खरीफ का सीजन शुरू होते ही किसानों की सबसे बड़ी जरूरत होती है उर्वरकों की। खासकर डीएपी (डाय-एमोनियम फॉस्फेट) का इस्तेमाल धान, मक्का और दूसरी फसलों के लिए बहुत जरूरी है। लेकिन इस बार मई और अप्रैल में डीएपी की बिक्री उम्मीद से काफी कम रही। इससे किसान भाई परेशान हैं। सरकार भले ही कह रही हो कि उर्वरकों की कोई कमी नहीं है, लेकिन खेतों तक डीएपी की सही आपूर्ति न होने से किसानों को महंगे उर्वरकों का सहारा लेना पड़ रहा है। आइए, डीएपी की कमी की असल तस्वीर और सरकार की पीएम-प्रणाम योजना के बारे में जानते हैं, जो टिकाऊ खेती का रास्ता दिखा रही है।
डीएपी की कमी क्या है असल स्थिति
इस साल मई में डीएपी की मांग करीब 9.41 लाख टन थी, लेकिन बिक्री सिर्फ 5 लाख टन के आसपास रही। यानी मांग से लगभग 4 लाख टन कम। अप्रैल में भी यही हाल था, जब 7.81 लाख टन की मांग के मुकाबले सिर्फ 2.2 लाख टन डीएपी बिका। जून में खरीफ फसलों की बुवाई तेज होने के साथ डीएपी की जरूरत और बढ़ गई है। कुछ राज्यों, जैसे पंजाब में, डीएपी की कमी की शिकायतें सामने आई हैं।
पंजाब के कृषि मंत्री गुरमीत सिंह खुड्डियां ने केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान से इस बारे में बात की और जल्द से जल्द आपूर्ति बढ़ाने की मांग की। खेतों में डीएपी न मिलने से किसानों को महंगे जटिल उर्वरकों, जैसे एनपीके (नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश, और सल्फर) की ओर रुख करना पड़ रहा है, जो उनकी लागत बढ़ा रहा है।
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डीएपी का स्टॉक और उत्पादन
सरकार का कहना है कि डीएपी की आपूर्ति में कोई कमी नहीं है। 1 मई को डीएपी का स्टॉक 13 लाख टन था, जो 23 मई तक 12.57 लाख टन रहा। इस दौरान उत्पादन और आयात की तुलना में बिक्री थोड़ी ज्यादा रही। मई में डीएपी का घरेलू उत्पादन 3.84 लाख टन तक पहुंचा, जो हाल के महीनों में सबसे ज्यादा है। अप्रैल में यह 3.13 लाख टन था।
वहीं, आयात की बात करें तो अप्रैल में 2.89 लाख टन डीएपी आयात हुआ, जो पिछले साल के 2.79 लाख टन से थोड़ा ज्यादा है। लेकिन मई के आयात के आंकड़े अभी सरकार ने साझा नहीं किए। पिछले साल मई में 5.66 लाख टन डीएपी आयात हुआ था, जो खरीफ सीजन का रिकॉर्ड था। इन आंकड़ों से साफ है कि उत्पादन और आयात के बावजूद डीएपी की बिक्री मांग के मुकाबले कम रही, जिससे किसानों को परेशानी हो रही है।
नकली उर्वरक और कालाबाजारी
कई जगहों पर किसानों ने डीएपी की कमी और कालाबाजारी की शिकायत की है। कुछ राज्यों में डीएपी की बोरी 1350 रुपये की जगह 1650 रुपये में बिक रही है। नकली उर्वरकों की फैक्ट्रियां भी धड़ल्ले से चल रही हैं, जो किसानों की मेहनत पर और भारी पड़ रही हैं। सरकार ने डीएपी की कीमत को 27,000 रुपये प्रति टन पर नियंत्रित किया है, लेकिन आयात की लागत (55,000-65,000 रुपये प्रति टन) और वैश्विक कीमतों में उतार-चढ़ाव के कारण आपूर्ति में कमी आ रही है। ऐसे में किसानों को या तो महंगे विकल्प चुनने पड़ रहे हैं या फिर फसल की पैदावार में कमी झेलनी पड़ रही है।
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सरकार का जवाब
केंद्रीय उर्वरक मंत्री जेपी नड्डा ने 5 जून को एक उच्च स्तरीय बैठक में खरीफ सीजन के लिए उर्वरकों की उपलब्धता की समीक्षा की। उन्होंने अधिकारियों को निर्देश दिए कि हर राज्य में किसानों की जरूरतों के हिसाब से डीएपी और अन्य उर्वरकों की आपूर्ति सुनिश्चित की जाए। इसके लिए राज्य सरकारों, उर्वरक कंपनियों, रेलवे और बंदरगाह अधिकारियों के साथ बेहतर समन्वय पर जोर दिया गया। सरकार का कहना है कि घरेलू उत्पादन अच्छा है और डीएपी की कमी को जल्द दूर किया जाएगा। साथ ही, सरकार ने 2024-25 के रबी सीजन के लिए फॉस्फेटिक और पोटासिक उर्वरकों पर 24,474.53 करोड़ रुपये की सब्सिडी मंजूर की है, ताकि किसानों को सस्ते दाम पर उर्वरक मिल सकें।
पीएम-प्रणाम योजना
डीएपी की कमी और रासायनिक उर्वरकों की बढ़ती निर्भरता को देखते हुए सरकार पीएम-प्रणाम (प्रधानमंत्री प्रोग्राम फॉर रेस्टोरेशन, अवेयरनेस, नरिशमेंट, एंड एमेलियोरेशन ऑफ मदर अर्थ) योजना को तेजी से लागू कर रही है। इस योजना का मकसद रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल कम करना और जैविक व प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देना है। यह योजना उन राज्यों को प्रोत्साहन देती है, जो पिछले तीन सालों की तुलना में रासायनिक उर्वरकों का उपयोग कम करते हैं। 50% सब्सिडी बचत को राज्यों को अनुदान के रूप में दिया जाता है, जिसमें से 70% वैकल्पिक उर्वरकों की तकनीक और उत्पादन इकाइयों के लिए और 30% किसानों, पंचायतों और किसान उत्पादक संगठनों को प्रोत्साहन के लिए इस्तेमाल होता है।
इस योजना के तहत 10,000 बायो-इनपुट रिसोर्स सेंटर्स बनाए जा रहे हैं, जो जैविक और बायो-उर्वरकों का उत्पादन बढ़ाएंगे। साथ ही, नैनो यूरिया और नैनो डीएपी जैसे नए उर्वरकों को बढ़ावा दिया जा रहा है, जो कम मात्रा में ज्यादा असरदार हैं। ये कदम न सिर्फ रासायनिक उर्वरकों की निर्भरता कम करेंगे, बल्कि मिट्टी की सेहत और पर्यावरण को भी बचाएंगे।
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