प्याज की खेती किसानों के लिए सोने का अंडा देने वाली मुर्गी है और जब बात बरसाती प्याज की हो, खासकर गावरान की एलोरा, प्रशांत, और पंचगंगा जैसी किस्मों की, तो मुनाफा गजब का होता है। ये किस्में बारिश के मौसम में कम पानी और कम मेहनत में बंपर पैदावार देती हैं। बिहार, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, और मध्य प्रदेश में बस्तियों के आसपास के खेतों में इनकी खेती खूब हो रही है। कंद से की जाने वाली इस खेती में नर्सरी की झंझट कम है, और बाजार में प्याज की मांग हमेशा आसमान छूती है।
खेत को प्याज के लिए तैयार करने का देसी तरीका
बरसाती प्याज की खेती शुरू करने से पहले खेत को सही ढंग से तैयार करना ज़रूरी है। एलोरा, प्रशांत, और पंचगंगा किस्में बलुई दोमट या लाल मिट्टी में अच्छी उगती हैं, जिनका pH 6.0 से 7.5 हो। खेत को दो-तीन बार हल चलाकर भुरभुरा करें और 8-10 टन गोबर की खाद या वर्मी-कम्पोस्ट प्रति हेक्टेयर डालें। बारिश में जलभराव से बचने के लिए 15-20 सेंटीमीटर ऊँची मेड़ें बनाएँ। कंद से खेती के लिए पिछले सीज़न के स्वस्थ, 2-3 सेंटीमीटर आकार के प्याज के कंद चुनें। कंद को बाविस्टिन (2 ग्राम प्रति किलो कंद) से उपचारित करें, ताकि फफूंद से बचाव हो।
कंद को 30×15 सेंटीमीटर की दूरी पर 5-7 सेंटीमीटर गहराई में रोपें। मिट्टी को हल्का गीला रखें, क्योंकि बारिश का पानी ज़्यादातर ज़रूरत पूरी करता है। खेत की तैयारी में 15,000-20,000 रुपये प्रति एकड़ का खर्च आता है। मिट्टी की जाँच करवाएँ, ताकि सही पोषक तत्वों का इंतज़ाम हो।
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बुआई और देखभाल का आसान तरीका
एलोरा, प्रशांत, और पंचगंगा बरसाती प्याज की किस्में खरीफ सीज़न (जून-जुलाई) में रोपने के लिए बेस्ट हैं। ये 90-110 दिन में पककर तैयार हो जाती हैं। एलोरा के छोटे, गोल कंद बाज़ार में खूब बिकते हैं, जबकि प्रशांत और पंचगंगा के बड़े कंद लंबे समय तक स्टोर किए जा सकते हैं। बुआई के बाद बारिश का पानी पर्याप्त होता है, लेकिन कम बारिश हो तो ड्रिप इरिगेशन से हल्की सिंचाई करें। खरपतवार से बचने के लिए बुआई के 20-25 दिन बाद निराई-गुड़ाई करें। कटवर्म और थ्रिप्स जैसे कीटों से बचाव के लिए नीम का तेल (5 मिली प्रति लीटर पानी) या इमिडाक्लोप्रिड (0.3 मिली प्रति लीटर) का छिड़काव करें।

डैम्पिंग ऑफ जैसे फंगल रोग से बचने के लिए कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (2 ग्राम प्रति लीटर) का इस्तेमाल करें। मिट्टी में पोषक तत्व कम हों, तो एनपीके (50:25:25 किलो प्रति एकड़) डालें, लेकिन मिट्टी की जाँच ज़रूरी है। ये किस्में कम पानी में भी अच्छी पैदावार देती हैं, जो बरसाती खेती के लिए वरदान है।
बीज और कंद कहाँ से लें, कितना मुनाफा बनेगा
गावरान की एलोरा, प्रशांत, और पंचगंगा के कंद या बीज प्राप्त करने के लिए नज़दीकी कृषि विश्वविद्यालय, कृषि विज्ञान केंद्र, या सरकारी बीज केंद्र से संपर्क करें। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म, जैसे AgriBegri, Seed Basket, या Amazon India, पर भी ये कंद और बीज 20-30 रुपये प्रति किलो की दर से मिल जाते हैं।आप इस नुम्बर पर फोन क्र एक निजी कम्पनी से भी मंगवा सकते हैं,(लखन राणा – 8999884576)। एक एकड़ के लिए 800-1000 किलो कंद चाहिए, यानी 16,000-30,000 रुपये का खर्च। अगर स्थानीय मंडी से कंद खरीदें, तो पिछले सीज़न के प्याज के कंद चुनें, जो स्वस्थ और रोगमुक्त हों। खेती की लागत, जिसमें कंद, खाद, और मज़दूरी शामिल है, 30,000-40,000 रुपये प्रति एकड़ आती है।
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ड्रिप इरिगेशन के लिए 20,000-30,000 रुपये अतिरिक्त लग सकते हैं, लेकिन सरकार की 50% सब्सिडी इसे किफायती बनाती है। इन किस्मों से प्रति हेक्टेयर 200-250 क्विंटल प्याज मिलता है। बाज़ार में बरसाती प्याज 30-50 रुपये प्रति किलो बिकता है, यानी एक एकड़ से 1.5-2.5 लाख रुपये की कमाई। लागत निकालने के बाद 1-2 लाख रुपये का शुद्ध मुनाफा मिलता है।
प्याज की खेती से मोटी कमाई का रास्ता
बरसाती प्याज की खेती को मुनाफे का धंधा बनाने के लिए कुछ देसी नुस्खे अपनाएँ। बीज या कंद खरीदने से पहले कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क करें, जहाँ मुफ्त ट्रेनिंग और मिट्टी जाँच की सुविधा मिलती है। ऑनलाइन खरीदारी करते समय AgriBegri या Seed Basket जैसे भरोसेमंद प्लेटफॉर्म चुनें और रिव्यू ज़रूर पढ़ें। कंद से खेती करने से समय और लागत बचती है, इसलिए स्वस्थ कंद ही लें। ड्रिप इरिगेशन अपनाएँ, ताकि पानी की बचत हो और पैदावार बढ़े। जैविक खाद, जैसे जीवामृत या नीम की खली, का इस्तेमाल करें, ताकि प्याज की गुणवत्ता बढ़े। फसल तैयार होने पर स्थानीय मंडी, ऑनलाइन प्लेटफॉर्म, या निर्यातकों से संपर्क करें।
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