रा में होते हैं। धार्मिक अनुष्ठानों, स्नैक्स और व्यंजनों में इसका खूब इस्तेमाल होता है। औषधीय गुणों, जैसे डायबिटीज नियंत्रण और हृदय स्वास्थ्य, ने इसकी माँग को बढ़ाया है। बाजार में मखाना 800-1200 रुपये प्रति किलो बिकता है, जो किसानों के लिए बड़ा मुनाफा लाता है।
कटाई
मखाना की कटाई सुबह 10 बजे से शाम 3 बजे तक होती है। इसके लिए 4-5 लोगों का समूह चाहिए। पुष्पण के 35-40 दिन बाद फल पककर फटने लगते हैं, और बीज पानी की सतह पर तैरने लगते हैं। 2-3 दिन में ये बीज तालाब की तलहटी में जमा हो जाते हैं। इन्हें अर्द्धचन्द्राकार कंटेनर, जिसे स्थानीय भाषा में ‘गांजा’ कहते हैं, में इकट्ठा किया जाता है। गांजा को बांस के डंडे से पानी में हिलाकर बीज साफ किए जाते हैं। यह प्रक्रिया तब तक चलती है, जब तक बीज पूरी तरह साफ न हो जाएँ।
मखाना खेती के फायदे
मखाना की खेती कम लागत में बड़ा मुनाफा देती है। एक हेक्टेयर से 2.6-3.0 टन उपज की कीमत 20-25 लाख रुपये तक हो सकती है। स्वर्ण वैदेही किस्म और नई खेत प्रणाली ने खेती को आसान और फायदेमंद बनाया है। यह खेती छोटे किसानों के लिए खास तौर पर फायदेमंद है, क्योंकि इसमें ज्यादा खाद या कीटनाशकों की जरूरत नहीं। बाजार में मखाना की बढ़ती माँग, खासकर स्नैक्स और हेल्थ फूड इंडस्ट्री में, किसानों की आय को दोगुना कर रही है।
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