Makka Fasal ke Rog Aur Unke Upchar: किसान भाइयों, खरीफ का मौसम आते ही मक्का की खेती जोर पकड़ लेती है। जून-जुलाई में जब मक्का के पौधे तेजी से बढ़ते हैं, तो कई तरह के रोग और कीट फसल को नुकसान पहुंचा सकते हैं। अगर समय रहते इनका इलाज न किया जाए, तो मेहनत और लागत डूब सकती है। बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, और पंजाब जैसे राज्यों में मक्का की खेती बड़े पैमाने पर होती है, और रोगों से बचाव के लिए सही जानकारी बहुत जरूरी है। आइए जानते हैं कि मक्का में लगने वाले प्रमुख रोग कौन से हैं और इन्हें कैसे रोका जाए, ताकि आपकी फसल लहलहाए और मुनाफा बढ़े।
लीफ ब्लाइट: पत्तियों को झुलसने से बचाएं
मक्का की फसल में लीफ ब्लाइट रोग तब लगता है, जब पत्तियों पर भूरे या धब्बेदार निशान बनने लगते हैं। ये धब्बे धीरे-धीरे बढ़ते हैं और पत्तियां सूखकर झुलस जाती हैं। खासकर नमी वाले मौसम में ये रोग तेजी से फैलता है। इससे फसल की पैदावार और गुणवत्ता दोनों कम हो जाती है। इस रोग को रोकने के लिए खेत में मैनकोजेब 75% WP को 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। साथ ही, रोगग्रस्त पत्तियों को तोड़कर जला दें, ताकि रोग और न फैले। खेत में पानी जमा न होने दें, क्योंकि नमी से ये रोग बढ़ता है।
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तारकिया झुलसा: ठंड और नमी का दुश्मन
तारकिया झुलसा, जिसे टर्सिकम लीफ ब्लाइट भी कहते हैं, मक्का की पत्तियों पर लंबे, धूसर-भूरे धब्बे बनाता है। ये रोग ठंडे और नम मौसम में तेजी से फैलता है, खासकर बिहार और उत्तर प्रदेश के गाँवों में, जहां मानसून में नमी बढ़ जाती है। इससे पौधे कमजोर हो जाते हैं और भुट्टों की गुणवत्ता गिरती है। इसे रोकने के लिए कार्बेन्डाजिम और मैनकोजेब के मिश्रण को 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़कें। अगर रोग ज्यादा फैल गया हो, तो 10-15 दिन बाद दोबारा छिड़काव करें। साथ ही, रोग-रोधी किस्में, जैसे डेक्कन-101 या बायो-9681, बोने की कोशिश करें।
रस्ट: पत्तियों पर नारंगी धब्बों से सावधान
रस्ट रोग मक्का की फसल में तब होता है, जब पत्तियों पर नारंगी या भूरे रंग के छोटे-छोटे पाउडर जैसे धब्बे बनते हैं। ये धब्बे धीरे-धीरे बढ़ते हैं और पूरी पत्ती सूख सकती है। खासकर पंजाब और मध्य प्रदेश के गर्म-नम इलाकों में ये रोग ज्यादा देखा जाता है। इससे फसल की पैदावार 20-30 फीसदी तक कम हो सकती है। रस्ट को रोकने के लिए हेक्साकोनाजोल 5% EC को 1 मिली प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। अगर रोग फिर भी न रुके, तो 10-15 दिन बाद दोबारा छिड़काव करें। खेत को खरपतवार से साफ रखें और फसल चक्र अपनाएं, यानी हर साल एक ही खेत में मक्का न बोएं।
स्मट रोग: काली गांठों से फसल को खतरा
स्मट रोग मक्का के भुट्टों, तने, या डंठल पर काले रंग की गांठें बनाता है। ये गांठें फटने पर रोग पूरे खेत में फैल सकता है। खासकर मानसून के दौरान, जब खेत में पानी जमा हो जाता है, ये रोग बढ़ता है। इसे रोकने के लिए रोगग्रस्त भुट्टों या तनों को तुरंत काटकर जला दें। बुआई से पहले बीज को थायरम या कार्बेन्डाजिम (2 ग्राम प्रति किलो बीज) से उपचारित करें। खेत की अच्छी जल निकासी सुनिश्चित करें, ताकि पानी जमा न हो। गाँव में अगर आपके पास ट्यूबवेल है, तो इसका सही इस्तेमाल करें और खेत को सूखा रखें।
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फॉल आर्मीवॉर्म: रात का कीट, दिन का नुकसान
फॉल आर्मीवॉर्म भले ही कीट है, लेकिन इसका नुकसान रोग जैसा होता है। ये कीट रात में सक्रिय होकर मक्का की पत्तियों में गहरे खांचे और छेद बनाता है। छोटे पौधों को ये पूरी तरह खा सकता है। बिहार और उत्तर प्रदेश में ये कीट बड़ी समस्या बन रहा है। इसे रोकने के लिए थायोमेथोक्सम और लाम्डा सायहेलोथ्रिन के मिश्रण का छिड़काव करें। अगर आप जैविक तरीके अपनाना चाहते हैं, तो ट्राइकोग्रामा वेस्पाई या NPV (न्यूक्लियर पॉलिहेड्रोसिस वायरस) का इस्तेमाल करें। नीम का तेल या खली भी इस कीट को भगाने में मदद करता है। अपने खेत को नियमित जांचें और कीट दिखते ही तुरंत उपाय करें।
सामान्य बचाव के देसी उपाय
मक्का की फसल को रोगों और कीटों से बचाने के लिए कुछ देसी और आसान उपाय भी अपनाए जा सकते हैं। बुआई से पहले बीज को थायरम या कार्बेन्डाजिम से उपचारित करें, ताकि रोग शुरू से ही न लगें। खेत में पानी जमा न होने दें, इसके लिए नालियां बनाएं। हर साल एक ही खेत में मक्का बोने की बजाय फसल चक्र अपनाएं, जैसे मक्का के बाद मूंग या चना बोएं। खरपतवार को समय-समय पर साफ करें, क्योंकि ये रोगों को फैलाते हैं। जैविक उपाय के लिए ट्राइकोडर्मा या नीम की खली का इस्तेमाल करें, जो मिट्टी को स्वस्थ रखता है। अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क करें और मक्का की रोग-रोधी किस्मों की जानकारी लें।
किसान भाइयों, मक्का की फसल को रोगों से बचाने के लिए सतर्क रहें और समय पर उपाय करें। खेत में नियमित निगरानी करें और पत्तियों, भुट्टों, या तनों पर कोई असामान्य धब्बे या कीट दिखें, तो तुरंत कृषि केंद्र से सलाह लें। बुआई से पहले रोग-रोधी किस्में चुनें और बीज उपचार जरूर करें। जैविक खेती को बढ़ावा दें, जैसे नीम का तेल या ट्राइकोडर्मा का इस्तेमाल।
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