Ragi Cultivation: खरीफ सीजन शुरू होने वाला है और केंद्र सरकार मोटे अनाज की खेती को बढ़ावा दे रही है। किसानों के लिए रागी की खेती एक बढ़िया मौका बन सकती है। रागी, जिसे मडुआ, कोदरा या कोदो भी कहते हैं, मोटे अनाज की प्रमुख फसल है। धान की तुलना में रागी की खेती में कम खर्च आता है और मुनाफ़ा ज़्यादा होता है। केंद्र सरकार ने मार्केटिंग सीजन 2025-26 के लिए रागी की न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में भारी बढ़ोतरी की है, जो धान से दोगुनी से ज़्यादा है। ऐसे में छोटे और सीमांत किसानों के लिए रागी की खेती कम लागत में अच्छा मुनाफ़ा दे सकती है।
रागी सेहत का खज़ाना
रागी को सुपर फूड कहा जाता है, और ये सेहत के लिए बहुत फायदेमंद है। रागी की रोटी में कैल्शियम की अच्छी मात्रा होती है, जो हड्डियों को मज़बूत बनाती है। इसमें ढेर सारा फाइबर होता है, जो पाचन को दुरुस्त रखता है। रागी में मेथियोनिन नाम का एक अमीनो एसिड भी होता है, जो प्रोटीन का अहम हिस्सा है। 100 ग्राम रागी खाने से करीब 340 किलो कैलोरी ऊर्जा मिलती है। सर्दियों में रागी का सेवन खास तौर पर फायदेमंद है, क्योंकि ये शरीर को गर्म रखता है। गाँवों में रागी की रोटी, खिचड़ी और हलवा बनाकर खाया जाता है, जो स्वाद के साथ सेहत भी देता है।
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रागी की उन्नत किस्में
देश के अलग-अलग हिस्सों के लिए रागी की कई उन्नत किस्में तैयार की गई हैं, जो कम समय में अच्छी पैदावार देती हैं। वीएल 101, वीएल 204, वीएल 124, वीएल 149, वीएल azioni, वीएल 315 और वीएल 324 जैसी किस्में गाँव के किसानों के बीच खासी पसंद की जाती हैं। वीएल 315 और वीएल 324 जैसी किस्में 105 से 135 दिनों में पककर तैयार हो जाती हैं। अगर सही समय पर बुवाई की जाए, तो रागी की खेती से 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार मिल सकती है। ये किस्में कम पानी और कम खाद में भी अच्छा उत्पादन देती हैं, जिससे गाँव के छोटे किसानों को फायदा होता है।
रागी की खेती का आसान तरीका
रागी की खेती गाँव के किसानों के लिए आसान और फायदेमंद है। इसे खरीफ सीजन में उगाया जाता है, और ये कम पानी में भी अच्छी तरह बढ़ती है। रागी सूखे को सहन कर सकती है और ऊँचाई वाले इलाकों में भी आसानी से उगाई जा सकती है। ये फसल 4.5 से 8 pH वाली मिट्टी में सबसे अच्छी पैदावार देती है। अच्छी जल निकासी वाली हल्की दोमट मिट्टी इसके लिए सबसे सही है। बुवाई से पहले खेत को अच्छी तरह जोत लें और जैविक खाद डालें।
रागी को लाइन में बोना चाहिए, ताकि हर पौधे को पर्याप्त जगह मिले। बुवाई के बाद हल्का पानी देना ज़रूरी है, लेकिन बारिश के मौसम में इसकी ज़रूरत कम होती है। रागी की खेती में खाद और कीटनाशकों का खर्च बहुत कम लगता है, जिससे लागत घटती है।
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रागी की MSP से दोगुना मुनाफ़ा
केंद्र सरकार ने मार्केटिंग सीजन 2025-26 के लिए खरीफ फसलों की MSP में बढ़ोतरी की है। धान की MSP में 69 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी हुई है, और अब ये 2,369 रुपये प्रति क्विंटल हो गई है। वहीं, रागी की MSP में 596 रुपये प्रति क्विंटल का इज़ाफ़ा हुआ है, और अब ये 4,886 रुपये प्रति क्विंटल है। धान की तुलना में रागी की MSP दोगुनी से ज़्यादा है। धान की खेती में पानी, खाद और कीटनाशकों का खर्च ज़्यादा लगता है, जबकि रागी की खेती में ये खर्चा बहुत कम है। ऐसे में रागी की खेती गाँव के किसानों की कमाई को दोगुना कर सकती है।
रागी की खेती के फायदे
रागी की खेती छोटे और सीमांत किसानों के लिए वरदान है। ये फसल कम पानी में उग जाती है और सूखे को सहन कर सकती है। रागी की खेती में रासायनिक खाद और कीटनाशकों की ज़रूरत बहुत कम पड़ती है, जिससे लागत कम रहती है। साथ ही, इसकी MSP धान से दोगुनी से ज़्यादा है, जिससे किसानों को अच्छा मुनाफ़ा मिलता है। रागी मिट्टी की उर्वरता को भी बढ़ाती है, क्योंकि ये मिट्टी में पोषक तत्वों को संतुलित रखती है। किसानों को सलाह दी जाती है कि वो खरीफ सीजन में रागी की उन्नत किस्मों का इस्तेमाल करें, ताकि कम लागत में ज़्यादा मुनाफ़ा कमा सकें।