‘मर्चा चावल’ को मिलेगी वैज्ञानिक पहचान! कृषि मंत्री ने ICAR को दिए रिसर्च के आदेश

Marcha Chawal: बिहार की खेती हमेशा से अपनी खास फसलों के लिए जानी जाती है, और मर्चा चावल इसका सबसे ताज़ा उदाहरण है। यह चावल अपनी अनोखी सुगंध के लिए मशहूर है, जो रसोई में पकते ही हर किसी को लुभा लेता है। बिहार के पूर्वी चंपारण जैसे इलाकों में इसकी खेती बरसों से हो रही है, और अब यह देश-विदेश के बाजारों में अपनी जगह बना रहा है। सरकार ने इसे जीआई टैग देकर बिहार की इस धरोहर को और सम्मान दिया है। यह चावल न सिर्फ स्वाद में लाजवाब है, बल्कि किसानों के लिए कमाई का एक नया ज़रिया भी बन रहा है।

उत्पादन की चुनौती और समाधान

मर्चा चावल की खेती में अभी एक बड़ी चुनौती है इसका कम उत्पादन। जहां आम धान की किस्में प्रति हेक्टेयर 40 से 50 क्विंटल तक देती हैं, वहीं मर्चा चावल का उत्पादन 25 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। बिहार के किसानों का कहना है कि अगर बेहतर बीज मिलें, तो पैदावार बढ़ सकती है। इस मांग को ध्यान में रखते हुए, केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ‘विकसित कृषि संकल्प अभियान’ के दौरान पूर्वी चंपारण के पीपराकोठी में किसानों से मुलाकात की। उन्होंने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) को मर्चा चावल के लिए उच्च गुणवत्ता वाले बीज विकसित करने का निर्देश दिया है। इससे न सिर्फ उत्पादन बढ़ेगा, बल्कि किसानों की आय में भी इज़ाफा होगा।

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मर्चा चावल की खासियत

मर्चा चावल की सबसे बड़ी ताकत है इसकी प्राकृतिक सुगंध। यह चावल इतना खास है कि पकते ही इसकी खुशबू पूरे घर में फैल जाती है। यही वजह है कि विदेशों में भी इसकी मांग बढ़ रही है। निर्यातकों के पास अमेरिका, यूरोप, और अन्य देशों से ऑर्डर आ रहे हैं। जीआई टैग मिलने के बाद इस चावल की पहचान और मज़बूत हुई है, क्योंकि यह बिहार की मिट्टी और मेहनत का प्रतीक है। इसके अलावा, मर्चा चावल का स्वाद और बनावट इसे बासमती से भी अलग बनाती है, जिससे यह बाजार में एक खास जगह बना रहा है।

मर्चा चावल की एक और खूबी है इसका लंबा भंडारण समय। जहां आम चावल डेढ़ से दो महीने में अपनी गुणवत्ता खोने लगता है, वहीं मर्चा चावल को डीप फ्रीजर में रखने पर छह महीने तक ताज़ा रहता है। यह खासियत इसे निर्यात के लिए और आकर्षक बनाती है। बिहार के किसान अगर इसे सही तरीके से स्टोर करें, तो विदेशी बाजारों में इसकी मांग को आसानी से पूरा कर सकते हैं। इससे न सिर्फ उनकी कमाई बढ़ेगी, बल्कि बिहार का नाम भी दुनिया में चमकेगा।

कीमत में इज़ाफा मांग में उछाल

कुछ साल पहले मर्चा चावल 2000 रुपये प्रति क्विंटल बिकता था, लेकिन अब इसकी कीमत 6000 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुँच गई है। फिर भी, कम उत्पादन की वजह से यह हर जगह आसानी से उपलब्ध नहीं होता। बाजार में इसकी मांग इतनी है कि कई बार किसानों के पास बेचने के लिए पर्याप्त स्टॉक नहीं रहता। अगर वैज्ञानिक बेहतर बीज और खेती की नई तकनीकों पर काम करें, तो मर्चा चावल की उपलब्धता बढ़ सकती है, और किसानों को इसका पूरा फायदा मिलेगा।

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वैज्ञानिक और सरकार का साथ

‘विकसित कृषि संकल्प अभियान’ के तहत सरकार और वैज्ञानिक मिलकर मर्चा चावल की खेती को नई ऊँचाइयों तक ले जाने की कोशिश कर रहे हैं। ICAR के वैज्ञानिक अब खेतों में जाकर किसानों की ज़रूरतों को समझ रहे हैं। उनका मकसद है कि शोध सिर्फ प्रयोगशालाओं तक सीमित न रहे, बल्कि खेतों में किसानों के काम आए। केंद्रीय कृषि मंत्री ने साफ कहा कि मर्चा चावल के लिए नई किस्में और बेहतर तकनीकें विकसित की जाएँगी, ताकि बिहार के किसान इसका ज्यादा से ज्यादा फायदा उठा सकें।

सरकारी योजनाओं का फायदा

केंद्र और बिहार सरकार मर्चा चावल जैसे खास उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएँ चला रही हैं। खरीफ सीजन 2025-26 के लिए धान सहित 14 फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में बढ़ोतरी की गई है। इसके अलावा, परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) जैसी योजनाएँ जैविक खेती को बढ़ावा दे रही हैं, जो मर्चा चावल की गुणवत्ता को और बेहतर कर सकती हैं। किसान अपने नजदीकी कृषि केंद्र से इन योजनाओं की जानकारी ले सकते हैं और इसका लाभ उठा सकते हैं।

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  • Shashikant

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